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मध्यप्रदेश की राजनीति करवट लेने को तैयार है। लंबे समय से अटके प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के नाम पर अंतिम मुहर लग गई है। वीडी शर्मा की जगह सामान्य वर्ग से ही आने वाले बीजेपी नेता को ही प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाएगा। ऐलान महज औपचारिकता है, जिसे दिल्ली की रणनीतिक शतरंज के बाद सार्वजनिक किया जाएगा।
दिल्ली-उत्तरप्रदेश की जद्दोजहद में अटका नाम
इस देरी के पीछे कारण सिर्फ नाम तय करने का नहीं, बल्कि उससे जुड़ा राजनीतिक संदेश भी है। भाजपा हाईकमान चाहता है कि एकसाथ कई राज्यों में नेतृत्व परिवर्तन का बिगुल बजे, ताकि किसी एक राज्य की घोषणा दूसरे राज्य की दुविधा को उजागर न करे। खासतौर पर दिल्ली और उत्तरप्रदेश की आंतरिक जद्दोजहद ने मध्यप्रदेश में अध्यक्ष के नाम के ऐलान को रोक रखा है। पार्टी नहीं चाहती कि मध्यप्रदेश जैसे निर्णायक राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की घोषणा, दिल्ली की असमंजस की छाया में हो।
मध्यप्रदेश को चाहिए नया चेहरा, नया मैसेज
मध्यप्रदेश की राजनीति में भाजपा अब नए चरण में प्रवेश कर चुकी है। लोकसभा चुनावों के बाद पार्टी को अब संगठन को पुनर्संयोजन की जरूरत है। मुख्यमंत्री CM डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में पार्टी सरकार में पूरी मजबूती से कायम है, लेकिन संगठनात्मक दृष्टि से नया चेहरा जरूरी माना जा रहा है, जो पार्टी कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार कर सके और बूथ स्तर तक की संरचना को सक्रिय बनाए।
सूत्र बताते हैं कि नए अध्यक्ष का चयन इस कसौटी पर हुआ है कि वह संगठन की नब्ज को जानते हों, जनसंघ से लेकर भाजपा के विचारों की गहराई तक पैठ रखते हों और मुख्यमंत्री के साथ समन्वय बनाकर 2028 की तैयारियों को जमीनी स्तर पर मूर्त रूप दे सकें।
दिल्ली-यूपी ने रोकी मध्यप्रदेश की रफ्तार
दरअसल, दिल्ली और उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों में पार्टी के भीतर प्रदेश अध्यक्ष को लेकर जारी खींचतान ने मध्यप्रदेश के नेतृत्व परिवर्तन की रफ्तार को रोक रखा है। दिल्ली में जहां एकमत नहीं बन पा रहा, वहीं उत्तरप्रदेश में आगामी विधानसभा चुनावों के लिए चेहरा तय करना भाजपा के लिए सामजिक समीकरणों का खेल बन गया है। पार्टी हाईकमान दिनेश शर्मा को उपयुक्त मानते हैं तो दूसरी ओर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ किसी दलित चेहरे को आगे लाने के पक्षधर हैं। इस अंतर्द्वंद्व के कारण पार्टी अभी तक कुछ राज्यों में नेतृत्व परिवर्तन की घोषणा नहीं कर पाई, लेकिन अब सूत्रों के मुताबिक अगले एक हफ्ते में यह जटिलता सुलझ जाएगी और मध्यप्रदेश समेत आधा दर्जन राज्यों में संगठन के नए सेनापति मैदान में होंगे।
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राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन भी समीकरणों में उलझा
भाजपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन भी अब अगली कड़ी है। पार्टी संविधान के अनुसार यह प्रक्रिया जनवरी 2025 तक पूरी होनी चाहिए थी, लेकिन काफी देर हो चुकी है। गौरतलब है कि जेपी नड्डा के उत्तराधिकारी यानी नए राष्ट्रीय अध्यक्ष को आने वाले समय में 12 राज्यों के विधानसभा चुनाव कराने की जिम्मेदारी उठानी होगी, ऐसे में यह चयन भी बेहद रणनीतिक होगा।
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