कर्मचारियों की मौत के बाद अनुकंपा नियुक्ति के लिए भटकने मजबूर आश्रित

मध्य प्रदेश में अनुकंपा नियुक्ति के लिए भटकते परिवारों की हालात देख अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारा सिस्टम कितना संवेदनशून्य हो चला है। जहां अपने साथी के निधन के बाद उसके परिजन को अनुकंपा नियुक्ति देने में हजार रोड़े अटकाए जाते हैं।

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Sanjay Sharma
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BHOPAL. सरकारी महकमे कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे हैं। मैनपावर पर्याप्त नहीं होने की वजह से विभागों की कार्यशैली सवालों के घेरे में है। दूसरी ओर लाखों युवा भर्ती परीक्षा के बाद एमपीपीएससी और ईएसबी जैसी संस्थाओं के पेंच में उलझे हैं। तीसरा पक्ष ऐसा भी है जहां हजारों परिवार सालों से अनुकंपा नियुक्ति का इंतजार कर रहे। कुछ परिवार तो दर-दर भटकने के बाद अब उम्मीद ही छोड़ चुके हैं। अनुकंपा के लिए भटकते परिवारों की हालात देख अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारा सरकारी सिस्टम कितना संवेदनशून्य हो चला है। जहां अपने साथी के निधन के बाद उसके परिजन को अनुकंपा नियुक्ति देने में हजार रोड़े अटकाए जाते हैं। ये हजारों परिवार इंतजार कर रहे हैं डॉ.मोहन यादव की अनुकंपा का। उन्हें उम्मीद है व्यापारी, उद्योगपति, इंवेस्टर्स और दूसरे मामलों में रियायत दे रही सरकार उनके मामले में भी संवेदनशीलता दिखाएगी। 

नियमों की उलझन, नियुक्ति से वंचित हजारों परिवार

प्रदेश के सरकारी विभाग और उनकी संस्थाओं के कर्मचारियों का हादसों या बीमारी के चलते आकस्मिक निधन होने पर आश्रितों को अनुकंपा नियुक्ति दी है। इसके लिए बकायदा नियुक्ति नियम और गाइडलाइन हैं। लेकिन कभी नियमों में बदलाव की सफाई तो कभी पद खाली न होने और निर्धारित योग्यता का हवाला देकर अनुकंपा नियुक्ति की राह में रोड़े अटकाने का सिलसिला चला आ रहा है। इस रवैए से प्रदेश में हजारों परिवार अपने ही हक से वंचित हैं। किसी दिवंगत सरकारी कर्मचारी का बेटा मजदूरी करने मजबूर है तो कोई पढ़ाई छोड़कर घर चलाने की कठिनाई से जूझ रहा है।

अनुकंपा के लिए भटक रहे हैं आवेदक

एक अनुमान के मुताबिक बीते दो दशकों में प्रदेश में 15 हजार से ज्यादा सरकारी कर्मियों का आकस्मिक निधन हुआ है। इस कारण शिक्षा विभाग, नगरीय निकाय, निगम मंडल-बोर्डों में सबसे ज्यादा यानी 5 हजार से ज्यादा पद खाली हुए और अभी ज्यादातर में अनुकंपा नियुक्ति नहीं दी गई है। पंचायत, कृषि, लोक निर्माण, ग्रामीण यांत्रिकी, राजस्व, स्वास्थ्य और दूसरे विभाग में भी 2 हजार से ज्यादा आवेदक अनुकंपा के लिए भटक रहे हैं। कुछ मामलों को छोड़ दें तो अन्य सभी में आश्रित परिजनों की ओर से अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किए गए। 

आश्रितों को नहीं मिल पाई नियुक्ति

सरकारी अफसर अपने ही विभागों में वर्षों तक पदस्थ रहने वाले कर्मचारी की मौत के बाद परिजनों से मुंह फेर लेते हैं। अनुकंपा नियुक्ति के कुछ मामलों में तो पीड़ितों को नौकरी के लिए कोर्ट में लंबी लड़ाई भी लड़नी पड़ी है। आवेदनों पर लंबी चौड़ी प्रक्रिया, दस्तावेजी कार्रवाई और प्रतिवेदन, अनुशंसा की कवायद के बाद चंद हजार अनुकंपा का हक हासिल करने में कामयाब रहे। वहीं ज्यादातर आश्रितों को नियुक्ति नहीं मिल पाई। इस वजह से अब तक वे सरकारी दफ्तरों से लेकर सचिवालय-मंत्रालय और जनप्रतिनिधियों के चक्कर लगाते भटक रहे हैं। कुछ आश्रित तो अपने हक की लड़ाई लड़ते-लड़ते ओवर एज होकर घर बैठ चुके हैं।

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एक दशक से भृत्य, लिपिक पदों पर नियुक्तियां बंद

अब आपको कुछ मामले बताते हैं जिनमें दिवंगत लोकसेवकों के आश्रित अनुकंपा नियुक्ति की आस में भटक रहे हैं। ज्यादातर विभागों में एक दशक से भृत्य, लिपिक के पदों पर नियुक्तियां बंद पड़ी हैं। इन्हीं पदों पर अनुकंपा नियुक्ति के मामले सबसे ज्यादा लंबित हैं। शिक्षा विभाग में अनुकंपा के लिए भटकते परिजनों को अफसर ये कहकर टाल रहे हैं कि विभाग में अब उनके लिए पद ही नहीं है। इसे शासन स्तर से खत्म कर दिया गया है। इस वजह से दीपक रघुवंशी, सीमा जैन, रामनारायण चौहान, ज्योति शर्मा, मिथुन अहिरवार, अंकिता जैन, ललित लोधी, दुर्वेश रघुवंशी, आयुष श्रीवास्तव को एलडीसी यानी सहायक ग्रेड_3 और गंगाबाई, उमा प्रजापति, विनीता भार्गव को भृत्य के पद पर अनुकंपा नहीं दी गई है। वहीं अंकित साहू, गौरव शर्मा, विकास सतोरिया, आशीष रजक, मधु शर्मा, सचिन रजक, सचिन रुपौलिया, कृष्णकांत सेन को सहायक शिक्षक या अध्यापक संवर्ग में शामिल ही नहीं किया गया है।

ये है आश्रितों का दुखड़ा

1. विदिशा के गंजबासौदा तहसील में रहने वाले कृष्णकांत सेन का कहना है उनके पिता शिक्षक के रूप में कार्यरत थे। हृदयाघात के चलते मार्च 2012 में उनका निधन हो गया था। इस सदमे से उबरने के बाद उन्होंने विभाग में आवेदन किया था। कई महीनों बाद भी कोई प्रक्रिया शुरू नहीं हुई। सैकड़ों चक्ककर लगाने के बाद भी अफसर टालते रहे। वे विकासखंड शिक्षा कार्यालय से डीईओ और कलेक्टर कार्यालय ही नहीं भोपाल तक दौड़भाग करते रहे। कभी पद खाली न होने का कहकर टाला गया तो कभी योग्यता का बहाना बनाया गया। अब भी नियुक्ति की अनुकंपा नहीं हुई है।

2. देवरी के टिमरावन में पदस्थ अध्यापक हिम्मत सिंह की 2014 में अचानक हुई मौत के बाद उनकी बेटी रचना ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया था। पहले तो अफसर उन्हें भटकाते रहे। साल भर बाद उनसे बीएड-डीएड का सर्टिफिकेट मांगा और अपात्र की श्रेणी में डाल दिया। रचना के पास पर्याप्त समय था और वह ये डिग्री हासिल कर सकती थी लेकिन मौका दिए बिना प्रकरण नस्ती कर दिया गया। अब रचना परिवार की बड़ी बेटी होने के नाते मां और भाई के साथ काम करके घर चला रही है।

3. छतरपुर के गुलगंज में पदस्थ रामलखन रुपौलिया 2022 तक प्राथमिक शाला बैजू का पुरवा में पदस्थ थे। इसी दौरान अचानक उनका निधन हो गया। अब उनका बेटा सचिन दो साल से अनुकंपा नियुक्ति की आस में दफ्तर-दफ्तर भटक रहा है। शिक्षा विभाग, रोजगार गारंटी योजना के बीच उसकी अनुकंपा का मामला अटका हुआ है। अफसर उसे बार_बार दस्तावेजों के लिए चक्कर लगवाते रहे और अब ओपन स्कूल द्वारा अंकसूची में सुधार नहीं करने की वजह से उसे अपात्र बताकर अनुकंपा नियुक्ति से वंचित कर दिया गया है। या जा रहा है। 

अनुकंपा नियुक्ति में ही सख्ती क्यों

प्रदेश में सात हजार से ज्यादा लोग अनुकंपा नियुक्ति का हक मांगने भटक रहे हैं। डेढ़ दशक में कई तो आयुसीमा पार कर चुके हैं और अब अपात्र होकर घर बैठे हैं। कई कोर्ट में लड़ रहे हैं तो कुछ लोग सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं। इन सभी मामलों में अनुकंपा नियुक्ति के सख्त प्रावधानों का रोड़ा हर बार अटकता है। कई परिवार को एक दशक बाद भी इसके कारण नौकरी से वंचित रह जाते हैं। इसी वजह से अब अनुकंपा नियुक्ति के सख्त प्रावधानों को संवेदनशीलता का ध्यान रखने शिथिल करने की मांग उठ रही है। बीते दिनों इसी को लेकर प्रदेश भर में राज्य कर्मचारी संघ धरना देकर मांगपत्र भी सौंप चुका है।

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