/sootr/media/media_files/2024/12/17/3OLbP6CpgqTPEQ2bsypJ.jpg)
इतना महंगा चुनाव! देश में एकसाथ चुनाव कराने को लेकर मंगलवार, 17 दिसंबर को संसद में 198 के विरुद्ध 297 वोट से एक देश- एक इलेक्शन बिल स्वीकार कर लिया गया है। इस बिल को लाने का उद्देश्य पूरे देश में एक साथ चुनाव कराना है। एक साथ चुनाव यानी लोकसभा-विधानसभा और अन्य सभी चुनाव को एक समय में कराया जाएगा। इस खर्च में ईवीएम और वीवीपैट के लिए ही 8 हजार करोड़ की जरूरत होगी। इस खर्च को लेकर सरकार का दावा है कि इसमें बहुत हद तक कमी आएगी।
आज हम मध्यप्रदेश को लेकर विधानसभा चुनाव में होने वाले खर्च की ही बात करेंगे। ADR और विभिन्न एजेंसियों के अनुसार मप्र में 2018 में 300 करोड़ और 2023 के विधानसभा चुनाव में खर्च करीब 500 करोड़ आया है। आज हम बताएंगे कि मध्यप्रदेश विधानसभा की 230 सीटों पर सरकारी और प्रत्याशियों का कुल खर्च कितना होता है।
चुनाव में होने वाला खर्च ऐसे होता है तय
भारत निर्वाचन आयोग, लोकसभा चुनाव में खर्च की सीमा मुद्रास्फीति सूचकांक के आधार पर फिक्स करता है। पिछले सालों में सेवाओं और वस्तुओं की कीमतों में हुई बढ़ोतरी के आधार पर खर्च की सीमा तय की जाती है। निर्वाचन आयोग ने 2020 में एक कमेटी बनाई थी। इस कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर एक उम्मीदवार के चुनाव खर्च की सीमा 70 से बढ़ाकर 95 लाख रुपए की गई है। वहीं विधानसभा में उम्मीदवार अब 20 की जगह 40 लाख खर्च सकता है।
2023 में चुनाव खर्च करीब 67 गुना बढ़ा
पांच साल में महंगाई बढ़ने के कारण 2023 में मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव का खर्च 300 बढ़कर 500 करोड़ रुपए हो गया था। यानी 2018 की तुलना में इस बार चुनाव कराने का खर्च करीब 67 गुना बढ़ गया है। 1 नवंबर 1956 को पहली मध्यप्रदेश विधानसभा अस्तित्व में आने के बाद ये 16वां विधानसभा चुनाव है। निर्वाचन आयोग के अफसरों बताया कि 2023 के विधानसभा चुनाव में किस मद में कितना खर्च बढ़ा।
ऐसे समझें चुनाव में होने वाला सरकारी खर्च...
1. चुनाव आयोग और प्रशासनिक प्रबंधन का खर्च
- कर्मचारियों का वेतन-भत्ता : चुनाव कराने के लिए सरकारी अधिकारियों, शिक्षकों और अन्य विभागीय कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई जाती है। इनके वेतन और भत्तों पर खर्च होता है।
- ट्रेनिंग प्रोग्राम : चुनाव से पहले अधिकारियों और कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जाता है, जिसके लिए संसाधनों पर खर्च होता है।
- मतदान केंद्र : मतदान केंद्रों की संख्या और सुविधाओं के हिसाब से भवनों का किराया, बिजली, पानी जैसी व्यवस्थाओं पर खर्च होता है।
2. सुरक्षा व्यवस्था पर खर्च
- सुरक्षा बलों की तैनाती : चुनाव में कानून-व्यवस्था बनाने के लिए स्थानीय पुलिस और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों (CAPF) की तैनाती करते हैं। इनको लाने-ले जाने, रहने और भोजन जैसी सुविधाओं पर खर्च होता है।
- अस्थाई सुरक्षा केंद्र : संवेदनशील और अति-संवेदनशील क्षेत्रों के लिए अस्थाई सुरक्षा केंद्र बनाए जाते हैं।
3. EVM और VVPAT का खर्च
- मशीनों का प्रबंधन : चुनाव आयोग मतदान के लिए ईवीएम और वीवीपैट मशीनों का उपयोग करता है। इनकी खरीद, रखरखाव, परिवहन और संचालन पर खर्च होता है।
- तकनीकी स्टाफ और सर्विसिंग : मशीनों के सही संचालन के लिए तकनीकी स्टाफ और इंजीनियरों की नियुक्ति होती है।
4. मतदान की जागरुकता और संचार का खर्च
- मतदाताओं को जागरूक करना : वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने के लिए मतदाताओं को जागरूक करने प्रचार अभियान चलाए जाते हैं। इनमें पोस्टर, बैनर, टीवी, सोशल मीडिया और अखबारों का उपयोग होता है।
- डिजिटल साधनों पर खर्च : चुनाव आयोग डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर विज्ञापन, हेल्पलाइन नंबर, मोबाइल ऐप्स आदि के माध्यम से मतदाताओं को सुविधा प्रदान करता है।
5. मतदाता सूची का प्रबंधन और सुधार
- मतदाता सूची : चुनाव से पहले मतदाता सूची का पुनरीक्षण और सुधार का काम किया जाता है। इसके लिए डेटा एंट्री और प्रिंटिंग के कार्यों पर खर्च होता है।
- EPIC वितरण : मतदाताओं को पहचान पत्र बांटने की प्रक्रिया में संसाधनों का उपयोग होता है।
6. मतगणना प्रक्रिया का खर्च
- मतगणना केंद्रों की स्थापना : प्रत्येक विधानसभा में मतगणना केंद्र बनाए जाते हैं, यहां ईवीएम मशीनों की गिनती की जाती है।
- सुरक्षा व्यवस्था : मतगणना के दौरान सुरक्षा बलों की तैनाती होती है।
- संचार और तकनीकी सुविधाएं : गिनती के परिणामों को त्वरित प्रसारित करने के लिए तकनीकी साधनों और इंटरनेट पर खर्च होता है।
7. चुनाव सामग्री, ईंधन और भोजन पर कितना खर्च...
खर्च | 2018 | 2023 |
वोटर कार्ड | 06 | 07 |
वोटर लिस्ट | 23 | 20 |
अफसरों-कर्मचारियों का मानदेय | 78 | 97 |
गाड़ियों का पेट्रोल-डीजल | 16 | 20 |
विज्ञापन पर खर्च | 12 | 20 |
भोजन पर खर्च | 08 | 12 |
चुनाव मटेरियल | 40 | 50 |
नोट: खर्च करोड़ रुपए में; 2023 के अनुमानित आकड़े
प्रत्याशी और पार्टी के खर्च का गणित
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में एक प्रत्याशी का चुनाव खर्च करीब 40 लाख रुपए निर्धारित किया गया था। 2023 में हुए 230 सीटों पर चुनाव में दो मुख्य पार्टियों के उम्मीदवारों का खर्च जोड़ा जाए तो ये खर्च 18 हजार 400 करोड़ पहुंचता है। जबकि ADR और अन्य एजेंसी के अनुसार 500 करोड़ रुपए खर्च किया गया था। इस हिसाब से प्रत्याशियों का खर्च ही सरकारी खर्च से 4 गुना बैठता है।
300 करोड़ से ज्यादा की बचत
यह तो सिर्फ मध्यप्रदेश के खर्च का ब्यौरा है। इसी आधार पर यदि देश के सभी राज्यों का खर्च निकाला जाए तो कितना बड़ा आंकड़ा सामने आएगा इसका अनुमान लगाया जा सकता है। राजनीतिक दल क्या कहते हैं यह अलग बात है। हम सिर्फ उस खर्च की बात कर रहे हैं जो चुनावों में होता है और जो टैक्स पेयर का पैसा होता है। यह तो सिर्फ सरकारी खर्च था। इसके बाद राजनीतिक दल, उम्मीदवार अलग से पैसा खर्च करते हैं। काला धन और शराब की बड़ी मात्रा भी इन चुनावों मे जब्त होती है। काफी हद तक इन सब खर्च में भी अंकुश लग सकेगा।
thesootr links
- मध्य प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- रोचक वेब स्टोरीज देखने के लिए करें क्लिक