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BHOPAL. मध्य प्रदेश में प्रशासनिक इकाइयों में कसावट लाने के उद्देश्य से की जा रही सीमांकन की कवायद खटाई में पड़ सकती है। इसकी बड़ी वजह जनगणना है। दरअसल, देशभर में 1 जनवरी 2025 से राष्ट्रीय जनगणना शुरू होने जा रही है। केंद्र 31 दिसंबर 2024 तक जिले, ब्लॉक और तहसीलों के सीमांकन के बाद सीमाएं फ्रीज करने का आदेश जारी कर चुका है।
यानी मोहन सरकार को जो भी करना है, वह दो महीने के भीतर ही करना होगा। अब यदि जमीनी हकीकत पर नजर दौड़ाएं तो प्रशा​सनिक इकाइयों के पुनर्गठन को लेकर अधिकारी- कर्मचारियों को प्रशिक्षण तक नहीं दिया गया है। ऐसे में तैयारी के बिना प्रशासनिक इकाइयों का पुनर्गठन पूरा होने को लेकर संशय है। वहीं, लोग भी जल्दबाजी में किए गए सीमांकन के पुराने अनुभव सुनाते नजर आ रहे हैं। हालांकि मध्य प्रदेश की मोहन सरकार दो महीने में प्रशासनिक इकाइयों का पुनर्गठन पूरा कर लेने का दावा कर रही है, लेकिन आयोग और प्रशासन की कदमताल बेमेल होने से फिलहाल ऐसा होना मुश्किल दिख रहा है। 'द सूत्र' ने इस मामले की गहराई से पड़ताल की तो कई जानकारियां सामने आईं। पढ़िए ये खास रिपोर्ट...!
क्या है माजरा... संक्षेप में समझ लीजिए
मध्य प्रदेश में लंबे अरसे से प्रशासनिक इकाइयों में कसावट और उनके स्वरूपों में बदलाव की मांग उठ रही थी। सरकार के स्तर पर भी इसकी जरूरत महसूस की जा रही थी। इसके बाद सीएम डॉ.मोहन यादव ने विधानसभा के मानसून सत्र के बाद सूबे में पुनर्गठन आयोग के गठन के आदेश दिए थे। आयोग में सेवानिवृत्त आईएएस अफसर और पूर्व एसीएस मनोज श्रीवास्तव के अलावा हाल ही में पूर्व संभागायुक्त मनोज शुक्ला को सदस्य के रूप में शामिल किया गया है। आयोग संभाग से लेकर सबसे छोटी प्रशासनिक इकाई यानी तहसीलों के आकार, सीमाओं सहित अन्य बिंदुओं की समीक्षा करेगा। पुनर्गठन के लिए आयोग के सामने हर इकाई की प्रशासनिक कसावट, अंतिम छोर तक आसान पहुंच, लोगों के आवागमन, मुख्यालय तक सीधी कनेक्टिविटी, कानून व्यवस्था और अन्य परिस्थितियों की सूक्ष्म समीक्षा चुनौती होगी।
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नए जिले, तहसीलों के गठन से बदला स्वरूप
1. अब यदि पिछले चलें तो बीते दो दशकों में मध्यप्रदेश में कई तहसील और जिले बनाए गए हैं। इस वजह से संभाग, तहसील और विकासखंडों का स्वरूप गड़बड़ा गया है।
2. कहीं स्थानीय भौगोलिक परिस्थितियों के कारण लोग नए जिले से जुड़ना चाहते हैं तो कहीं स्थानीय लोगों को नए जिले और तहसीलों में शामिल होने पर आपत्ति है। कहीं मुख्यालय तक पहुंच मार्ग का संकट है तो कई जगह मुख्यालय से दूरस्थ अंचल के बीच कनेक्टिविटी नहीं है।
3. कई जिलों में अधिकारी अपने सुदूर गांवों तक नहीं पहुंच पाते या पहुंचने में समय लगता है। जबकि पास के जिले से वहां तक सीधी कनेक्टिविटी है और अधिकारी वहां आसानी से पहुंच जाते हैं।
4. क्षेत्रीय भौगोलिक परिस्थतियों और विसंगतियों को दूर करने के लिए प्रशासन सैटेलाइट मैपिंग और दूसरे तकनीकी उपकरणों का सहारा ले रहा है। वहीं स्थानीय लोगों से भी बात की जा रही है।
5. तहसील, ब्लॉक और जिलों का सीमांकन किए जाने की तैयारी है। फिलहाल अब तक भोपाल संभाग में प्रशासकीय इकाइयों के सीमांकन के लिए समीक्षा की बात सामने आई है, 10 संभागों के जिले और दूसरी इकाइयों की समीक्षा के लिए दो महीने का समय कम पड़ सकता है।
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कहीं भौगोलिक परिस्थितियां तो कहीं कनेक्टिविटी की संकट
दो दशक में प्रदेश में तहसील और जिले नए बने हैं। जिलों की संख्या बढ़कर 56 हो गई है। तहसीलें की संख्या करीब 430 तक पहुंच गई है, लेकिन चार दशकों से विकासखंड 313 ही हैं। इस वजह से भौगोलिक और क्षेत्रीय संतुलन गड़बड़ा गया है। कुछ ब्लॉक यानी विकासखंड भौगोलिक रूप से नए जिले में शामिल कर दिए गए हैं, जबकि उनकी कनेक्टिविटी पुराने जिले से बेहतर है। कुछ मामलों में लोग नए जिले के साथ रहना चाहते हैं, लेकिन इन विकासखंडों को पुराने के साथ रखा गया है।
इस उदाहरण से समझिए क्यों है पुनर्गठन की जरूरत
- मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले इंदौर से पीथमपुर और महू की कनेक्टिविटी सीधी और सरल है। जबकि ये दो नगर धार जिले का हिस्सा हैं।
- बुदनी विकासखंड सीहोर जिले का हिस्सा है। जिला मुख्यालय से इसकी दूरी 109 किलोमीटर है। वहीं नर्मदा के दूसरे तट पर स्थित नर्मदापुरम जिले से बुदनी केवल 8 किलोमीटर दूर है।
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असर क्या पड़ रहा?
कनेक्टिविटी सही नहीं होने से केवल प्रशासनिक कार्यों के लिए लोग सीहोर जाते हैं। इसी तरह दो- तीन दशकों से तहसील और विकासखंडों का अनुपात गड़बड़ा गया है। सागर जिले का मंडीबामौरा कस्बा अब विस्तार ले चुका है, लेकिन यहां न तो थाना है और न तहसील।
विदिशा जिले के पठारी, उदयपुर कस्बों का विस्तार हो चुका है, लेकिन आबादी बढ़ने के बाद भी इन्हें तहसील का दर्जा नहीं मिला। शमशाबाद को विकासखंड का दर्जा देने की मांग दो दशकों से भी पुरानी है। आबादी से लेकर व्यावसायिक गतिविधियों के मामले में शमशाबाद संपन्न कस्बा है। यह आकार और आबादी में भी ब्लॉक मुख्यालय नटेरन से दोगुना बड़ा है, लेकिन इसका उन्नयन विकासखंड के रूप में नहीं हुआ है। अनूपपुर, सिंगरौली, छिंदवाड़ा, धार, बड़वानी जिले नर्मदा नदी के तटीय जिले हैं। यहां भी कई अंचल जिला मुख्यालय से पूरी तरह कटे रहते हैं। पुनर्गठन के दौरान इनकी समीक्षा भी बहुत जरूरी है।
जनता के बीच करना होगी रायशुमारी
परिसीमन आयोग के सदस्य मनोज श्रीवास्तव और मुकेश शुक्ला अपने प्रशासनिक साथियों सहित संभागवार सीमांकन की समीक्षा कर रहे हैं। पहले चरण में भोपाल संभाग के तहत आने वाले भोपाल, रायसेन, विदिशा, सीहोर जिलों की समीक्षा कर रहे हैं।
क्या कहता है आयोग
आयोग का कहना है पुनर्गठन के लिए जिला, विकासखंड, तहसील, नगरीय निकाय, पंचायतों के जनप्रतिनिधि, स्थानीय लोगों के साथ रायशुमारी करेंगे। संबंधित क्षेत्र की कनेक्टिविटी से लेकर प्रशासनिक इकाइयों के बीच संपर्क जैसी बातों पर भी गौर किया जाएगा। भौगोलिक स्थितियों से संबंधित शिकायतें भी सुनी जाएंगी। पुनर्गठन आयोग के सदस्य मनोज श्रीवास्तव सागर में भी अधिकारियों के साथ बैठक कर मशविरा ले चुके हैं। क्योंकि सागर संभाग विस्तारित सीमाओं वाला संभाग है, जिसके कई जिले अपनी सीमाओं को पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश से साझा करते हैं। वहीं, संभाग का जिला पन्ना भौगोलिक रूप से सतना जिले से जुड़ा है, जबकि प्रशासनिक व्यवस्था सागर से संचालित होती है। श्रीवास्तव का कहना है लोक और तंत्र के बीच की दूरी के कारण व्यवस्थाएं चरमरा जाती हैं। ऐसे में इनमें कसावट के लिए बहुत बारीकी से ध्यान देना होगा।
जनगणना के चलते जल्दबाजी न बन जाए मुश्किल
1 जनवरी से राष्ट्रीय जनगणना शुरू होने जा रही है। इससे पहले प्रदेश में प्रशासकीय इकाइयों के पुनर्गठन की समीक्षा और उसे अमलीजामा पहनाने की चुनौती आयोग और प्रदेश सरकार के सामने है। केवल 60 दिन में प्रदेश के 10 संभाग और 56 जिलों के 313 ब्लॉक और 430 से ज्यादा तहसीलों का नए सिरे से सीमांकन पर पुनर्गठन करना है। इसके लिए समय काफी कम बचा है। इस वजह से प्रशासकीय अमले द्वारा जल्दबाजी करने का अंदेशा है, जिससे पुनर्गठन में विसंगति छूटने पर लोगों को मुश्किल हो सकती है।
हालांकि आयोग का कहना है इकाइयों की सीमाएं केवल जनगणना के लिए फ्रीज की जाएंगी, सीमांकन पर इसका असर नहीं होगा। वहीं जनगणना जारी रहने के दौरान सीमांकन से क्षेत्रीय आंकड़े बदलने के सवाल पर प्रशासनिक अधिकारियों ने चुप्पी साध ली है।
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