कमलेश सारडा @ NEEMUCH
मध्य प्रदेश के नीमच जिले के एक सरकारी स्कूल में केवल एक छात्रा पढ़ रही है। इस स्कूल पर हर साल 25 लाख रुपए खर्च होते हैं। इस खर्च में दो शिक्षकों का वेतन और अन्य खर्च शामिल हैं। स्कूल को लेकर सरकारी धन के उपयोग पर सवाल उठ रहे हैं।
यह मामला सरकारी धन के उपयोग और शिक्षा तंत्र की प्रभावशीलता पर गंभीर सवाल खड़े करता है। एक तरफ सरकार "सर्व शिक्षा अभियान" और "शिक्षा का अधिकार" जैसी योजनाओं पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। वहीं दूसरी ओर छात्रों की कमी से जूझ रहे ऐसे स्कूल "सफेद हाथी" साबित हो रहे हैं।
स्कूल का हाल: एक छात्रा, दो शिक्षक
गुलाबखेड़ी स्थित शासकीय प्राथमिक विद्यालय में कक्षा 1 से 5 तक एकमात्र छात्रा नामांकित है। यह अकेली छात्रा पढ़ने के लिए दो शिक्षकों के साथ स्कूल आती है। इस एक छात्रा की पढ़ाई पर सरकार सालाना 24-25 लाख रुपए खर्च कर रही है, जिसमें शिक्षक वेतन और स्कूल का रखरखाव शामिल है।
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जिले में अन्य स्कूलों की स्थिति
गुलाबखेड़ी का यह स्कूल अकेला नहीं है। नीमच जिले में 25 से 30 स्कूल हैं, जहां छात्र संख्या 10 से भी कम है। जिले में 537 प्राथमिक विद्यालय हैं, जिनमें 48,757 छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। इन स्कूलों में 1029 शिक्षक कार्यरत हैं।
सरकारी दावे और शिक्षक की स्थिति
शिक्षक धर्मेंद्र सिंह का कहना है कि ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों या पास के सीएम राइज (सांदीपनि) विद्यालय में भेज रहे हैं। हमने नामांकन बढ़ाने के प्रयास किए, लेकिन सफलता नहीं मिली। सरकार की नीति के अनुसार 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को प्रवेश नहीं दिया जा सकता, जबकि प्राइवेट स्कूल 3 साल की उम्र में ही बच्चे को ले लेते हैं। इस कारण बच्चे शुरू से ही निजी स्कूलों से जुड़ जाते हैं।
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विरोधाभास: एक किमी दूर सफल स्कूल
गुलाबखेड़ी के स्कूल के मुकाबले मुंडला गांव में स्थित सरकारी स्कूल सफल है। मुंडला के स्कूल में 110 छात्र पढ़ाई कर रहे हैं और शिक्षा की गुणवत्ता बेहतर मानी जा रही है। यह सवाल उठता है कि अगर गुलाबखेड़ी में अच्छी शिक्षा मिलती तो बच्चे दूसरे गांवों का रुख क्यों करते?
इस स्थिति से यह स्पष्ट होता है कि सरकारी स्कूलों में जवाबदेही की कमी है। शिक्षा पर खर्च होने वाले धन का सही उपयोग किया जाना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा छात्र इसका लाभ उठा सकें।
क्या कहते हैं जिम्मेदार?
पूर्व सरपंच, भोन सिंह चौहान का कहना है कि इसका समाधान स्कूल बंद करना नहीं है। प्रशासन को स्कूल में संसाधनों की कमी को पूरा करना चाहिए। बेहतर शिक्षा व्यवस्था उपलब्ध करानी चाहिए और ग्रामीणों को अपने बच्चों को यहां भर्ती करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। शिक्षा के स्तर में सुधार बहुत जरूरी है।
DEO एसएम मांगरिया ने बताया कि जिले में इस तरह के 3-4 दर्जन स्कूल हैं जहां छात्र संख्या बहुत कम है। फिलहाल एडमिशन प्रक्रिया जारी है। इन स्कूलों को बंद करने या दूसरे स्कूलों में मर्ज करने के कोई निर्देश नहीं मिले हैं। हमारा लक्ष्य अधिक से अधिक नामांकन करवाना है। उन्होंने यह भी बताया कि प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक संवर्ग के शिक्षक का वेतन 38-40 हजार से लेकर सहायक शिक्षक का वेतन एक लाख रुपए से भी अधिक हो सकता है।
मध्यप्रदेश | MP | Government school
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