उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से भगवान महाकाल की दिनचर्या में बदलाव होगा। हर साल गर्मी के दिनों में महाकाल की पूजा विधि में थोड़े बदलाव किए जाते हैं, जो शरद पूर्णिमा तक जारी रहते हैं। इस साल, 15 मार्च से भगवान महाकाल का स्नान ठंडे जल से कराया जाएगा और तीन आरतियों का समय भी बदला जाएगा। यह बदलाव भगवान की सेवा पूजा के समय और प्रकार में होते हैं, जो गर्मी और सर्दी के हिसाब से बदलते रहते हैं।
स्नान में ठंडे जल का उपयोग
गर्मी की शुरुआत के साथ महाकाल के स्नान में ठंडे जल का उपयोग होगा और साथ ही तीन आरतियों के समय में भी बदलाव होगा। इस बदलाव का असर मंदिर की पूजा परंपरा और दिनचर्या पर साफ तौर से देखा जाएगा। अब भगवान महाकाल की भस्म आरती, बाल भोग आरती और भोग आरती के समय में बदलाव किया जाएगा।
महाकाल मंदिर के पूजा पद्धति में मौसम के हिसाब से बदलाव होता है। ठंडी के मौसम में भगवान महाकाल को गर्म जल से स्नान कराया जाता है, जबकि गर्मियों में ठंडे जल का इस्तेमाल किया जाता है। यह बदलाव शरद पूर्णिमा तक चलेगा और इसके बाद पूजा की दिनचर्या फिर से ठंडी के हिसाब से तय की जाएगी।
आरती समय में बदलाव
बता दें कि, महाकाल मंदिर की आरतियों के समय में बदलाव किया गया है। 15 मार्च से, जब चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से बदलाव शुरू होगा, तब से तीन प्रमुख आरतियों का समय बदला जाएगा।
- भस्म आरती का समय सुबह 4 से 6 बजे के बीच रहेगा।
- बाल भोग आरती सुबह 7 से 7.45 बजे तक होगी।
- भोग आरती सुबह 10 से 10.45 बजे तक की जाएगी।
- संध्या पूजा का समय शाम 5 बजे से रहेगा।
- जबकि संध्या आरती शाम 7 से 7.45 बजे तक होगी।
- शयन आरती का समय रात 10.30 से 11 बजे तक रहेगा।
- ये सभी बदलाव शरद पूर्णिमा तक लागू रहेंगे।
मंदिर की पूजा की परंपरा
महाकाल मंदिर की पूजा परंपरा में सर्दी और गर्मी के मौसम के हिसाब से बदलाव किए जाते हैं। गर्मियों में भगवान महाकाल की पूजा ठंडे जल से की जाती है और सर्दियों में गर्म जल का उपयोग होता है। इन बदलावों का उद्देश्य भगवान महाकाल की सेवा को मौसम के अनुसार और भी अधिक आदर्श बनाना है।
समाप्ति तक चलने वाला बदलाव
चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से शुरू होने वाला यह बदलाव शरद पूर्णिमा तक जारी रहेगा। इसके बाद, फाल्गुन पूर्णिमा से शरद पूर्णिमा तक सर्दी के अनुसार पूजा की परंपरा फिर से लागू होगी। इस बदलाव से महाकाल मंदिर में आने वाले भक्तों को अलग अनुभव मिलेगा और उन्हें यह महसूस होगा कि महाकाल के दर्शन का समय और तरीके मौसम के अनुसार बदलते रहते हैं।