मोहन सरकार में राज्य मंत्रियों को काम के बंटवारे ( Division of Work ) से नाखुश रहने की खबरें सामने आ रही हैं। कैबिनेट मंत्रियों द्वारा राज्य मंत्रियों (State Ministers) को केवल सीमित कार्यभार सौंपने की चर्चा अब आम हो गई है। इन मंत्रियों को मुख्य रूप से दो प्रकार के काम दिए गए हैं। पहला, विधानसभा में आने वाले सवालों का उत्तर देना, खासतौर से वे सवाल जो प्रश्नकाल में नहीं उठाए जाते। दूसरा, महकमे के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के छोटे-मोटे तबादलों की फाइलें देखना।
असंतुष्ट हैं राज्यमंत्री
अब यह चर्चा आम है कि इस स्थिति से राज्यमंत्री असंतुष्ट हैं। क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि उनके पास कोई बड़ा काम नहीं है। नरेंद्र शिवाजी पटेल, जो स्वास्थ्य एवं चिकित्सा विभाग के राज्यमंत्री हैं, को उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला (Rajendra Shukla) ने कुछ महत्वपूर्ण कार्य दिए हैं। उन्होंने पटेल को 20 करोड़ रुपए तक के काम और स्वास्थ्य केंद्रों के निर्माण से संबंधित टेंडरों का जिम्मा सौंपा है। बाकी राज्यमंत्रियों को इतने महत्वपूर्ण काम नहीं दिए गए।
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चाहिए और ज्यादा काम
- राज्यमंत्री दबी जुबान में कहते हैं कि उन्हें और काम की जरूरत है ताकि वे अपनी कार्यक्षमता को सिद्ध कर सकें।
मुख्यमंत्री के पास भी कई विभागों का लोड है। इनमें सामान्य प्रशासन (General Administration), गृह, जेल, औद्योगिक नीति, नर्मदा घाटी विकास, जनसंपर्क, खनिज साधन, विमानन, लोकसेवा प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण विभाग शामिल हैं।
- कैबिनेट मंत्रियों में भी कुछ ऐसे हैं जिन्हें कम जिम्मेदारी मिली है। नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा मंत्री राकेश शुक्ला का विभाग सबसे कम बजट वाला है।
- शुक्ला को हाल ही में ऊर्जा विकास निगम का अध्यक्ष बनाया गया, जिससे उनके कर्मचारियों की संख्या 50 से 150 हो गई। अनुसूचित जाति कल्याण मंत्री नागर सिंह चौहान भी अधिक जिम्मेदारी चाहते हैं, क्योंकि वन विभाग उनके पास से हटा लिया गया है।
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स्वतंत्र प्रभार वाले मंत्री भी असंतुष्ट
इससे स्वतंत्र प्रभार वाले मंत्री भी असंतुष्ट हैं। जैसे कुटीर एवं ग्रामोद्योग मंत्री दिलीप जायसवाल, कौशल विकास व रोजगार मंत्री गौतम टेटवाल, और मछुआ कल्याण एवं मत्स्य विकास मंत्री नारायण सिंह पंवार के पास ज्यादा फाइलें नहीं आतीं, जिससे उनकी भूमिका सीमित हो जाती है।
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