संजय गुप्ता, INDORE. कांग्रेस ( Congress ) की इंदौर लोकसभा सीट में अक्षय बम के नाम वापस लेन के बाद मोती सिंह को फिर से उम्मीदवार बनाने के लिए लगी याचिका इंदौर हाईकोर्ट में खारिज हो गई है। हाईकोर्ट ने साफ कहा कि यह चुनाव याचिका का मामला है और चुनाव में कोई भी आर्डर बैक नहीं होता है। आपका फार्म पहले ही रिजेक्ट हो चुका है। वहीं मोती सिंह ने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट मे अपील करेंगे।
मोतीसिंह की ओर से यह रखा गया पक्ष
अधिवक्ता विभोर खंडेलवाल ने मोती सिंह की ओर से पक्ष रखा था कि सिंह ने बम के साथ सब्सीट्यूट कैंडीडेट के रूप में फार्म भरा था। क्योंकि राजनीतिक दल की ओर से नाम था इसलिए प्रस्तावक दस की जगह केवल एक के हस्ताक्षर थे। लेकिन मेरा फार्म 26 अप्रैल को स्क्रूटनी कमेटी ने रिजेक्ट कर दिया क्योंकि इसमें दस प्रस्तावक के हस्ताक्षर नहीं थे। लेकिन जब 29 अप्रैल को बम ने फार्म वापस ले लिया तो तो मेरा नाम जिंदा होता है और मुझे जो दस नाम नहीं होने के चलते रिजेक्ट किया गया था वह आधार खत्म हो गया और मैं फिर 29 को सब्सीट्यूट प्रत्याशी के तौर पर आ जाता हूं, मेरा नाम मान्य किया जाए और कांग्रेस का चिन्ह दिया जाए।
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हाईकोर्ट ने इस आधार पर खारिज किया तर्क
हाईकोर्ट जस्टिस विवेक रूसिया ने इस आधार पर मामला खारिज कर दिया उन्होंने कहा कि यदि आप दस प्रस्तावक के हस्ताक्षर रखते हुए फार्म को 29 अप्रैल तक नाम वापसी तक जिंदा रखते तो फिर मूल प्रत्याशी के नाम वापस लेने पर आपका अधिकार पैदा होता। लेकिन चुनाव में कोई भी आर्डर बैक नहीं होता है, इसलिए स्क्रूटनी कमेटी ने जब आपका फार्म ही 26 को रिजेक्ट कर दिया तो फिर 29 अप्रैल को आपका अधिकार ही जिंदा नहीं होता है। आपको 29 अप्रैल तक अपने आपकी स्थिति को बनाए रखना था, दस प्रस्तावक के हस्ताक्षर होते और फार्म रिजेक्ट नहीं होता तो फिर मूल प्रत्याशी के फार्म के विड्राल होने के बाद आप राजनीतिक दल के प्रत्याशी बनने और चुनाव चिन्ह पाने का दावा कर सकते थे।
मोती सिंह की याचिका रद्द, चुनाव याचिका लगा सकते हैं
खंडेलवाल ने कहा कि हम आर्डर चैलेंज नहीं कर रहे हैं लेकिन इन्होंने क्लर्कीकल मिस्टेक की है, यदि दस प्रस्तावक के हस्ताक्षर नहीं थे तो फिर हमे समय देते तो हम करा लेते। इस पर चुनाव आयोग की ओर से कहा गया कि इन्होंने स्क्रूटनी कमेटी के समय कोई आपत्ति ही नहीं ली सिंह के फार्म रिजेक्ट होने पर। हाईकोर्ट ने कहा ऐसी स्थिति पहली बार आई है, लेकिन मुद्दा यह है कि आपका फार्म 26 अप्रैल को रिजेक्ट हो चुका है, इसलिए कुछ नहीं हो सकता है। आपका मुद्दा चुनाव याचिका में उठाना होगा। फार्म रिजेक्ट होने के बाद आप चुनाव मैदान से बाहर हो गए हैं। यह मामला खत्म होता है। सब्सटीट्यूट कैंडीडेट कोई अलग कैटेगरी नहीं है लेकिन जब उसका फार्म स्वीकार हो तो बाकी बाते बाद में आती है। याचिका में चुनाव आयोग, जिला चुनाव अधिकारी, रिटर्निंग अधिकारी और अक्षय बम को पार्टी बनाया था।
ट्रेन के टिकट से समझाया हाईकोर्ट ने
जस्टिस विवेक रूसिया ने इस मामले में अधिवक्ता को ट्रेन के टिकट को लेकर समझाया। जब वेटिंग क्लीयर नहीं होती तो आप ट्रेन में चढ जाते है लेकिन आपको जनरल का टिकट लेना होता है। यदि वेटिंग क्लीयर नहीं हुई और कोई टिकट आपके पास नहीं हुआ तो आप विदाउट टिकट में आ जाओगे। आपने 26 अप्रैल को ही फार्म रिजेक्ट करा लिया, जबकि आपत्ति लेने थी और दस प्रस्तावक के हस्ताक्षर रख फार्म को 29 अप्रैल तक जिंदा रखना था।
मोती सिंह कौन है
मोती सिंह पटेल कांग्रेस के देपालपुर क्षेत्र के नेता है और दुग्ध संघ के अध्यक्ष है। लेकिन विधानसभा चुनाव के दौरान प्रत्याशी विशाल पटेल के खिलाफ काम करने के चलते पार्टी ने उन पर अनुशासनहीनता को लेकर कार्रवाई की। लेकिन जब पटेल बीजेपी में चले गए तो इन्हें तत्काल सारी कार्रवाई स्थगित कर फिर से कांग्रेस में लिया गया। पार्टी ने सूरत और खजुराहो की घटना को देखते हु इन्हें डमी प्रत्याशी के तौर पर उतारा था।
जीतू पटवारी शाम को करेंगे रणनीति का खुलासा
उधर... अब प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी ने शाम 6.30 बजे प्रेस कांफ्रेंस बुलाई है। वह आगे की रणनीति का खुलासा करेंगे। इसमें तय होगा कि वह नोटा को वोट देने की अपील करेंगे या फिर बाकी बचे प्रत्याशियों में से किसी एक को समर्थन देने की घोषणा करेंगे।