सरकार की मेहरबानी से बुलंदियों पर महर्षि वैदिक विश्वविद्यालय

अफसरशाही अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ ले तो किसी भी निजी संस्थान का जायज—नाजायज तरीके से फलना-फूलना कोई हैरानी की बात नहीं। मध्य प्रदेश में महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय पर राज्य का उच्च शिक्षा विभाग भी कुछ इसी तरह मेहरबान रहा।

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Ravi Awasthi
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भोपाल।
जब अफसरशाही अपने कर्तव्यों से मुँह मोड़ ले, तो किसी भी निजी संस्थान का अनियमित तरीकों से फलना-फूलना कोई नई बात नहीं होती। मध्य प्रदेश में महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय (MMYVV) पर राज्य का उच्च शिक्षा विभाग भी कुछ इसी तरह मेहरबान रहा।

सरकारी संरक्षण की परछाई में यह विश्वविद्यालय वर्षों से नियमों की अनदेखी कर फलता-फूलता रहा है। जिम्मेदार अधिकारी न केवल आंखें मूंदे रहे, बल्कि कई बार तो सीधे नियमों के विपरीत जाकर आदेश भी जारी किए गए।

नकल की जांच में बाधा बना "ऊपरी कॉल"

साल 2022 में नरसिंहपुर स्थित परमहंस महाविद्यालय में परीक्षा के दौरान खुलेआम नकल करते छात्रों का वीडियो वायरल हुआ। छात्रों के मोबाइल फोन पर गूगल से सहायता लेते हुए साफ देखा जा सकता था। मामला मीडिया की सुर्खियों में आया, छात्र संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किए।

 मामले की जांच के लिए उच्च शिक्षा विभाग ने एक पांच सदस्यीय समिति गठित की, जिसका नेतृत्व प्रोफेसर डॉ. वीणा वाजपेयी कर रही थीं।

शिकायतकर्ताओं को समिति के समक्ष बुलाया भी गया। लेकिन इससे पहले कि जांच आगे बढ़ती, मुख्यालय से आए एक 'फोन कॉल' ने जांच को ठंडे बस्ते में डाल दिया। यह तय किया गया कि जांच अब मुख्यालय करेगा। परंतु न कोई नई समिति बनी, न कोई रिपोर्ट सामने आई। मामला यथास्थिति में दबा रहा।

 

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फीस निर्धारण का अधिकार किसका?

उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि किसी भी शिक्षण संस्थान की फीस तय करना विभाग का अधिकार नहीं, बल्कि यह कार्य प्रवेश एवं शुल्क विनियामक समिति (AFRC) और निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग (PURC) का है। लेकिन इसके विपरीत, 2019 में विभाग के ओएसडी धीरेंद्र शुक्ला ने एक आदेश (क्रमांक 208) जारी कर महर्षि विश्वविद्यालय के बीएड पाठ्यक्रम की फीस तय कर दी और छात्रवृत्ति पोर्टल पर अपलोड भी करा दी।

यह सिलसिला यहीं नहीं रुका। बाद में भी विभिन्न अधिकारियों ने नियमों से बाहर जाकर विश्वविद्यालय के लिए आदेश जारी किए। जब AFRC ने इन आदेशों को रद्द किया, तब भी विभाग की ओर से कोई स्पष्ट कार्रवाई नहीं की गई।

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डिग्री पाठ्यक्रमों की अनुमति भी सवालों के दायरे में

महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय को वैदिक विषयों – जैसे दर्शन, पुराण, वेद, आगम तंत्र आदि – तक सीमित रखा गया है। अन्य पाठ्यक्रम केवल राज्य सरकार या यूजीसी की अनुमति से ही संचालित किए जा सकते हैं। बावजूद इसके, बिना यूजीसी की अनुमति के विश्वविद्यालय में के मुख्यालय और इसके बाहर जाकर भी  डिग्री पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जिसका खुलासा पहले भी हो चुका है।

नियमित विद्यार्थियों की संख्या को लेकर भी भ्रम की स्थिति है। साल 2022 में भोपाल जिला अदालत में  एक बयान में यह संख्या 6 हजार बताई गई,लेकिन इसी वर्ष में राज्य विधानसभा में जो जानकारी आई,उसमें यह आंकड़ा 10 हजार से अधिक बताया गया।

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संबंद्धता को लेकर भी है विवाद

बीएड पाठ्यक्रम के लिए NCTE से ली गई अनुमति भी विवादित है। विभागीय दस्तावेजों में इस निजी विश्वविद्यालय को रानी दुर्गावती यूनिवर्सिटी, जबलपुर से संबद्ध होना बताया गया, लेकिन सूचना के अधिकार (RTI) के तहत प्राप्त उत्तर में रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय ने ऐसी किसी संबद्धता से इनकार किया।

स्पष्ट है कि एक विश्वविद्यालय दूसरे विश्वविद्यालय को संबद्धता नहीं दे सकता। इस मामले में महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रमोद वर्मा से संस्थान का पक्ष जानने का भी पूरा जतन किया गया। उन्हें दो बार फोन कॉल किए। कॉल रिसीव नहीं करने पर विस्तृत जानकारी के साथ व्हाट्स एप संदेश भेजा,लेकिन इसका भी जवाब उन्होंने नहीं दिया। 

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तब 'कृपा' ही सबसे बड़ा कानून

नियमों के विपरीत जाकर आदेश जारी करना,संबंधित शिकायतों,शीर्ष स्तर से आई शिकायतों को दबाए रखना या नहीं मिलने का बहाना करना,विभागीय कार्यवाही में संचालनालय व मंत्रालय में तालमेल नहीं होना या मंत्रालय को गुमराह करना,गंभीर शिकायतों पर भी शीर्ष अधिकारियों की चुप्पी व इन्हें हल्के में लेना कई गंभीर सवाल खड़े करता है;

1.क्या नियम विरुद्ध काम करने वाले निजी संस्थानों को सरकारी संरक्षण प्राप्त है?

2.क्या अफसरशाही की चुप्पी संस्थान विशेष को लाभ पहुंचाने की मंशा का संकेत है?

3.क्या यह सब जानबूझकर 'सरकारीकरण' की दिशा में उठाया गया कदम है,ताकि किसी विवाद की स्थिति में संस्थान को न्यायालय में इसका लाभ मिल सके ?

 

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पारदर्शी जांच और जवाबदेही से ही जवाब संभव

इन सभी प्रश्नों के उत्तर उच्च स्तर की पारदर्शी जांच और जवाबदेही से ही मिल सकते हैं,लेकिन जब जवाबदेही धुंधली हो और नियम बेमानी, तब 'कृपा' ही सबसे बड़ा कानून बन जाती है। 

इस बारे में विभाग प्रमुख अनुपम राजन व ओएसडी डॉ अनिल पाठक ने कहा कि विभाग किसी संस्थान की फीस तय नहीं करता,लेकिन वे विभाग से ऐसे किसी आदेश के जारी होने की बात भी अस्वीकार करते हैं। जबकि द सूत्र के पास विभाग के ऐसे सभी आदेश हैं जो लगभग हर साल जारी किए गए।