इंदौर की चहेती कंपनी को ठेका देने के लिए हाउसिंग बोर्ड ने रचाया ये कैसा तिलिस्म

द सूत्र ने बोर्ड के अफसरों की मंशा को लेकर मुद्दा उठाया था। बोर्ड के अफसरों की कारगुजारी के खुलासे के बाद एडवाइजर की नियुक्ति को मजबूरीवश टालना पड़ गया था। इस काम के बदले फर्म को हर महीने 7 लाख रुपए का भुगतान किया जाना था।

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Sandeep Kumar
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संजय शर्मा @भोपाल. मध्य प्रदेश हाउसिंग बोर्ड ने एक बार फिर चहेती कंपनी को ठेका देने के लिए टेंडर में मनमानी शर्तों का तिलस्म रचा है। टेंडर की दौड़ में चहेती कंपनी अव्वल रहे एमपीएचआइडीबी इसका ख्याल रखता है। बोर्ड की साख को बट्टा लगने की परवाह किए बिना अधिकारी कंपनी को काम देकर निजी मुनाफा बटोरने में लग जाते हैं।

बिजनेस पार्क के निर्माण की क्वालिटी कंट्रोल के लिए सलाहकार एजेंसी के चयन के टेंडर की शर्तें सवालों के घेरे में हैं। बोर्ड के अफसर नहीं चाहते कि उनकी पसंद के बाहर कोई कंपनी टेंडर में बराबरी कर सके। इसलिए शर्तों को चहेती कंपनी की पात्रता के मुताबिक बदल दिया गया है। 

राजधानी भोपाल में स्मार्ट सिटी के तहत हाउसिंग बोर्ड यानी एमपीएचआइडीबी ( MPHIDB  ) टीटीनगर में कमर्शियल बिल्डिंग बिजनेस पार्क बना रहा है। इसके निर्माण कार्य की गुणवत्ता नियंत्रण और निगरानी के लिए एजेंसी का चयन किया जाना है। जारी किए गए ई टेंडर 024_MPHID_ 345843_1 में पांच से सात कंपनियों ने हिस्सा लिया है, लेकिन टेंडर की शर्तों को देख कंपनियां हैरान हैं।

बताया जाता है कि टेंडर की शर्तों को एक कंपनी विशेष के लिए तैयार किया गया है। शर्तों को देखकर न केवल बोर्ड के अफसरों की मंशा जाहिर हो गई है बल्कि उस कंपनी की पहचान भी चर्चा में आ गई है। टेंडर में शामिल होने वाली कंपनियों का कहना है कि टेंडर इंदौर की मेहता एंड एसोसिएट्स एलएलपी के लिए डिजाइन किया गया है। क्योंकि जिस तरह की शर्तें रखी गईं हैं, उनकी वजह से दूसरी कोई फर्म  मेहता एंड एसोसिएट्स के सामने टिक नहीं पाएगी। 

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केंद्र सरकार की कंपनी भी पिछड़ी 

टेंडर की स्पर्धा में शामिल कंपनियों का कहना है कि हाउसिंग बोर्ड की शर्तों के कारण लगभग सभी का स्पर्धा से बाहर होना तय है। बोर्ड ने जो शर्तें रखी हैं, उनके सामने केंद्र सरकार की कंपनी डब्लूएपीसीओएस ( WAPCOS )  का टिक पाना भी मुश्किल है। मेहता एंड एसोसिएट्स ने टेंडर में अपने सहयोग के लिए आर्क एंड डिजाइन को भी प्रतिद्वंद्वी बनवाया है, लेकिन यह केवल दूसरी कंपनियों को दिखाने के लिए ही किया गया है। 

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ये है बोर्ड की अजग- गजब शर्तें

क्वालिटी कंट्रोल एजेंसी के चयन के लिए जारी किए गए टेंडर में बोर्ड में कुछ शर्तें रखी हैं। इनको पूरा करने के आधार पर कंपनियों को टेंडर में अव्वल रहने नंबर भी तय किए गए हैं। पहली शर्त है  G+7 यानी सात मंजिल भवन निर्माण के दस कामों को पर्यवेक्षण और क्वालिटी कंट्रोल का अनुभव। इस योग्यता के लिए कंपनियों को 25 अंकल रखे गए हैं।

दूसरी शर्त G+8 और G+9 यानी आठ मंजिला भवन के दस काम और उसका सुपरविजन करने वाली एजेंसियों को 25 अंक मिलेंगे। इसके बाद G+10 या उससे ज्यादा ऊंची बिल्डिंग के एक काम सुपरविजन और क्वालिटी कंट्रोल का अनुभव रखने वाली कंपनियों को 10 अंक दिए जाएंगे। यानी जो एजेंसी सबसे ज्यादा अंक हासिल करेगी, टेंडर पाने में भी अव्वल रहेगी। क्वालिटी कंट्रोल के काम के लिए इस तरह की शर्त को टेंडर में सहभागिता करने वाली कंपनियां ही बेमानी बता रही हैं। 

प्री-बिड मीटिंग में भी उठाए सवाल 

टेंडर से पहले सहभागिता करने वाली कंपनियों ने बोर्ड द्वारा बुलाई गई प्री बिड मीटिंग में इन शर्तों पर आपत्ति दर्ज कराई थी। साथ ही क्वालिटी कंट्रोल के काम के लिए एजेंसी चयन में इस बाध्यता को हटाने का भी आग्रह किया था। उन्होंने एक ही तरह के काम के लिए 21 निर्माण कार्य के अनुभव को भी बेवजह बताया था। बावजूद एक्सपर्ट कंपनियों के अनुभव और आग्रह को बोर्ड के अधिकारियों ने नकार दिया। 

बोर्ड द्वारा पहले भी निर्माण कार्य के टेंडरों में शर्तों को अपने हिसाब से चहेती कंपनी को लाभ पहुंचाने बदला जाता रहा है। प्री बिड मीटिंग में इस पर भी सवाल उठाए गए थे। सहभागिता करने वाली कंपनियों का अंदेशा है कि बोर्ड के अफसर पहले ही सिंगल टेंडर के जरिए एजेंसी का चयन करना तय कर चुके हैं।

फाइनेंसियल एडवाइजर के चयन में भी बदली थी शर्तें 

एमपीएचआइडीबी द्वारा मनमाने तरीके से टेंडर शर्त बदलने का यह पहला मामला नहीं है। बोर्ड के अफसर लगातार ऐसी मनमानी करते रहे हैं। कुछ समय पहले फाइनेंस सर्विस एडवाइजर के चयन के लिए जारी टेंडर में भी ऐसा ही किया गया था।  

इस टेंडर में चार्टर्ड अकाउंटेंट फर्म मुछाल एंड गुप्ता को काम देने की तैयारी थी, लेकिन तब द सूत्र ने बोर्ड के अफसरों की मंशा को लेकर मुद्दा उठाया था। बोर्ड के अफसरों की कारगुजारी के खुलासे के बाद एडवाइजर की नियुक्ति को मजबूरीवश टालना पड़ गया था। इस काम के बदले फर्म को हर महीने 7 लाख रुपए का भुगतान किया जाना था। तब भी मुछाल एंड गुप्ता फर्म ने एक सहयोगी कंपनी को टेंडर में शामिल किया था ताकि सिंगल टेंडर की वजह से किसी को शंका न हो।

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