आशा कार्यकर्ता को मिली आत्महत्या रोकने की जिम्मेदारी, घर-घर जाकर करेंगी जांच

मध्य प्रदेश में आशा कार्यकर्ताओं को अब आत्महत्या रोकथाम की जिम्मेदारी दी गई है। वे घर-घर जाकर लोगों से सवाल पूछेंगी, जिससे यह तय किया जाएगा कि उन्हें मानसिक इलाज की आवश्यकता है या नहीं।

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Sandeep Kumar
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मध्य प्रदेश में अब आशा कार्यकर्ताओं को आत्महत्या रोकने के लिए महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है। आशा कार्यकर्ताओं को घर-घर जाकर लोगों से सवाल पूछने होंगे, जिनके आधार पर यह तय किया जाएगा कि किसी व्यक्ति को मानसिक इलाज की आवश्यकता है या नहीं। यह कदम राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य मिशन के तहत उठाया गया है, और इसके द्वारा प्रदेश के 16 जिलों में इस पहल की शुरुआत की गई है।

सुसाइड प्रिवेंशन ट्रेनिंग प्रोग्राम की शुरुआत

आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए, भारत सरकार ने राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत सुसाइड प्रिवेंशन ट्रेनिंग प्रोग्राम शुरू किया है। इस कार्यक्रम के तहत एमपी के 16 जिलों के करीब 1200 आशा कार्यकर्ताओं को दिसंबर 2022 में ट्रेनिंग दी गई थी। उन्हें यह प्रशिक्षण दिया गया कि वे अपने इलाके के लोगों से मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बातचीत करें और यह जानने की कोशिश करें कि कोई आत्महत्या के ख्याल तो नहीं ला रहा।

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आशा कार्यकर्ताओं की भूमिका

आशा कार्यकर्ता मध्यप्रदेश में हर 200 घरों से जुड़े हुए हैं, जो उन्हें स्थानीय परिस्थितियों के बारे में जानकारी देने में सक्षम बनाता है। उनकी पहचान और पहुंच के कारण, उन्हें इस प्रोग्राम में गेटकीपर की भूमिका दी गई है। गेटकीपर का काम किसी भी मानसिक परेशानी से जूझ रहे व्यक्ति की पहचान करना है और उन्हें समय पर चिकित्सा सुविधा तक पहुंचाना है।

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गेटकीपर का कार्य और प्रशिक्षण

गेटकीपर के लिए एक विशेष प्रशिक्षण मॉड्यूल तैयार किया गया है, जिसमें सात मुख्य बिंदुओं पर काम किया जाता है:

  • अपने आसपास के लोगों के बीच विश्वास बनाना।
  • उन व्यक्तियों की पहचान करना जिनके मन में आत्महत्या के विचार आते हैं।
  • उनके जोखिम वाले कारकों को समझना।
  • उनके तनाव स्तर का आकलन करने के लिए सवाल पूछना।
  • उन्हें मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से जुड़वाना।
  • टेली मानस और मनहित ऐप की मदद से उन्हें सेवाएं प्रदान करना।
  • समय-समय पर फॉलोअप करना। 

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आत्महत्या रोकने की जिम्मेदारी सभी की

भोपाल के सीएमएचओ डॉ. प्रभाकर तिवारी के अनुसार, आत्महत्या रोकने की जिम्मेदारी केवल मेडिकल क्षेत्र के लोगों की नहीं है, बल्कि इसे समाज के हर वर्ग को जोड़ने की जरूरत है। इसीलिए, स्कूल टीचर्स, पुलिसकर्मियों, सरपंच, और सामाजिक नेताओं को भी इस कार्यक्रम में प्रशिक्षित किया जाएगा। इससे ऐसे लोगों की पहचान करना संभव होगा जो मानसिक रूप से परेशान हैं, और उनकी मदद की जा सकेगी।

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5 बिंदुओं में समझिए पूरी स्टोरी

✅ मध्य प्रदेश में अब आशा कार्यकर्ताओं को आत्महत्या रोकने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। वे घर-घर जाकर लोगों से सवाल पूछेंगी।

✅ यह कार्यक्रम राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य मिशन के तहत शुरू किया गया है, और शुरुआत में इसे प्रदेश के 16 जिलों में लागू किया गया है। 

✅ आशा कार्यकर्ताओं को गेटकीपर की भूमिका दी गई है, यानी वे मानसिक परेशानियों का सामना कर रहे व्यक्तियों की पहचान कर सके।

✅ सीएमएचओ डॉ. प्रभाकर तिवारी के अनुसार, आत्महत्या रोकने की जिम्मेदारी केवल मेडिकल क्षेत्र की नहीं है। 

✅ आत्महत्या की घटनाओं को देखते हुए, भारत सरकार ने सुसाइड प्रिवेंशन ट्रेनिंग प्रोग्राम शुरू किया है। दिसंबर 2022 में करीब 1200 आशा कार्यकर्ताओं को इस प्रोग्राम के तहत मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या रोकने की ट्रेनिंग दी गई थी।

 

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