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कमलेश सारड़ा@मंदसौर।मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में गांधीसागर फॉरेस्ट रिट्रीट फेस्टिवल के दौरान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सुरक्षा में गंभीर चूक सामने आई है। शनिवार (13 सितंबर) सुबह फेस्टिवल के उद्घाटन अवसर पर सीएम हॉट एयर बैलून में बैठे। उड़ान भरने से पहले ही तेज हवाओं के कारण बैलून खतरनाक ढंग से झूलने लगा। बर्नर की लपटें बैलून के कपड़े तक पहुंच गईं। सुरक्षाकर्मियों ने तत्काल स्थिति संभालते हुए मुख्यमंत्री मोहन यादव को नीचे उतारा और बड़ा हादसा टल गया।
ब्लैकलिस्टेड कंपनी को मिला आयोजन
इस पूरे आयोजन की जिम्मेदारी गुजरात की कंपनी लल्लूजी एंड संस के पास थी। यही कंपनी 2019 में प्रयागराज अर्थकुंभ में टेंट सिटी लगाने के दौरान 100 करोड़ रुपए के फर्जी बिल लगाने के आरोप में ब्लैकलिस्ट हुई थी। उस समय यूपी सरकार ने इसे पांच साल के लिए ठेकों से प्रतिबंधित कर दिया था। बावजूद इसके कंपनी को मध्यप्रदेश में लगातार चौथे साल गांधीसागर फॉरेस्ट रिट्रीट फेस्टिवल का ठेका मिला। कंपनी पर इससे पहले भी ईको सेंसेटिव क्षेत्र में पक्के निर्माण करने और स्थानीय लोगों की अनदेखी करने जैसे गंभीर आरोप लग चुके हैं। अब सीएम डॉ.मोहन यादव की सुरक्षा में चूक में बड़ा खुलासा हुआ है।
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बैलून पायलट के पास नहीं था लाइसेंस
भारत में हॉट एयर बैलून उड़ाने के लिए डीजीसीए से लाइसेंस लेना जरूरी है। बैलून की गुणवत्ता, बर्नर और गैस सिलेंडर सहित तमाम सुरक्षा मानकों की जांच के बाद ही यह अनुमति मिलती है। लेकिन आयोजन में बैलून उड़ाने वाले पायलट इरफान ने दावा किया कि लाइसेंस की जरूरत नहीं है, मेरे पास अनुभव है। कंपनी के मैनेजर सौरभ गुप्ता ने भी कहा कि 80 फीट ऊंचाई तक रस्सी से बंधा बैलून उड़ाना सुरक्षित है। विशेषज्ञों के अनुसार यह तर्क गलत है और बिना लाइसेंस यह उड़ान पूरी तरह अवैध है।
विधायकों की नाराजगी
कार्यक्रम में सुरक्षा चूक के साथ-साथ प्रोटोकॉल का भी उल्लंघन हुआ। कई विधायकों को ठहरने की समुचित सुविधा नहीं दी गई। उन्हें कहा गया कि टेंट में रुक जाइए। इस पर नाराज विधायकों ने साफ कहा कि वे अपनी जान जोखिम में नहीं डाल सकते और रात को वापस लौट गए। इससे जनप्रतिनिधियों में नाराजगी स्पष्ट रूप से देखने को मिली।
सवालों के घेरे में आयोजन
गांधीसागर जैसे ईको सेंसेटिव क्षेत्र में ब्लैकलिस्टेड कंपनी को ठेका दिए जाने से लेकर मुख्यमंत्री और विधायकों की सुरक्षा व सुविधा की अनदेखी तक पूरा मामला अब सवालों के घेरे में है। क्या नियमों और प्रोटोकॉल को दरकिनार कर कंपनी को बचाने की कोशिश की गई? और क्या प्रशासनिक जिम्मेदारियों का पालन सही तरीके से किया गया? यह बड़े सवाल अब सरकार और आयोजन समिति दोनों के सामने खड़े हैं।