BHOPAL : प्रदेश में वृद्धजनों की सुरक्षा कमजोर पड़ रही है। उम्र के आखिरी पड़ाव पर पहुंच चुके कमजोर वृद्धों के साथ बच्चों की उपेक्षा के चलते भरण पोषण का संकट बढ़ रहा है। वहीं उनसे संपत्ति हथियाने, धोखाधड़ी, मारपीट की घटनाओं में भी इजाफा हुआ है। दर-दर भटकने वाले वृद्धों को पुलिस भी न्याय नहीं दिला पा रही है। एनसीआरबी यानी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े सामाजिक सुरक्षा से दूर इन सीनियर सिटीजनों की हालत बयां कर रहे हैं। ऐसे वृद्धों की संख्या भी कम नहीं हैं जिन्हें घर से निकाला जा चुका है। ऐसे वृद्ध सामाजिक न्याय विभाग द्वारा चलाए जा रहे 79 सहित सामाजिक संगठनों के वृद्धाश्रमों में जीवन काट रहे हैं।
कष्ट में डूबा डेढ़ करोड़ वृद्धजनों का जीवन
मध्यप्रदेश में 8 करोड़ आबादी के बीच सवा करोड़ लोग 60 साल से अधिक आयु के हैं। यानी प्रदेश की आबादी का 12 फीसदी हिस्सा वृद्धजनों का है। इसके बावजूद भी वे न्याय के लिए दर- दर भटकने मजबूर हैं। प्रदेश में हर साल बेटा- बहू, भतीजों या परिवार के लोगों द्वारा प्रताड़ित करने की शिकायत लेकर सबसे ज्यादा सीनियर सिटीजन कलेक्टोरेट और पुलिस थाने पहुंचते हैं। इन शिकायतों की मुख्य वजह संपत्ति पर अधिकार होती है। वहीं परिवार में संतान न होने के कारण कुटुम्ब के लोगों या पड़ोसियों द्वारा संपत्ति पर कब्जा जमाने के मामले भी सामने आते हैं। इनमें से कुछ में तो सुनवाई हो जाती है लेकिन अधिकांश केसों में वृद्धजन मदद और न्याय की गुहार लगाते महीनों या सालों तक चक्कर लगाते रह जाते हैं।
वृद्धों के विरुद्ध एमपी में सबसे ज्यादा अपराध
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार पिछले 4 साल में मध्यप्रदेश में सीनियर सिटीजन पर अपराधों का ग्राफ तेजी से उछला है। साल 2020 में एमपी में वृद्धों के खिलाफ अपराध का आंकड़ा 4602 था जबकि 2021 में बढ़कर ये संख्या 5273 पहुंच गई। साल 2022 में प्रदेश में 6187 मामले सीनियर सिटीजन की प्रताड़ना से संबंधित थे। बीते साल यानी 2023 में इसमें 10 फीसदी का इजाफा हुआ और यह संख्या 7 हजार से ऊपर पहुंच गई है।
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हत्या-मारपीट में देश में एमपी का तीसरा नंबर
वृद्धजनों के खिलाफ बढ़ते अपराध चिंता बढ़ाने वाले हैं। जीवन भर के संघर्ष के बाद सहारे की उम्मीद लगाए बैठे वृद्ध मारपीट, धोखाधड़ी और अपमान से टूट जाते हैं। सीनियर सिटीजनों गंभीर अपराधों का भी शिकार बनाए जा रहे हैं। बीती साल प्रदेश में वृद्धजनों की हत्या के 129 मामले सामने आए थे। जबकि गंभीर मारपीट के 3103 केस दर्ज प्रदेश के थानों में दर्ज किए गए थे। वहीं सेवानिवृत्त या अशक्त होने के बाद दूसरे के भरोसे रहने वाले 1473 वृद्ध धोखाधड़ी, ठगी और चोरी के साथ ही धमकियों का भी शिकार हुए हैं। वृद्धजनों की हत्या के मामलों में मध्यप्रदेश तीसरे नंबर पर हैं। जबकि हत्या के 201 केस के साथ तमिलनाडू देश में पहले और 198 केसों के साथ महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर है।
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वृद्धाश्रमों में बढ़ रहे सीनियर सिटीजन
परिवार में देखरेख न होने और मारपीट, अपमान के चलते अब सीनियर सिटीजन वृद्धाश्रमों में जीवन काटने मजबूर हैं। प्रदेश में लगातार आश्रम में रहने वाले वृद्धों की संख्या बढ़ रही है। सरकार द्वारा मध्यप्रदेश में सामाजिक न्याय विभाग के माध्यम से 79 वृद्धाश्रम और हर जिले में वन स्टॉप सेंटर भी खोले गए हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट कहती है साल 2050 तक देश में वृद्धजनों की संख्या में 326 प्रतिशत की दर से तेजी से बढ़ जाएगी। कोरोना काल के बाद वृद्धजनों को अपने परिवार में सबसे ज्यादा उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है। यानी पिछले चार साल में जितनी संख्या घर छोड़ने मजबूर लोगों की है उतनी बीते दस साल में भी नहीं रही है।
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जिम्मेदारों की बेरुखी से अधिनियम बेअसर
प्रताड़ना से सीनियर सिटीजनों को बचाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा माता_पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण तथा कल्याण अधिनियम 2007 है। यह देश के सभी राज्यों में प्रभावी है लेकिन पुलिस और प्रशासनिक अफसरों द्वारा सुनवाई न करने से वृद्धजनों को इसका सहारा नहीं मिलता। यह अधिनियम संपत्ति में अधिकार पाने वाले पुत्र और परिवार के सदस्यों पर माता- पिता और वृद्धों की खान-पान, उपचार और घर में रहने की जिम्मेदारी तय करता है। पीड़ित वृद्धजन जब अपनी फरियाद लेकर अधिकारियों के सामने पहुंचते हैं तो वे उन्हें नजरअंदाज कर देते हैं। ऐसे में निराश्रित सीनियर सिटीजन भटकते ही रह जाते हैं।
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