राजधानी भोपाल के बड़ा तालाब, छोटा तालाब, बिरला मंदिर और केरवा डेम के पानी में माइक्रोप्लास्टिक (प्लास्टिक के छोटे-छोटे कण) की घातक मात्रा पाई गई है। एम्प्री (एडवांस्ड मटेरियल प्रोसेस रिसर्च इंस्टीट्यूट) के मुताबिक, बड़े तालाब के पानी में 1480 से 2050 कण (Particle) प्रति घन मीटर (Per Cubic Meter), जबकि छोटे तालाब में 2160 से 2710 कण प्रति घन मीटर (Per Cubic Meter) माइक्रोप्लास्टिक मिले हैं।
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वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट की स्थिति
केरवा डैम के प्लांट में ट्रीटमेंट से पहले पानी में 820 कण प्रति घन मीटर (Per Cubic Meter) माइक्रोप्लास्टिक थे, जबकि ट्रीटमेंट के बाद यह संख्या घटकर 450 हो गई। बिरला मंदिर प्लांट में उपचार से पहले 790 कण प्रति घन मीटर (Per Cubic Meter) और उपचार के बाद 330 कण पाए गए हैं। इंदौर के देव धारा प्लांट में भी ट्रीटमेंट से पहले 1150 कण प्रति घन मीटर (Per Cubic Meter) और बाद में 600 कण प्रति घन मीटर (Per Cubic Meter) माइक्रोप्लास्टिक मिले।
प्रदूषण के मुख्य कारण
प्लास्टिक Waste Management नियम 2016 लागू होने के बाद प्लास्टिक उत्पादन में 226.88% की बढ़त हुई है। इंदौर, जबलपुर, दमोह, ग्वालियर, बैतूल, सागर, सतना,रतलाम, शहडोल, विदिशा, सांची, बालाघाट, मंदसौर समेत 11 नगर निकायों ने 50 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबंध और इनके प्रबंधन के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए हैं। वहीं, भोपाल, भिंड, और शिवपुरी जैसे शहरों ने प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन की जानकारी तक उपलब्ध नहीं कराई।
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एमपीपीसीबी की निष्क्रियता
मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मंडल (एमपीपीसीबी) ने ई-वेस्ट के प्रबंधन में भी लापरवाही दिखाई है। 16 लाल श्रेणी के उद्योगों में से 5 ने मासिक रिपोर्ट नहीं दी, लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
कैग की चौंकाने वाली रिपोर्ट
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, 1000 कण प्रति घन मीटर (Per Cubic Meter) से अधिक माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा चिंताजनक है। मध्य प्रदेश के जल स्रोतों में यह मात्रा 2710 कण प्रति घन मीटर (Per Cubic Meter) तक पहुंच चुकी है।
एमपी एग्रो की गड़बड़ियां
एमपी एग्रो इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट कार्पोरेशन ने 2017-18 में 10.29 करोड़ के 864 पानी के टैंकर खरीदे, जिनमें नियमों का उल्लंघन हुआ है। इसके अलावा, रेडीमेड बस स्टॉप और जिम के सामान जैसे उत्पादों का व्यापार किया गया, जो कंपनी के उद्देश्यों में शामिल नहीं है।
मध्य प्रदेश के पानी स्रोतों (Water Sources) में बढ़ते माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण से न केवल इंसान के स्वास्थ्य (Health) पर, बल्कि जानवर और पर्यावरण (Environment) पर भी गंभीर खतरा मंडरा रहा है। पानी के प्रबंधन (Water Management) और अपशिष्ट प्रबंधन (Waste Management) की व्यवस्थाओं को सुधारना बेहद जरूरी है।
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