भोपाल।
मध्य प्रदेश विधानसभा सिर्फ एक इमारत नहीं, लोकतंत्र का पवित्र मंदिर है। इसमें पूछे जाने वाले विधायकों के सवाल इस मंदिर की वह घंटियां हैं, जिनकी गूंज से जनता की आवाज़ सत्ता के कानों तक पहुंचती है।
सोचिए,अगर मंदिर से ही घंटियां गायब हो जाएं तो फरियाद की गूंज कैसे पहुंचेगी? ऐसा ही कुछ हुआ है वारासिवनी से कांग्रेस विधायक विवेक विक्की पटेल के साथ, जिनकी आवाज़ पिछले बजट सत्र में उस वक्त दबा दी गई जब उनके द्वारा पूछे गए मान्यता प्राप्त सवाल ही सदन की प्रश्नोत्तरी से गायब हो गए।
ये कोई साधारण चूक नहीं । यह उस लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर सवाल है, जो जनता के प्रतिनिधियों को जवाब मांगने का अधिकार देती है। जब सवाल ही मिटा दिए जाएं, तो जवाबदेही की उम्मीद महज एक छलावा बनकर रह जाती है।
मप्र विधानसभा सचिवालय की ऐसी ही एक कारगुजारी से पीड़ित विधायक पटेल ने हाल ही में विधानसभा के प्रमुख सचिव अवधेश प्रताप सिंह को पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने अपनी पीड़ा जाहिर की। पटेल पहली बार के विधायक हैं। उनका संसदीय कार्य अनुभव कम है,लेकिन अपने अधिकारों के प्रति वह जागरूक हैं।
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स्वीकृत,अदृश्य सवाल एक मूक मजाक !
पटेल ने अपने पत्र में लिखा कि उन्होंने विधानसभा सचिवालय की निर्धारित प्रक्रिया के तहत बजट सत्र में एक निजी विश्वविद्यालय से जुड़े दो अलग-अलग सवाल तय समयावधि में आनलाइन जमा किए।
दोनों ही सवालों के ग्राह्य यानी स्वीकृत होने की लिखित सूचना भी उन्हें सचिवालय से मिली। पटेल ने लिखा कि दोनों ही प्रश्न 11 मार्च को लिए जाने थे,लिहाजा इनकी पूरी तैयारी कर वह सदन में पहुंचे,लेकिन वह उस वक्त अंचभित रह गए जब उनका एक अहम सवाल क्रमांक 504 प्रश्नोत्तरी में शामिल ही नहीं किया गया। जाहिर है,जब सवाल गोल था तो उत्तर भी गोल ही रहा और इस तरह निजी विश्वविद्यालय की कारगुजारी सामने नहीं आ सकी।
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विधायक के पत्र से मचा हड़कंप
विधायक के इस पत्र के बाद राज्य विधानसभा सचिवालय में हड़कंप मचा हुआ है। हाल ही में विधायक पटेल ने प्रमुख सचिव सिंह से व्यक्तिगत मुलाकात भी की और मामले की जांच की मांग रखी। विधानसभा प्रमुख सचिव एपी सिंह स्वयं भी इस प्रकरण को लेकर हतप्रभ हैं। उन्होंने कहा-वह दिखवाते हैं कि चूक कहां हुई।
सवालों के चयन में पारदर्शिता का संकट
विधानसभा सचिवालय में प्रश्नों का इस तरह गायब होना। इन्हें अग्राह्याय यानी अस्वीकृत कर देना या फिर प्रश्नकाल के लिए सवालों का चयन। सचिवालय की ऐसी तमाम अपारदर्शी प्रक्रिया,आमतौर पर सवालों के दायरे में रही है। सवाल सदन में दिए गए आश्वासन,विभागों से जवाब पाने वाले लंबित प्रश्नों को लेकर भी उठते रहे हैं। इन सब मामलों में विधानसभा सचिवालय के अमले का रोल बेहद महत्वूपर्ण होता है।
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आश्वासनों की फाइलों पर जमी धूल
सदन में गहन चर्चा के बाद मंत्रियों की ओर से दिए गए आश्वासनों पर त्वरित कार्रवाई को लेकर न तो विधानसभा सचिवालय गंभीर है, न सरकार। सचिवालय से संबंधित दस्तावेज तय समय में विभागों को नहीं भेजे जाते और विभागीय अफसर तो इनसे बचना ही चाहते हैं।
सदन में दिए गए आश्वासन से जुड़े कुछ मामले ऐसे भी सामने आए,जिन्हें सरकार सात साल बाद भी पूरे नहीं कर सकी।
मप्र विधानसभा के पिछले स्थापना दिवस पर हुई चर्चा के दौरान यह बात सामने आई कि विधायकों के करीब एक हजार से अधिक ऐसे सवाल जिनके उत्तर अब तक नहीं मिल सके।
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भूतपूर्व हुए लेकिन नहीं मिल सके जवाब
कुछ विधायक ऐसे भी हैं जो अब भूतपूर्व हो गए,लेकिन सदन में पूछे गए अपने सवालों के जवाब नहीं पा सके।
सदन के नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने बीते दिनों विधानसभा सचिवालय से कुछ अहम दस्तावेज गायब होने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा-हमने बीना विधायक निर्मला सप्रे की सदस्यता को लेकर मय दस्तावेज शिकायत विधानसभा सचिवालय में दर्ज कराई,लेकिन ये विधानसभा से गुम होने की बात कही जा रही है।