मध्य प्रदेश में बढ़ती ऑडिट आपत्तियां, अफसरों की अनदेखी से सरकारी खजाने को हो रहा करोड़ों का नुकसान

मध्य प्रदेश सरकार के विभिन्न विभागों में वित्तीय अनियमितताओं और गबन के मामलों में अनदेखी की जा रही है। पांच दशकों में लाखों ऑडिट आपत्तियां अनमानी रहती हैं, जिससे सरकार को करोड़ों रुपये का नुकसान हो रहा है।

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रामानंद तिवारी@भोपाल

मध्य प्रदेश में पिछले पांच दशकों से सरकारी खजाने में होने वाले नुकसान का कारण ऑडिट आपत्तियों का निस्तारण न होना है। विशेष रूप से नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग और पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में सरकारी खजाने को ज्यादा नुकसान पहुंच रहा है। समय पर समाधान न होने के कारण आर्थिक गड़बड़ियां और गबन के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। 

नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग और पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अफसरों के अलावा अन्य विभाग के जिम्मेदार आला अफसर स्थानीय निधि संपरीक्षा के ऑडिट के बाद सामने आने वाली आपत्तियों का जबाव देने में गुरेज कर रहे हैं। विभाग के अफसरों द्वारा की जा रही अनदेखी की वजह से आपत्तियों की संख्या में निरंतर इजाफा हो रहा है।

स्थानीय निधि संपरीक्षा के द्वारा लगाई गई आपत्तियों की जानकारी विभाग द्वारा 4 माह के अंदर आपत्ति के निराकरण करने के लिए पालन प्रतिवेदन के माध्यम से प्रस्तुत करना होती है। लाखों आपत्तियों में से महज चुनिंदा आपत्तियों का पालन प्रतिवेदन चुनिंदा अफसरों द्वारा निराकरण हेतु प्रस्तुत किया जा रहा है।

अफसरों की अनदेखी की वजह से स्थानीय निधि संपरीक्षा के होने वाले ऑडिट के बाद संज्ञान में आने वाली आपत्तियों की संख्या 2023-24 में बाइस लाख चौरासी हजार अठ्ठासी थी। इनमें से कुछ का समाधान होने के बाद बाइस लाख 83 हजार दो सौ सत्रह तक पहुंच गई है।

इसके बावजूद जिम्मेदार अफसर मूकदर्शक की भूमिका में नजर आ रहे हैं। स्थानीय निधि संपरीक्षा के ऑडिट में अनियमितताओं की संख्या बढ़ती जा रही है। विभागों की लापरवाही की वजह से सरकारी खजाने को बड़ा नुकसान हो रहा है। अधिकारियों की नकेल कसने के बजाय, वे समस्याओं से बचने की कोशिश कर रहे हैं।

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अफसरों की अनदेखी से शासन को हो रही आर्थिक हानि

दरअसल, नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अफसरों के अलावा अन्य विभाग के आला अफसरों द्वारा स्थानीय निधि संपरीक्षा के ऑडिट के बाद मिलने वाली आपत्तियों का प्रतिवेदन समय-सीमा मे प्रस्तुत ना किए जाने की वजह से सरकार द्वारा जारी की गई राषि में गड़बड़ी करने वालों के खिलाफ कार्यवाही नहीं हो पा रही है।

वित्तीय अनुशासन भी लागू नहीं हो पा रहा है क्योंकि आडिट आपत्ति में सामने आने वाली गड़बड़ी की जानकारी संबधित निकाय प्रस्तुत नहीं कर रहे हैं जिससे विभाग में होने वाली वित्तीय अनियमितताओं पर अंकुश नहीं लग पा रहा है और जिन लोगों द्वारा गड़बड़ियां की गई, सालोंसाल बीत जाने के बाद भी कोई कार्रवाई ना होने की वजह से मामले लंबित हैं और या फिर गड़बडी करने वाले कर्मचारी और अफसर संसार छोड़ गए अथवा उनका रिटायरमेंट हो चुका है।

ऐसी स्थिति में अनियमित भुगतान और गबन के मामलों में वसूली नहीं हो पा रही है। समय सीमा में पालन प्रतिवेदन स्थानीय निधि संपरीक्षा को ना मिलने की स्थिति में कोई कार्यवाही नहीं हो पा रही है जिससे शासन को आर्थिक हानि निरंतर हो रही है। 

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4 पॉइंट्स में समझें पूरी खबर... 

👉 ऑडिट आपत्तियों की अनदेखी: मध्य प्रदेश के विभिन्न विभागों के अफसरों द्वारा स्थानीय निधि संपरीक्षा के ऑडिट में सामने आई आपत्तियों का समाधान नहीं किया जा रहा, जिससे आर्थिक गड़बड़ियों और गबन के मामले बढ़ रहे हैं। विभाग समय पर जवाब नहीं दे रहे, जिससे सरकारी खजाने को लगातार नुकसान हो रहा है।

👉 ऑडिट रिपोर्ट में बढ़ोतरी: 2023-24 के दौरान, स्थानीय निधि संपरीक्षा के ऑडिट से सामने आई आपत्तियों की संख्या बढ़कर 22 लाख 83 हजार 217 तक पहुंच गई है। अफसरों द्वारा अनदेखी की वजह से इन आपत्तियों का निराकरण कम और वृद्धि ज्यादा हो रही है।

👉 विभागों की लापरवाही से वित्तीय अनुशासन नहीं लागू हो पा रहा: विभागों की लापरवाही के कारण सरकारी खजाने में वित्तीय अनुशासन नहीं लागू हो पा रहा, जिससे गड़बड़ी करने वाले अफसरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही है। वर्षों से लंबित मामलों में कोई समाधान नहीं हो रहा है, जिससे सरकार को करोड़ों का नुकसान हो रहा है।

👉 सरकारों के रवैये का असर: पिछले पांच दशकों में कांग्रेस और भाजपा की सरकारों के बावजूद पेंडिंग ऑडिट आपत्तियों को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। विभागों की अनदेखी के कारण सरकार को लगातार नुकसान हो रहा है, और अधिकारियों की अनदेखी की वजह से घपले और अनियमितताएं बढ़ रही हैं।

ऑडिट आपत्तियों की संख्या लाखों तक कैसे पहुंची

तकरीबन पांच दशक से ज्यादा समय से ऑडिट किए जाने की जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहे स्थानीय निधि संपरीक्षा के ऑडिटर द्वारा समय-समय पर नगरीय विकास विभाग में ऑडिट किया गया। लेकिन, दशकों से नगरीय विकास विभाग, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अलावा अन्य विभागों के द्वारा इन ऑडिट आपत्तियों की अनदेखी की वजह से  2023-24 में नगरीय निकाय के नगर निगम आवासीय संपरीक्षा में 31.03.2023 तक आपत्तियों की संख्या 33253, एवं नगर पालिका परिषद आवासीय संपरीक्षा में 42066, पश्चातवर्ती संपरीक्षा 43339, नगर परिषद पश्चातवर्ती संपरीक्षा 101542 इसके अलावा अन्य निकाय आवासीय संपरीक्षा 31655, पश्चातवर्ती संपरीक्षा 104116,संवर्ती संपरीक्षा 15826 इसके साथ ही कृ.उ.म.समिति आवासीय संपरीक्षा 12006. पश्चातवर्ती संपरीक्षा 47977,जिला पंचायत 9247,जनपद पंचायत 84723, ग्राम पंचायत ऑफलाइन 1158804 एवं ऑनलाइन 163607 इन सभी आपत्तियों की कुल संख्या 31.03.2023 तक अठारह लाख अढ़तालीस हजार एक सौ इकसठ थी।

उक्त आपत्तियों में इस सत्र में इजाफा होकर संख्या बाईस लाख चौरासी हजार अठ्ठासी तक पहुंच चुकी है। इसके अलावा इस सत्र में कुछ आपत्तियों के निराकरण के बाद आपत्तियों की संख्या 31.03.2024 तक कुल संख्या बाईस लाख तिरासी हजार दो सौ सत्रह शेष है। जबकि संबंधित विभागों द्वारा समय समय पर आपत्तियों का प्रतिवेदन भी प्रस्तुत किया है लेकिन आपत्तियों की संख्या को यदि प्रतिमाह के हिसाब से देखा जाए तो आपत्तियों की संख्या का निराकरण कम और इजाफा ज्यादा हुआ है।  इन आंकड़ो को देखकर स्वतः ही अनुमान लगाया जा सकता है कि ऑडिट आपत्तियों को लेकर संबंधित विभाग कितने सजग दिख रहे है। 

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इन विभागों का भी किया जाता है ऑडिट

स्थानीय निधि संपरीक्षा द्वारा नगरीय विकास विभाग,पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग, संचार, विश्वविद्यालयों, विकास प्राधिकरणों, मंडी, समितियां और ग्राम पंचायतों के अलावा अन्य जगहों पर भी समय-समय पर ऑडिट किया जाता है। ऑडिट के समय आने वाली आपत्तियों का प्रतिवेदन निराकरण के लिए संबंधित विभाग को प्रस्तुत करने के लिए निर्देषित किया जाता है।

सरकार बदलती रही, नहीं हो सकी कसावट

दिलचस्प बात यह है विगत पांच दशक में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों की सरकार आती-जाती रही, लेकिन इन लाखों की संख्या में पेंडिंग ऑडिट आपत्तियों पर किसी की नजर नहीं पड़ी। सभी सरकारें अपनी ढपली अपना राग अलापती रहीं। हालांकि महज सरकार को दोष नहीं दिया जा सकता।

विभाग के जिम्मेदार अफसरों की अनदेखी का नतीजा है कि सरकार को कई करोड़ों रुपए की हानि आपत्तियों के निराकरण के अभाव में हो रही है। जब किसी मामले में गड़बड़ी का मामला उजागर होता है, तब एक विभाग दूसरे विभाग पर ठीकरा फोड़ने की कवायद में जुट जाता है। बाद में सरकार की फजीहत होती है। यदि समय पर सरकार सजग रहे तो इस तरह के घपलों पर लगाम लग सकती है।

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FAQ

ऑडिट आपत्तियां क्या हैं और यह कैसे सरकार को नुकसान पहुंचाती हैं?
ऑडिट आपत्तियां वे वित्तीय गड़बड़ियां होती हैं जो सरकारी ऑडिट के दौरान सामने आती हैं। यदि इनका समाधान समय पर नहीं होता, तो यह सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाती हैं और आर्थिक अनियमितताओं पर नियंत्रण नहीं हो पाता।
मध्य प्रदेश में इतने बड़े पैमाने पर ऑडिट आपत्तियां क्यों बढ़ रही हैं?
मध्य प्रदेश में ऑडिट आपत्तियां बढ़ने का मुख्य कारण सरकारी अफसरों द्वारा इन आपत्तियों की अनदेखी और समय पर समाधान न करना है। इससे वित्तीय अनुशासन की कमी और गबन के मामलों में वृद्धि हो रही है।

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