मंत्री विजय शाह की टिप्पणी पर दर्ज FIR को लेकर HC की सख्त नाराजगी – कहा, ऐसी FIR से तो आरोपी को ही लाभ होगा

मध्यप्रदेश के वन मंत्री विजय शाह की कर्नल सोफिया कुरैशी पर आपत्तिजनक टिप्पणी पर FIR दर्ज हुई, जिसे हाईकोर्ट ने गंभीरता से न लेने पर फटकार लगाई। अदालत ने FIR को पक्षपातपूर्ण बताते हुए सरकार को चेताया है।

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Neel Tiwari
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मध्यप्रदेश के वन मंत्री विजय शाह द्वारा भारतीय सेना की महिला अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी के खिलाफ की गई कथित आपत्तिजनक टिप्पणी ने राजनीतिक और कानूनी हलकों में बड़ा तूफान खड़ा कर दिया है।

इस टिप्पणी के चलते इंदौर ग्रामीण के मानपुर थाने में उनके खिलाफ प्राथमिकी (FIR) दर्ज की गई थी, लेकिन जिस तरीके से यह FIR दर्ज की गई, उस पर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए सरकार को फटकार लगाई है।

अदालत ने कहा है कि FIR इस तरह ड्राफ्ट की गई है मानो किसी को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से की गई हो और इससे स्पष्ट होता है कि सरकार इस मामले को गंभीरता से लेने में विफल रही है।

FIR में अपराध का उल्लेख नहीं – हाईकोर्ट

हाईकोर्ट की एकल पीठ ने इस बात पर खास जोर दिया कि दर्ज की गई एफआईआर में न तो घटना का तथ्यात्मक वर्णन किया गया है, न ही यह बताया गया है कि किस कृत्य के कारण किन धाराओं में अपराध दर्ज किया गया है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि FIR के पैरा 12 में केवल हाईकोर्ट के आदेश को हूबहू कॉपी-पेस्ट कर दिया गया है, जबकि कानूनी प्रक्रिया की दृष्टि से जरूरी था कि वहां पर उस कथन, वीडियो क्लिप या सार्वजनिक बयान का उल्लेख किया जाता, जिस आधार पर मामला दर्ज हुआ है।

कोर्ट ने सख्ती से कहा – “अगर सिर्फ आदेश ही लिखना था, तो पूरी FIR में ऊपर कुछ और लिखने की जरूरत ही क्या थी? पूरी FIR सिर्फ आदेश की फोटोकॉपी बना दी जाती।”

हाईकोर्ट ने जताई गंभीर चिंता 

अदालत ने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि FIR इस तरह से तैयार की गई है मानो आरोपी को कानूनी राहत दिलाने के लिए ही ऐसा किया गया हो।

कोर्ट का कहना था कि यदि इस FIR को सीआरपीसी की धारा 482 के अंतर्गत चुनौती दी जाती है, तो इसमें अपराध के तत्वों का अभाव होने के कारण इसे रद्द करना बहुत आसान होगा। 

कोर्ट ने यह भी संकेत दिए कि जानबूझकर अपराध के विवरण को नजरअंदाज किया गया, ताकि आरोपी को बाद में कानूनी छूट मिल सके। यह एक गंभीर आरोप है जो सरकार की निष्पक्षता और जांच की नीयत पर प्रश्नचिह्न लगाता है।

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FIR दर्ज करने के समय पर HC ने उठाए सवाल

FIR दर्ज किए जाने के समय को लेकर भी कोर्ट ने सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए। राज्य सरकार की ओर से दावा किया गया कि FIR शाम 7:55 बजे दर्ज की गई थी, लेकिन रिकॉर्ड और अन्य दस्तावेजों के अनुसार इसे फाइनल करने का समय रात 11 बजे दर्शाया गया है।

कोर्ट ने कहा कि जब वीडियो फुटेज जैसी ठोस सामग्री पहले से उपलब्ध है, तो इतनी देरी क्यों की गई? और जब दर्ज किया गया, तो फिर भी अपराध का विश्लेषण क्यों नहीं जोड़ा गया? कोर्ट का यह सवाल इस ओर इशारा करता है कि पूरी प्रक्रिया सिर्फ औपचारिकता निभाने के लिए की गई थी।

सबूतों पर कोर्ट की नाराजगी

जस्टिस श्रीधरन ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह कोई हत्या का जटिल मामला नहीं है, जिसमें गवाहों की तलाश करनी पड़े या परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की पड़ताल करनी हो। मंत्री का बयान एक वीडियो के रूप में सार्वजनिक है और उसमें उन्होंने क्या कहा, वह भी स्पष्ट है।

ऐसे में FIR में उस वीडियो की सामग्री, वक्तव्य और आपत्तिजनक हिस्सों को क्यों नहीं जोड़ा गया? कोर्ट ने कहा कि जब FIR की बुनियाद ही कमजोर रखी जाएगी, तो भविष्य में यह पूरा मामला आरोपी के पक्ष में झुक जाएगा और न्याय की प्रक्रिया कमजोर हो जाएगी।

शाम 6 से रात 12 बजे तक मानपुर थाने में यह सब हुआ

हाईकोर्ट के आदेश के बाद ही पुलिस मुख्यालय से इंदौर पुलिस अधिकारियों को फोन चला गया है कि एफआईआऱ मानपुर थाने में होगी क्योंकि घटना का स्थल मानपुर थाना एरिया है।

इसके बाद सभी अधिकारी एसपी हितिका वासल, एडिशनल एसपी रूपेश दिवेदी, एसडीओ पी दिलीप चौधरी और टीआई मानपुर सभी थाने पर पहुंच गए। लेकिन इसके बाद आदेश आए कि इस मामले में एफआईआर की ड्राफ्टिंग भोपाल से भेजी जाएगी, इसमें एक भी शब्द गलत नहीं हो, वही का वही पूर लिखना है।

तैयारी रखिएगा। इसके बाद भोपाल में डीपीओ, एडपीओ व अन्य विधि जानकारों की पूरी टीम बैठी, उन्होंने हाईकोर्ट के आदेश को लेकऱ एफआईआर की ड्राफ्टिंग बताई।

 इसमें दो मुख्य मुद्दे थे

  • पहली बात थी ड्राफ्टिंग ऐसी हो कि हाईकोर्ट का आदेश पूरा हो जाए और डीजीपी पर भी कुछ नहीं आ जाए।
  • दूसरा एफआईआर में ऐसा कुछ नहीं आए जिससे बीजेपी को डैमेज हो। 

इसलिए ड्राफ्टिंग में बीजेपी के मंत्री विजय शाह के बयान को लिखा ही नहीं गया और ना ही धाराओं को लेकर लिखा कि मंत्री के बोलने से देश की एकता, अखंडता पर खतरा आए और इन धाराओं का उल्लंघन किया।

केवल पूरा का पूरा हाईकोर्ट के आदेश का बॉक्स एफआईआर में लिख दिया गया और साथ में दो लाइन जोड़ दी गई कि हाईकोर्ट के आदेश से इन धाराओं में केस दर्ज किया जाता है। 

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12 बजे से पहले FIR दर्ज के थे निर्देश

पुलिस अधिकारियों को भोपाल से यहां तक आदेश आ गए थे कि रात 12 बजे से पहले केस होना है. इसके लिए तैयारी रखिएगा जैसे ही ड्राफ्ट आए तत्काल एफआईआर दर्ज कर निकाल ली जाए।

बिजली की व्यवस्था रखिएगा बाद में यह मत कहना लाइट चली गई। इसके चलते थाने में अतिरिक्त जनरेटर बुलाकर भी रखा गया, ताकि पॉवर बैकअप रखा जा सके।

रात 11.27 पर हुई एफआईआर

हाईकोर्ट ने शाम को इसमें एफआईआर के आदेश दिए थे लेकिन इसी ड्राफ्टिंग के चलते इसमें देरी हुई। रात करीब 11 बजे यह ड्राफ्टिंग पुलिस अधिकारियों को मिली, जिसे टाइप कर रात 11.27 बजे एफआईआर दर्ज कर दी गई।

 इसी दौरान रात 11.36 बजे सीएम डॉ. मोहन यादव के आफिस से ट्वीट हुआ कि माननीय मप्र हाईकोर्ट के आदेश का पालन करते हुए माननीय मुख्यमंत्री जी ने कैबिनेट मंत्री विजय शाह के बयान के संदर्भ में कार्ऱवाई के निर्देश दिए हैं।

हाईकोर्ट की निगरानी में होगी पूरी जांच 

मामले की गंभीरता को देखते हुए हाईकोर्ट ने यह निर्देश दिया है कि इस पूरे प्रकरण की जांच अब न्यायालय की निगरानी में होगी। यद्यपि कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वह जांच में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नहीं करेगा, लेकिन प्रत्येक चरण की निगरानी की जाएगी, ताकि निष्पक्ष और तथ्यपरक जांच सुनिश्चित हो सके।

अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि मामले की अगली सुनवाई कल यानी 16 मई को की जाएगी। जिससे न्याय प्रक्रिया में कोई अनावश्यक विलंब न हो।

विजय शाह ने सुप्रीम कोर्ट का किया रुख 

इधर, मंत्री विजय शाह ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए देश की सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की है, जिसमें FIR को रद्द करने की मांग की गई है।

उनका दावा है कि उन्होंने कोई आपत्तिजनक बात नहीं कही थी और उनकी टिप्पणी को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है। विजय शाह ने सुप्रीम कोर्ट से याचिका पर तत्काल सुनवाई की भी गुहार लगाई है।

उन्होंने यह भी तर्क रखा है कि FIR कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है और इससे उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है।

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राजनीतिक गलियारों में भी उथल-पुथल

इस पूरे मामले ने न केवल प्रदेश की राजनीति में उथल-पुथल मचा दी है, बल्कि प्रशासनिक प्रक्रिया, पुलिस की निष्पक्षता और मंत्री के संवैधानिक आचरण पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।

कर्नल सोफिया कुरैशी जैसी सम्मानित सैन्य अधिकारी के खिलाफ की गई कथित टिप्पणी और फिर उस पर दर्ज की गई ‘त्रुटिपूर्ण’ FIR अब पूरे देश में चर्चा का विषय बन चुकी है।

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और हाईकोर्ट की निगरानी में होने वाली जांच अब यह तय करेगी कि इस प्रकरण में सच सामने आएगा या राजनीतिक प्रभाव की परछाइयाँ कानूनी सच्चाई पर भारी पड़ेंगी।

क्या है CRPC 482 ?

CRPC 482 जिसका हाईकोर्ट ने आदेश में जिक्र किया है वह धारा कोर्ट में चल रहे मामलों सहित FIR रद्द करने के हाईकोर्ट के अधिकार को दिखाती है। इसके तहत मुख्यतः आपराधिक मामलों में हाईकोर्ट के पास यह अधिकार है।

एफआईआर रद्द करना

यदि एफआईआर के आरोप निराधार हैं या यदि उन्हें परेशान करने, परेशान करने या किसी अवैध उद्देश्य से प्रेरित किया गया है, तो उच्च न्यायालय धारा 482 के तहत एफआईआर को रद्द कर सकता है।

चार्जशीट रद्द करना

यदि चार्जशीट में लगाए गए आरोप निराधार हैं या यदि चार्जशीट को परेशान करने, परेशान करने या किसी अवैध उद्देश्य से प्रेरित किया गया है, तो उच्च न्यायालय धारा 482 के तहत चार्जशीट को रद्द कर सकता है।

अन्य आपराधिक कार्यवाही रद्द करना

यदि कोई आपराधिक कार्यवाही परेशान करने, परेशान करने या किसी अवैध उद्देश्य से प्रेरित है, तो उच्च न्यायालय धारा 482 के तहत कार्यवाही को रद्द कर सकता है।

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