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नवरात्रि दुर्गा पूजा: मध्य प्रदेश जिसे भारत का हृदय कहा जाता है अपनी समृद्ध संस्कृति और आध्यात्म के लिए प्रसिद्ध है। यहां के दुर्गा माता मंदिर सिर्फ पूजा स्थल नहीं बल्कि विश्वास और सदियों पुरानी लोक मान्यताओं के अद्भुत संगम की मिसाल हैं।
शारदीय नवरात्रि में इन मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है जो अपनी अनूठी परंपराओं के कारण और भी खास हो जाते हैं। आइए जानते हैं मध्य प्रदेश के ऐसे ही 7 खास देवी धामों के बारे में।
भोपाल के चप्पल वाली माता मंदिर
भोपाल में आस्था के दो ऐसे केंद्र हैं, जो अपनी अलग-अलग परंपराओं के लिए जाने जाते हैं।
जीजीबाई माता मंदिर (चप्पल वाली माता):
भोपाल के कोलार क्षेत्र की पहाड़ी पर स्थित, जीजीबाई माता मंदिर को भक्त प्यार से 'चप्पल वाली माता' के नाम से जानते हैं। यहाँ की अनोखी मान्यता है कि देवी को नई चप्पल, जूते, या सैंडल चढ़ाने से वे प्रसन्न होती हैं।
इस परंपरा में विदेशों से आए श्रद्धालु भी शामिल होते हैं, जो अमेरिका, इंग्लैंड, दुबई और सऊदी अरब जैसे देशों से अपनी मनोकामनाएं पूरी होने पर माता के लिए भेंट भेजते हैं। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को 121 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। यह शक्तिपीठ 1999 में स्थापित हुआ था।
कर्फ्यू वाली माता मंदिर:
भोपाल के सोमवारा चौराहा, पीरगेट के पास स्थित मां भवानी मंदिर को 'कर्फ्यू वाली माता' के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का नाम एक ऐतिहासिक घटना से जुड़ा है।
1980-81 में जब यहां स्थायी प्रतिमा की स्थापना हो रही थी तो प्रशासन के साथ विवाद के कारण करीब 15-20 दिनों तक पूरे इलाके में कर्फ्यू लगा रहा।
भक्तों ने इसी संघर्ष के बीच माता की मूर्ति स्थापित की जिसके बाद यह मंदिर इस अनोखे नाम से प्रसिद्ध हो गया। यहां भक्त अपनी मनोकामनाएं नारियल पर लिखकर देवी को अर्पित करते हैं।
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माता को पालना चढ़ाते हैं भक्त
बराई माता मंदिर, राजगढ़:
खिलचीपुर के घने जंगलों में स्थित बराई माता मंदिर एक 400 साल पुरानी रियासतकालीन बावड़ी के अंदर बना हुआ है। यहां माता की प्रतिमा के साथ-साथ बावड़ी में मौजूद प्राचीन पत्थरों को भी चमत्कारी माना जाता है।
लोक मान्यता है कि इन पत्थरों से टूटकर गिरने वाले छोटे-छोटे कंकर चेचक जैसे असाध्य रोग से मुक्ति दिलाते हैं। राजस्थान से भी भक्त यहां आते हैं और रोग ठीक होने के बाद भजिया-पूड़ी का भोग चढ़ाते हैं।
थाने वाली माता, ब्यावरा:
राजगढ़ के सुठालिया कस्बे में स्थित मां चामुंडेश्वरी मंदिर को 'थाने वाली माता' के नाम से जाना जाता है। यह करीब 400 साल पुराना मंदिर है, जिसकी देखरेख पिछले 77 सालों से पुलिस विभाग कर रहा है।
यहां पुलिसकर्मी ही पूजा-अर्चना करते हैं। 1988 में जब थाने को शिफ्ट किया जा रहा था, तब भवन में दरारें और आग लगने जैसी घटनाएं हुईं, जिसे पुलिस अधिकारियों ने माता का संकेत माना। तब से यह परंपरा बन गई है कि कोई भी नया पुलिसकर्मी या अधिकारी जॉइन करने से पहले यहां हाजिरी लगाता है।
बाड़ी माता, शाजापुर:
आगर जिले के पचेटी गांव में स्थित 500 साल पुराना बाड़ी माता मंदिर निःसंतान दंपत्तियों के लिए एक बड़ा आस्था केंद्र है। यहां भक्त संतान सुख की कामना लेकर आते हैं और मन्नत पूरी होने पर मंदिर में पालना चढ़ाते हैं। यह परंपरा यहां वर्षों से चली आ रही है।
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उज्जैन और नीमच के अनूठे मंदिर
चौबीस खंभा मंदिर, उज्जैन:
9वीं-10वीं शताब्दी में बना उज्जैन का चौबीस खंभा मंदिर अपनी वास्तुकला और अनोखी परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ महामाया और महालया माता विराजमान हैं, जो शहर को महामारी और अनिष्ट से बचाती हैं।
यहां की एक सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार, नवरात्र की अष्टमी पर कलेक्टर देवी को मदिरा का भोग लगाते हैं। इसके बाद 27 किलोमीटर तक के 40 मंदिरों में मदिरा की धार बहाई जाती है। यह परंपरा राजा विक्रमादित्य के समय से चली आ रही है।
भादवा माता मंदिर, नीमच:
नीमच में स्थित भादवा माता मंदिर को 'मालवा की वैष्णो देवी' और 'आरोग्य देवी' भी कहा जाता है। मान्यता है कि यहां मौजूद प्राचीन बावड़ी का जल लकवा और पोलियो जैसे असाध्य रोगों से मुक्ति दिलाता है।
श्रद्धालु इस बावड़ी में स्नान करते हैं और पानी को बोतल में भरकर घर भी ले जाते हैं। यहां रोगग्रस्त अंगों पर भस्म का लेप लगाने और मन्नत के लिए कलावा बांधने की भी परंपरा है।
मध्य प्रदेश के ये सभी मंदिर सिर्फ पूजा-पाठ के केंद्र नहीं, बल्कि भारतीय समाज की गहरी लोक आस्था और अनूठी परंपराओं को दर्शाते हैं। ये मान्यताएं पीढ़ियों से चली आ रही हैं और लोगों का विश्वास इन पर दिन-ब-दिन और गहरा होता जा रहा है।
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