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मंडला स्थित कान्हा नेशनल पार्क में पुलिस मुठभेड़ के दौरान मारे गए हीरन परते के मामले को लेकर मंगलवार को विधानसभा में विपक्ष ने सरकार को घेर लिया। कांग्रेस विधायकों ने सरकार पर आरोप लगाया कि पुलिस ने पहले मृतक को नक्सली बताया और बाद में उसे नक्सल समर्थक करार दिया। इसपर सरकार ने जवाब दिया कि अगर नक्सल कनेक्शन नहीं निकला तो 1 करोड़ रुपए मुआवजा दिया जाएगा। दूसरी ओर, मृतक के परिजनों का कहना है कि वह केवल वनोपज एकत्र करने के लिए घर से कुल्हाड़ी और पानी लेकर निकला था।
विपक्ष ने पूछा निर्दोष या नक्सली किसे मारा
विधानसभा में विपक्ष ने सरकार से पूछा कि पुलिस ने नक्सली को मारा या निर्दोष आदिवासी को? कांग्रेस विधायक ओमकार सिंह मरकाम ने तंज कसते हुए कहा कि अगर हीरन परते सच में नक्सली था, तो फिर उसके परिवार को 10 लाख का मुआवजा क्यों दिया? इसके जवाब में सरकार ने कहा कि परिवार को मुआवजा मानवीय आधार पर दिया गया है। मजिस्ट्रियल जांच के की जाएगी।
निर्दोष की जान की कीमत 1 करोड़
राज्यमंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल ने कहा कि अगर नक्सली नहीं निकला तो 1 करोड़ और परिवार के सदस्य को सरकारी नौकरी देंगे। यानी सरकार का कहना है कि यदि गलती से जान चली गई तो उसकी जान की कीमत 1 करोड़ रुपए है। सवाल यह भी उठ रहे हैं कि सरकार पहले गोली चला देती है और पहचान बाद में पक्की करती है कि निर्दोष की जान ली है या नक्सली को मारा गया है।
सरकार का तर्क पुलिस की कार्रवाई पारदर्शी
राज्यमंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल ने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि पुलिस की कार्यप्रणाली पूरी तरह पारदर्शी और निष्पक्ष है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के स्थायी आदेशों के तहत मजिस्ट्रियल जांच की प्रक्रिया पहले से ही जारी है।
निर्दोषों को नक्सली बताकर मार रही फोर्स: विक्रांत भूरिया
जब सरकार ने न्यायिक जांच को लेकर कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया, तो कांग्रेस विधायकों ने सदन के गर्भगृह में जोरदार नारेबाजी करते हुए सरकार पर आदिवासी विरोधी नीति अपनाने का आरोप लगाया और विरोधस्वरूप सदन से वॉकआउट कर दिया। इसके बाद कांग्रेस ने विधानसभा के बाहर भी प्रदर्शन किया। कांग्रेस के आदिवासी विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष, डॉ. विक्रांत भूरिया ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि हॉक फोर्स अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए निर्दोष आदिवासियों को नक्सली बताकर फर्जी मुठभेड़ों में मार रही है।
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सरकार ने बताई ये कहानी
राज्यमंत्री पटेल ने बताया कि 9 मार्च को पुलिस को सूचना मिली थी कि झुलुप फॉरेस्ट कैंप में दो वॉचर नक्सलियों के संपर्क में हैं और उन्हें राशन की आपूर्ति कर रहे हैं। इसके बाद पुलिस ने वॉचरों पर नजर रखी और घात लगाकर नक्सलियों के आने का इंतजार किया। उसी दोपहर जब तीन संदिग्ध राशन लेने पहुंचे, तो पुलिस और नक्सलियों के बीच करीब दो घंटे तक मुठभेड़ चली।
फायरिंग खत्म होने के बाद पुलिस को एक शव बरामद हुआ, लेकिन उसकी पहचान किसी नक्सली प्रोफाइल से मेल नहीं खाई। बाद में, 12 मार्च को मृतक की पत्नी द्वारा दर्ज कराई गई गुमशुदगी रिपोर्ट के आधार पर शव की पहचान हीरन परते के रूप में हुई।
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