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भोपाल।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की मुहर लगी सच्चाई,यूजीसी की चेतावनियां और सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज काले कारनामे… फिर भी महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय का फर्जी डिग्री कारोबार धड़ल्ले से जारी है। ग्वालियर खंडपीठ ने साफ कह दिया कि इसके ऑफ कैंपस पाठ्यक्रम अवैध हैं,लेकिन न छात्रों को ठगा जाना रुका, न सरकारी तंत्र की मेहरबानी। सवाल ये-जब कानून ही कह रहा है कि डिग्रियां कागज़ से ज्यादा कुछ नहीं,तो ये ‘शिक्षा का अंधा खेल’आखिर किसके इशारे पर चल रहा है?
तीन अकाउंटेंट्स की नौकरी गई, कोर्ट ने भी ठहराया अयोग्य
मप्र राज्य शिक्षा केंद्र ने साल 2017 में अपने तीन अकाउंटेंट्स की सेवाएं इसलिए समाप्त कर दी क्योंकि ये तीनों महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त हैं। मुरैना जिले के विनय यादव,प्रियंका मंगल व पूजा शर्मा ने इसी विश्वविद्यालय से संबंद्ध अपने जिले की तीन अलग-अलग संस्थाओं से पीजीडीसीए व डीसीए की शिक्षा ली। इसके आधार पर सरकारी सेवा में भी आए,लेकिन दस्तावेज सत्यापन के बाद स्कूल शिक्षा विभाग ने इन्हें अयोग्य घोषित कर बाहर का रास्ता दिखाया।
इस फैसले के खिलाफ तीनों ने हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में दस्तक दी,लेकिन गत दिसंबर में अपने फैसले में कोर्ट ने भी साफतौर पर कह दिया कि
महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय को फ्रेंचाइजी के जरिए आफ कैंपस कोर्स चलाने का अधिकार नहीं है। ऐसे में उसका कोई भी प्रमाणपत्र कानूनी वैधता नहीं रखता। लिहाजा राज्य शिक्षा केंद्र ने तीनों कर्मचारियों को अकाउंटेंट पद के लिए अयोग्य घोषित कर कोई गलती नहीं की।
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सदन में झूठी तस्वीर, मंत्री के बयान और दस्तावेज़ में फर्क
अब ऐसे में बड़ा सवाल यही कि जब महर्षि विश्वविद्यालय की आफ कैंपस कोर्स की मान्यता ही नहीं ऐसे में यह विश्वविद्यालय कैसे लगातार इस तरह के पाठ्यक्रम संचालित कर रहा है। इस पर उच्च शिक्षा विभाग की कारस्तानी जानिए.., राज्य विधानसभा में गत 28 जुलाई को उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने बताया कि महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय द्वारा वर्तमान में किसी भी संस्थान को प्रवेश एवं परीक्षा केंद्र हेतु संबद्धता नहीं दी गई।
जबकि,गत 5 मई को ही विश्वविद्यालय के कुलसचिव की ओर से लिखे गए एक पत्र में जबलपुर स्थित संस्थान में संचालित बीपीएड पाठ्यक्रम को विश्वविद्यालय के मुख्यालय से संबद्ध होना बताया।
विद्यार्थियों की संख्या में रहस्यमयी उछाल-गिरावट
महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों की संख्या को लेकर भी बड़ी गड़बड़ी सामने आई है। राज्य विधानसभा में गत 24 फरवरी को दिए गए एक जवाब में शैक्षणिक सत्र 2023-24 के दौरान विश्वविद्यालय में नियमित विद्यार्थियों की संख्या 12 हजार 325 और प्राइवेट की संख्या 60 हजार 399 बताई गई।
दूसरी ओर,हाल ही में सदन में पेश विश्वविद्यालय के साल 2023-24 के वार्षिक प्रतिवेदन में यह आंकड़ा क्रमश: 10,818 और 79,326 बताया गया। यानी नियमित विद्यार्थी 1,507 कम हो गए तो प्रायवेट की संख्या 18,927 बढ़ गई। एक ही शैक्षणिक सत्र में यह दो तरह के आंकड़े हैरत पैदा करते हैं।
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सालभर में 87 हजार छात्रों का ‘टाटा-बाय-बाय’
आंकड़ों में हेरफेर का यह सिलसिला यहीं नहीं रुका। विधानसभा के पिछले मानसून सत्र में 28 जुलाई को आए एक जवाब में साल 2024-25 के दौरान यह संख्या क्रमश:1417 और 1924 रह गई।
बड़ा सवाल यही कि सालभर में ही विश्वविद्यालय के 9,411 नियमित और 77,699 प्राइवेट स्टूडेंट्स कहां चले गए? यह मान भी लिया जाए कि इन्होंने विश्वविद्यालय को 'टाटा-बाय-बाय' कर लिया ।
तब भी 87 हजार 110 स्टूडेंट्स का इस तरह मुंह मोड़ना,किसी भी शिक्षण संस्थान की कार्यशैली व साख पर सवालिया निशान लगाता है।
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अफसरों की मेहरबानी: 12 साल से स्टे के साए में चलता खेल
महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय पर उच्च शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अधिकारी खासे मेहरबान रहे हैं। फिर वह पूर्व में पदस्थ रहे अफसर हों या मौजूदा। दरअसल, विश्वविद्यालय ने साल 2013 में अपनी स्वयत्तता को लेकर एक याचिका दायर की।
इसमें कहा गया कि उच्च शिक्षा विभाग को उसके मामलों की जांच करने का अधिकार नहीं है। इस मामले में विश्वविद्यालय को न्यायालय से स्थगनादेश मिला।
यही आदेश,जिम्मेदार अफसरों के लिए वरदान बन गया।वे जब चाहें विश्वविद्यालय के खिलाफ मिली शिकायत से पल्ला झाड़ लें और जब चाहें इसके संरक्षक बन जाएं। यहां तक कि नियम विरुद्ध विश्वविद्यालय की फीस तक अफसर तय करने लगे।
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यूजीसी की चेतावनी भी फाइलों में दफन
बहरहाल,हाल ही में जब 'द सूत्र' ने अफसरों की इस स्वेच्छारिता को उजागर किया तब 12 साल बाद इन्हें उक्त स्थगन आदेश समाप्त करवाने की सुध आई। इसके बाद,विभाग की ओर से बीते माह ही एक याचिका न्यायालय में दायर कर प्रकरण की सुनवाई जल्द करने की अपील की गई,लेकिन एक अन्य प्रकरण 8652/2015 जिसमें यूजीसी ने उच्च शिक्षा विभाग को फर्जी दस्तावेजों का हवाला देकर स्थगन शून्य करवाने की सलाह दी भी,विभाग इस मामले में बीते एक दशक में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा।
न राजपत्र में अधिसूचना हुई, न निकाय का गठन
महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय साल 1995 में एक अधिनियम के तहत स्थापित किया गया था। चार साल बाद यानी 1999 में इससे जुड़ा एक और संशोधित अधिनियम आया,लेकिन हैरत की बात यह कि दोनों ही अधिनियम को लेकर राजपत्र में अब तक कोई अधिसूचना जारी नहीं हुई। संशोधित अधिनियम में विश्वविद्यालय के मुख्य प्रायोजक निकाय पीठम के गठन का भी प्रावधान तय है,लेकिन इसका गठन भी अब तक नहीं हो सका। बावजूद इसके,विश्वविद्यालय धड़ल्ले से चल रहा है।
इसे लेकर विभाग की ओर से तैयार प्रकरण क्रमांक आर-06/सीएमएस/सीसी/15/38 में स्वयं इस बात पर हैरत जताई गई कि बिना प्रायोजक निकाय के विश्वविद्यालय का संचालन किया जाना गंभीर विषय है। इसी नस्ती में इस बात का उल्लेख भी है कि यूजीसी द्वारा तय विनियम का पालन नहीं होने से इसकी उपाधियों की वैधता पर भी प्रश्नचिन्ह है,हालांकि इस मामले में कार्यवाही यूजीसी द्वारा की जानी थी।
विश्वविद्यालय के जिम्मेदारों का ‘मौन व्रत’
इन सभी मामलों को लेकर द सूत्र ने विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.प्रमोद वर्मा से बिंदुवार उनका अभिमत मांगा। प्रो.वर्मा ने स्वयं को विश्वविद्यालय मुख्यालय से बाहर प्रवास पर बताकर प्रभारी रजिस्ट्रार संदीप शर्मा से संपर्क साधने की बात कही।
प्रो.वर्मा ने कहा कि उन्होंने संबंधित प्रश्न प्रभारी रजिस्ट्रार को भेज दिए हैं। इधर,जब प्रभारी रजिस्ट्रार से संपर्क करने का प्रयास किया गया तो उन्होंने न कॉल रिसीव किया, न ही व्हाटसएप पर भेजे गए संदेश का कोई जवाब दिया।
विद्यार्थियों का भविष्य दांव पर, शासन की चुप्पी सवालों के घेरे में
इस पूरे प्रकरण से साफ है कि महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षा विभाग, दोनों ही अपने-अपने स्तर पर गंभीर सवालों के घेरे में हैं। न्यायालय के स्पष्ट आदेश, यूजीसी की चेतावनियां और आंकड़ों में भारी विसंगतियां यह संकेत देती हैं कि न केवल विद्यार्थियों के भविष्य से खिलवाड़ हो रहा है, बल्कि सरकारी तंत्र भी आंख मूंदकर इस व्यवस्था को चलने दे रहा है।