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उज्जैन (Ujjain) में विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में महाकाल को राखी बांधने के साथ ही पूरे भारत में रक्षाबंधन पर्व की शुरुआत हो गई है। यह एक सदियों पुरानी परंपरा है, जहां हर त्योहार की शुरुआत राजाधिराज महाकाल के दरबार से ही होती है।
इस बार रक्षाबंधन के पावन अवसर पर महाकाल को सबसे पहले एक विशेष राखी अर्पित की गई, जिसे अमर पुजारी के परिवार की महिलाओं द्वारा बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ तैयार किया गया था।
इस खास राखी में मखमल का कपड़ा, रेशमी धागा और मोती का उपयोग किया गया है और इस पर भगवान गणेश जी की प्रतिमा भी विराजित है। इस धार्मिक अनुष्ठान के बाद, भक्तों के लिए भी त्योहार का उत्साह शुरू हो गया है।
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महाकाल की भस्म आरती
महाकाल के दरबार में हर साल भस्म आरती के दौरान यह विशेष आयोजन होता है। इस साल भी, शनिवार की तड़के 3 बजे मंदिर के पट खोले गए। इसके बाद, भगवान महाकाल का पंचामृत से अभिषेक किया गया।
भस्म आरती के दौरान ही उन्हें विशेष श्रृंगार के साथ यह खास राखी अर्पित की गई। इसके तुरंत बाद, मंदिर के पुजारियों और भक्तों द्वारा भगवान के जयकारे लगाए गए। यह दृश्य अत्यंत दिव्य और मनमोहक था।
सवा लाख लड्डुओं का महाभोग
भगवान महाकाल को राखी बांधने के बाद, भस्म आरती के दौरान ही सवा लाख लड्डुओं का महाभोग लगाया गया। इस भव्य भोग की तैयारी पिछले चार दिनों से चल रही थी, जिसमें 60 डिब्बे देसी घी और 40 क्विंटल बेसन का उपयोग किया गया।
लड्डू बनाने का कार्य मंगलवार से ही मंदिर में पुजारी कक्ष के पीछे शुरू हो गया था। इस कार्य में लगे मुख्य हलवाई ओम प्रकाश शर्मा ने बताया कि वे पिछले 12 वर्षों से लगातार महाकाल के लिए रक्षाबंधन पर्व पर लड्डू बना रहे हैं।
यह एक सेवा और भक्ति का कार्य है, जिसमें वे पूरी लगन से जुट जाते हैं। ये लड्डू विशेष रूप से प्रसाद के रूप में तैयार किए जाते हैं, जिन्हें रक्षाबंधन पर मंदिर में दर्शन करने आने वाले भक्तों को वितरित किया जाता है।
यह प्रसाद भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है। महाकाल के दरबार से मिलने वाला यह प्रसाद भक्तों को एक अनोखी ऊर्जा और सकारात्मकता प्रदान करता है।
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परंपरा और आस्था का संगम
मंदिर के पंडित अमर पुजारी ने बताया कि वर्षों से चली आ रही इस परंपरा का निर्वहन भस्म आरती के दौरान भगवान महाकाल को राखी बांधकर किया जाता है। उनका मानना है कि हर त्योहार की शुरुआत भगवान महाकाल के दरबार से होती है।
इस धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के कारण, सबसे पहले राजाधिराज भगवान श्री महाकालेश्वर को राखी बांधी जाती है। इस विशेष अवसर पर, नंदी हॉल और गर्भगृह को भी फूलों से आकर्षक रूप से सजाया जाता है, जिससे पूरा मंदिर परिसर एक उत्सव के माहौल में रंग जाता है।
यह परंपरा सिर्फ एक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह भक्तों और भगवान के बीच अटूट रिश्ते का प्रतीक है। महाकाल को राजा माना जाता है और भक्त उनके सेवक। राखी बांधने की यह परंपरा इस रिश्ते को और भी मजबूत करती है।
इस बार का रक्षाबंधन है खास
इस साल का रक्षाबंधन कई मायनों में खास है। ज्योतिषियों के मुताबिक, रक्षाबंधन पर शनिवार को दोपहर 2:43 बजे तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। यह योग किसी भी शुभ कार्य को सफल बनाने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
इसके अलावा, इस बार यह भी खास है कि रक्षाबंधन भद्रा काल से मुक्त रहेगा। भद्रा काल को राखी बांधने के लिए अशुभ माना जाता है। इसलिए, इस बार भक्तों को भद्रा काल की चिंता नहीं करनी पड़ेगी।
मुहूर्त और चौघड़िए के मुताबिक, सुबह से दोपहर 2:40 तक शुभ मुहूर्त में रक्षा सूत्र या राखी बांधी जा सकेगी। यह शुभ संयोग इस पर्व को और भी अधिक महत्वपूर्ण बना देता है।
रक्षाबंधन का यह पर्व भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है, लेकिन महाकाल मंदिर में यह भक्तों और भगवान के बीच के प्रेम को दर्शाता है। महाकाल के दरबार में इस तरह के आयोजन न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि ये सामाजिक और सांस्कृतिक एकता को भी बढ़ावा देते हैं।
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