महर्षि वैदिक विश्वविद्यालय में मनमाने तरीके से चांसलर की नियुक्ति

मध्य प्रदेश के कटनी जिले में स्थापित महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय का अक्सर विवादों से नाता रहा है। मनमाफिक तरीके से कामकाज,यहां आम बात है। विवि के नए चांसलर चयन में भी यही हुआ।

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Ravi Awasthi
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Girish Verma
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भोपाल।
महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय में नियमों की किस तरह अनदेखी होती है,यूनिवर्सिटी में कुलाधिपति का चयन इसकी बानगी है। विश्वविद्यालय ने संस्थान प्रमुख गिरीश वर्मा को पुन: चांसलर बनाया,लेकिन सरकार ने इस फैसले को अमान्य कर दिया।

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अपनी स्थापना वाले अधिनियम को ही किया अनदेखा

महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय वर्ष 1995 में पारित अधिनियम अंतर्गत अस्तित्व में आया। इसमें कुलाधिपति यानी विश्वविद्यालय के चांसलर नियुक्ति को लेकर साफतौर पर कहा गया कि संस्थान पहले तीन नामों का पैनल तय करेगा। यह पैनल राज्य सरकार को भेजा जाएगा और सरकार की सिफारिश के आधार पर ही नए कुलाधिपति का चयन हो सकेगा। नए कुलाधिपति का कार्यकाल चार वर्ष के लिए होगा।

मनमाफिक तरीके से हो गया चयन

सूत्रों के मुताबिक,विश्वविद्यालय प्रबंधन ने पिछले दिसंबर में संस्थान प्रमुख गिरीश वर्मा को विश्वविद्यालय का नया कुलाधिपति नियुक्त किया। वर्मा इससे पहले भी विश्वविद्यालय के चांसलर रहे हैं,लेकिन उनकी पुनर्नियुक्ति में नियमों की पूरी तरह अनदेखी की गई। कुलाधिपति चयन के लिए न तो किसी अन्य नाम पर विचार हुआ न ही कोई औपचारिक पैनल ही बनाया गया। बताया जाता है कि विश्वविद्यालय के नए कुलपति प्रमोद वर्मा के चयन को लेकर भी इसी तरह नियमों की अनदेखी की गई।

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सरकार ने फैसले को किया अमान्य

कुलाधिपति चयन के बाद विश्वविद्यालय प्रबंधन ने इसकी सूचना राज्य के उच्च शिक्षा विभाग को दी। जबकि चयन के लिए तीन नामों का पैनल पहले भेजा जाना था। इस पर सरकार की ओर से किसी एक नाम पर सिफारिश किए जाने के बाद ही यह नियुक्ति की जा सकती थी,लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इधर,नियमों का पालन नहीं होने पर विभाग ने फैसले को अमान्य करते हुए गत 28 फरवरी को विश्वविद्यालय प्रबंधन को नोटिस भेजा। इसमें अधिनियम का पालन नहीं किए जाने को लेकर सात दिन में जवाब तलब किया गया।

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अटपटे तर्क से विभाग असहमत,मांगा पैनल

विभागीय सूत्रों के अनुसार,सरकार के नोटिस के जवाब में पूर्ववर्ती कुलाधिपति चयन के दौरान दिए गए पैनल को ही स्वीकार करने की बात कही गई।

विभाग ने इसे भी अमान्य करते हुए नए सिरे से तीन नामों का पैनल भेजने के निर्देश विश्वविद्यालय प्रबंधन को दिए हैं। इस पत्राचार में दो माह से अधिक वक्त बीतने के बाद भी विभाग को अब तक नया पैनल नहीं मिला।

विभाग के अपर मुख्य सचिव अनुपम राजन ने इसकी पुष्टि की। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय से नया पैनल मांगा गया है। इसके बाद ही कुलाधिपति चयन की प्रक्रिया आगे तय होगी।

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