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MP News: मध्यप्रदेश में वर्षों से काम कर रहे दैनिक वेतन भोगी और अस्थायी कर्मचारियों के लिए उच्च न्यायालय के निर्देशों के बाद भी राज्य सरकार कार्ययोजना पेश नहीं कर सकी है। सरकार के पास यह तक जानकारी नहीं है कि किस विभाग में कितने दैवेभो और अस्थायी कर्मचारी कार्यरत हैं।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर दाखिल हुई थी रिट याचिका
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय जग्गू बनाम भारत सरकार और विनोद कुमार बनाम भारत सरकार के फैसलों के आधार पर 2024 में जबलपुर हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की गई। कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि नियमितिकरण की दिशा में अब तक क्या कदम उठाए गए हैं और आगे की क्या योजना है।
सामान्य प्रशासन विभाग की उदासीनता से मामला अटका
हाईकोर्ट की सख्ती के बावजूद सामान्य प्रशासन विभाग (GAD) तीन महीने में भी विभागों से आंकड़े नहीं जुटा सका। जबकि सरकार से अपेक्षा की गई थी कि वह नियमितिकरण की एक ठोस कार्ययोजना पेश करे। GAD ने फरवरी 2025 में सभी विभागों को पत्र भेजकर 15 दिन में जानकारी मांगी थी, लेकिन अब तक जवाब अधूरा है।
अफसरशाही की ढिलाई से सरकार की छवि पर सवाल
GAD ने साफ कहा है कि 16 मई 2007 की स्थिति में जो कर्मचारी कार्यरत थे, वे भले ही अनियमित हों, लेकिन अवैधानिक नहीं हैं। यदि वे 1 जनवरी 2025 तक भी काम कर रहे हैं तो उनके नाम भेजे जाएं। लेकिन अब तक किसी भी विभाग ने यह स्पष्ट जानकारी नहीं दी है।
हाईकोर्ट की सख्ती के बाद अब दोबारा भेजा जाएगा निर्देश
सामान्य प्रशासन विभाग ने विभागों की सुस्ती को देखते हुए अब फिर से सभी विभागों को निर्देश जारी करने का निर्णय लिया है, ताकि हाईकोर्ट में कार्ययोजना प्रस्तुत की जा सके और नियम के अनुसार नियमितिकरण की प्रक्रिया आगे बढ़े।
यह जानकारी विभागों को देना अनिवार्य
▶ विभाग में कार्यरत कुल दैनिक वेतन भोगी और अस्थायी कर्मचारियों की संख्या।
▶ 1 जनवरी 2025 की स्थिति में दस वर्षों तक कार्यरत अस्थायी और दैवेभो कर्मचारियों का विवरण।
▶ 16 मई 2007 के सुप्रीम कोर्ट फैसले के आधार पर नियमितिकरण के लिए पात्र कर्मचारी कितने हैं।
सालों से सेवा देने के बाद भी नहीं मिली परमानेंट नियुक्ती
राज्य सरकार के अधिकांश विभागों में ऐसे हजारों कर्मचारी हैं जो 10 से 15 वर्षों से नियमित काम कर रहे हैं, लेकिन वे आज भी अस्थायी या दैनिक वेतनभोगी की श्रेणी में आते हैं। हाईकोर्ट की कार्ययोजना मांगने के बाद अब उनके भविष्य पर निर्णय हो सकता है, बशर्ते अफसर आंकड़े भेजें।
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अफसरशाही बनी रोड़ा
हाईकोर्ट की पहल के बाद प्रदेशभर के हजारों दैवेभो कर्मचारी नियमितिकरण की उम्मीद में हैं, लेकिन अफसरशाही की सुस्ती ने प्रक्रिया को अटका दिया है। यदि अब भी आवश्यक आंकड़े नहीं जुटे, तो कार्ययोजना प्रस्तुत करना मुश्किल होगा और मामला फिर से लटक सकता है।
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