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रवि अवस्थी,भोपाल।
हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ के एक आदेश ने राज्य सरकार की उलझन बढ़ा दी है। न्यायालय ने प्रदेश के महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय को 7 नवंबर 2014 तक राज्य विश्वविद्यालय करार दिया है।
इसके बाद​,यूनिवर्सिटी से उसके सरकारी रहने तक निजी खातों में जमा रकम सरकारी खजाने में जमा कराए जाने व इस दौरान यूनिवर्सिटी में हुई नियुक्तियों को सरकारी प्रक्रिया के तहत लिए जाने की मांग तेज हो गई है।
डबल बेंच ने पलटा सिंगल बेंच का फैसला
हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ डबल बैंच का यह फैसला गत 15 जुलाई को आया। मामला मप्र राज्य शिक्षा केंद्र (RSK) से जुड़े एक प्रकरण का है। इसे लेकर खंडपीठ की सिंगल बैंच ने RSK के फैसले को सही करार दिया था।
इसके विरुद्ध डबल बैंच में दायर अपील की सुनवाई के बाद फैसला राज्य सरकार के खिलाफ आया। `फैसले में कहा गया कि महर्षि महेश योगी वैदिक वि​श्वविद्यालय 7 नवंबर 2014 तक राज्य विश्वविद्यालय के रूप में यूजीसी की सूची में शामिल था। लिहाजा इस अवधि तक उसके द्वारा संचालित आफ कैंपस पाठ्यक्रमों अवैध नहीं थे।
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उच्च शिक्षा विभाग उलझन में
न्यायालय के नए फैसले ने उच्च शिक्षा विभाग की उलझन बढ़ा दी है। विश्वविद्यालय को लेकर सरकार ने हमेशा पृथक अधिनियम के तहत बताते हुए निजी विश्वविद्यालयों की सूची में तो रखा,लेकिन इससे जुड़ा आदेश कभी नहीं निकाला और सूची,आदेश नहीं होती। यहां तक कि सरकारी डायरी में इस विश्वविद्यालय विशेष का उल्लेख भी किया जाता रहा।
इसी सूची को आधार बनाकर यूजीसी ने उसे राज्य विश्वविद्यालय में बताया लेकिन साल 2014 में जब हकीकत सामने आई तो यूजीसी ने यू-टर्न ले​ लिया। पूर्व में हुई ये गल्तियां विभाग के लिए अब फांस बन गई हैं।
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.. तो सरकारी खजाने में जमा कराई जाए रकम
इधर,सागर निवासी एक सोशल एक्टिविस्ट सुधाकर सिंह राजपूत ने राष्ट्रपति से लेकर उच्च शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव को ई-मेल के जरिए एक मांग पत्र भेजा है।
इसमें उन्होंने कोर्ट फैसले का हवाला देते हुए महर्षि महेश योगी वैदिक संस्थान के सरकारी रहने तक की अवधि के दौरान संस्थान को हुई आय एवं व्यय की राशि सरकारी खजाने में जमा कराने तथा इस अवधि में विश्वविद्यालय में की गई नियुक्तियों को भी सरकारी प्रक्रिया में लाए जाने का मांग की।
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नियुक्तियों को भी सरकारी दायरे में लाएं
राजपूत ने लिखा कि उक्त​ शिक्षण संस्थान प्रबंधन ने साल 2001 में उच्च न्यायालय जबलपुर में स्वयं बताया कि उसने बीते तीन सालों में 40 करोड़ रुपए व्यय किए। संस्थान के सालाना प्रतिवेदन में भी करोड़ों रुपए के आय-व्यय का ब्योरा दर्ज है।
इस मान से ही 24 अगस्त 1998 से 14 नवंबर 2014 तक हजार करोड़ से अधिक ऐसी आय है,जो निजी खातों में जमा की जाती रही। इसी तरह,संस्थान में बीते सालों में जो नियुक्तियां की गई,उनमें भी शासकीय मापदंडो को नहीं अपनाया गया।
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कुलपति ने रजिस्ट्रार पर ढोला सवाल
इस संबंध में महर्षि महेश योगी वैदिक विवि के कुलपति प्रो.प्रमोद के.वर्मा से पूछे जाने पर उन्होंने इसे पुराना मामला बताते हुए रजिस्ट्रार को संदेश फॉरवर्ड करना बताया,जबकि ​रजिस्ट्रार संदीप शर्मा भी इस मामले में चुप्पी साध गए।
उच्च शिक्षा विभाग के ओएसडी डॉ अनिल पाठक से भी इस बारे में विभाग का मत मांगा गया,लेकिन वह भी चुप्पी साध गए। ना तो उन्होंने फोन कॉल रिसीव​ किया, ना ही व्हाट्स एप संदेश का जवाब दिया।