सीधे सीएम मोहन यादव को रिपोर्ट करेगी भोपाल-इंदौर की मेट्रोपॉलिटन अथॉरिटी, ACS लेवल के अफसर बनेंगे चेयरमैन

इस साल भोपाल-इंदौर महानगर प्राधिकरण का शुभारंभ किया जाएगा। इससे इन शहरों और आसपास के जिलों में विकास होगा। महानगरीय क्षेत्र में बेहतर कनेक्टिविटी, रोजगार और शहरीकरण होगा।

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मुख्यमंत्री मोहन यादव का ड्रीम प्रोजेक्ट भोपाल- इंदौर की मेट्रोपॉलिटन अथॉरिटी इस साल साकार हो जाएगा। दिल्ली के NCR की तर्ज पर बनने वाले इस प्रोजेक्ट से न सिर्फ और भोपाल और इंदौर के विकास को गति मिलेगी, बल्कि दोनों महानगरों से जुड़े जिलों में भी विकास की राह खुल जाएगी। thesootr को मिली जानकारी के अनुसार जल्द ही इसे हरी झंडी मिलने वाली है। बड़ी बात ये है कि इन मेट्रोपॉलिटन अथॉरिटी के चैयरमैन सीधे मुख्यमंत्री को रिपोर्ट करेंगे।

ACS स्तर के अफसर बनेंगे चेयरमैन

मेट्रोपॉलिटन अथॉरिटी में ACS स्तर के अफसरों को चेयरमैन बनाने की तैयारी है। यह मुख्य सचिव को रिपोर्ट नहीं करेंगे, बल्कि सीधे मुख्यमंत्री को ही रिपोर्ट करेंगे। बता दें कि मध्य प्रदेश सरकार भोपाल और इंदौर के आस-पास के क्षेत्रों को मेट्रोपॉलिटन अथॉरिटी ( Metropolitan Authority ) की तर्ज पर विकसित करने की योजना बना रही है। इसका उद्देश्य इन शहरों के आसपास के जिलों के विकास को उनसे जोड़ना है, ठीक जैसे दिल्ली एनसीआर में हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों को शामिल किया गया है।

आपसास के जिले होंगे शामिल

इस योजना के तहत भोपाल, विदिशा, सीहोर, रायसेन, राजगढ़, शाजापुर, आगर-मालवा, होशंगाबाद और हरदा सहित कुल 9 जिलों को मिलाकर एक स्टेट कैपिटल रीजन का निर्माण किया जाएगा। बता दें कि यह प्रस्ताव 8 साल पहले भी सामने आया था, लेकिन उस दौरान मूर्त रूप नहीं ले सका। भोपाल की तरह ही इंदौर में भी मेट्रोपॉलिटन अथॉरिटी का गठन होगा। इंदौर मेट्रोपॉलिटन एरिया करीब 7500 वर्ग किमी का होगा। इसमें इंदौर, उज्जैन, धार, पीथमपुर और देवास का हिस्सा शामिल होगा। रीजनल प्लान बनने से सभी शहरों में नियोजित विकास पर काम होगा और प्लानिंग एरिया में किसी तरह की दिक्कत नहीं आएगी।

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मेट्रो संचालन की परेशानी दूर होगी

मेट्रो ट्रेन के लिए जरूरी शर्तों में मेट्रोपॉलिटन एरिया भी है, लिहाजा उज्जैन और पीथमपुर तक इसे विस्तार देने में भी परेशानी नहीं आएगी। अब तक 1600 से 3000 वर्ग किमी एरिया में इसे बनाने की बात हो रही थी, अब अगले 50 साल के हिसाब से इसे 7500 वर्ग किमी के बड़े हिस्से में लागू किया जा रहा है।

जबलपुर- ग्वालियर का नंबर बाद में

जबलपुर और ग्वालियर में जहां अभी मेट्रोपॉलिटन अथॉरिटी की योजना नहीं है, वहां विशेष समितियों का गठन कर विकास कार्य किए जाएंगे।

NCR क्या है

एनसीआर (NCR) का पूरा नाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (National Capital Region)  है। इसमें आसपास के ग्रामीण और शहरी दोनो क्षेत्रों को शामिल किया गया है। बता दें कि NCR में दिल्ली के अलावा हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के जिले शामिल किए गए हैं। सही मायने में NCR के कारण ही हरियाणा का गुड़गांव और उत्तर प्रदेश का नोयडा विकसित हो सका है।

तेज रफ्तार से होगा विकास…

यदि दिल्ली-एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) की तर्ज पर इंदौर और भोपाल के आसपास के जिलों को जोड़कर मेट्रोपॉलिटन एरिया विकसित किया जाएगा, तो इससे व्यापक विकास और आर्थिक प्रगति संभव है। मध्य प्रदेश के इन प्रमुख शहरों में इस तरह के मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र का निर्माण राज्य और देश के शहरीकरण को नई दिशा दे सकता है।

1. नियोजित शहरीकरण और क्षेत्रीय विकास

समान विकास: मेट्रोपॉलिटन एरिया का गठन विभिन्न जिलों और कस्बों के बीच असमान विकास को दूर करेगा।

गांव और शहर के बीच का संतुलन: छोटे शहरों और गांवों को बड़े शहरी केंद्रों से जोड़कर शहरी सुविधाएं और अवसर ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचाई जा सकती हैं।

इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास: बेहतर सड़क नेटवर्क, सार्वजनिक परिवहन, औद्योगिक कॉरिडोर और अन्य बुनियादी ढांचे के विकास से क्षेत्रीय प्रगति में तेजी आएगी।

2. परिवहन और कनेक्टिविटी में सुधार

इंटीग्रेटेड ट्रांसपोर्ट सिस्टम: मेट्रो रेल, बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (BRTS), और मल्टी-मोडल परिवहन प्रणाली लागू की जा सकती है, जो इंदौर और भोपाल को उनके आसपास के जिलों से जोड़ेगी।

सड़क और रेलवे कनेक्टिविटी: नेशनल और स्टेट हाईवे का विस्तार कर सभी जिलों को बेहतर कनेक्टिविटी मिलेगी।

हवाई अड्डा नेटवर्क: भोपाल और इंदौर में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों को अपग्रेड कर क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा दिया जा सकता है।

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3. आर्थिक गतिविधियों में बढ़ोतरी

औद्योगिक क्लस्टर : इंदौर के पास पीथमपुर और भोपाल के पास मंडीदीप जैसे औद्योगिक क्षेत्र पहले से ही विकसित हैं। मेट्रोपॉलिटन एरिया बनने से इन क्षेत्रों का विस्तार और नया औद्योगिक क्लस्टर बनाया जा सकता है।
नई मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स, टेक्नोलॉजी पार्क, और लॉजिस्टिक्स हब की स्थापना।
स्टार्टअप और इनोवेशन: इंदौर और भोपाल में आईटी और स्टार्टअप कल्चर पहले से मजबूत है। मेट्रोपॉलिटन एरिया इसे और भी बढ़ावा देगा।
रोजगार सृजन: बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर पैदा होंगे, जिससे क्षेत्रीय बेरोजगारी कम होगी।

4. आवास और रियल एस्टेट में सुधार

स्मार्ट सिटी विस्तार: इंदौर और भोपाल पहले से ही स्मार्ट सिटी परियोजना में शामिल हैं। मेट्रोपॉलिटन एरिया से यह परियोजना और बड़े पैमाने पर लागू की जा सकेगी।
सस्ती और प्रीमियम आवासीय योजनाएं: कम लागत वाले आवासीय प्रोजेक्ट्स के साथ प्रीमियम टाउनशिप और गेटेड कम्युनिटी विकसित की जा सकती हैं।
इससे शहरों में जनसंख्या का दबाव कम होगा और आसपास के क्षेत्रों में व्यवस्थित तरीके से बसावट हो सकेगी।

5. शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार

शैक्षणिक हब: इंदौर और भोपाल में पहले से ही कई प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान (जैसे IIM, IIT, AIIMS) मौजूद हैं। मेट्रोपॉलिटन एरिया बनने से उच्च शिक्षा संस्थानों का विस्तार किया जा सकता है।
आसपास के क्षेत्रों में स्कूली शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए जा सकते हैं।
सुपर स्पेशियलिटी स्वास्थ्य सेवाएं: नए अस्पताल और हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण।
क्षेत्रीय स्वास्थ्य सेवाओं तक आसान पहुंच।

6. पर्यावरण संरक्षण और टिकाऊ विकास

ग्रीन बेल्ट और ओपन स्पेस: मेट्रोपॉलिटन एरिया में नियोजित विकास के तहत हरित क्षेत्र (ग्रीन बेल्ट) का निर्माण किया जा सकता है, जो पर्यावरण संरक्षण में मदद करेगा।
नदी फ्रंट विकास: इंदौर और भोपाल के पास कान्ह, सरस्वती और बेतवा जैसी नदियों का संरक्षण और नदी फ्रंट डेवलपमेंट किया जा सकता है।
सोलर और रिन्यूएबल एनर्जी: मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र को टिकाऊ बनाने के लिए सोलर एनर्जी और ग्रीन टेक्नोलॉजी को बढ़ावा दिया जा सकता है।

7. सांस्कृतिक और पर्यटन विकास

पर्यटन स्थलों का विकास: उज्जैन, सांची, भीमबेटका, और मांडू जैसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों को मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र में शामिल कर पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है। बेहतर कनेक्टिविटी से इन स्थलों पर पर्यटन सुविधाएं बेहतर होंगी।
सांस्कृतिक हब: इंदौर और भोपाल को कला, संगीत और सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में विकसित किया जा सकता है।

8. बेहतर प्रशासनिक प्रबंधन

एकीकृत प्रशासनिक ढांचा: मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र में समन्वित प्रशासन होगा, जिससे योजनाएं तेज़ी से लागू होंगी।
डिजिटल गवर्नेंस: स्मार्ट तकनीकों और डिजिटल गवर्नेंस के माध्यम से नागरिक सेवाओं की पहुंच आसान होगी।

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