मप्र ईओडब्लयू का रिपोर्ट कार्ड: 88% केस फाइलों में अटके, सजा का नामोनिशान नहीं

आपराधिक मामलों में दोष सिद्धि दर (कनविक्शन रेट) किसी भी जांच एजेंसी के परफारर्मेंस का पैमाना मानी जाती है। मध्य प्रदेश राज्य आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो इस मामले में बेहद 'गरीब' है।

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Ravi Awasthi
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रवि अवस्थी,भोपाल। 

मप्र के राज्य आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो (EOW) में अपराध दर्ज होना आरोपियों को सजा मिलने की गारंटी नहीं है। ब्यूरो में ना तो प्रकरण दर्ज करवा पाना आसान है,ना ही इन्हें अदालत तक पहुंचा पाना। ऐसे में अपराधियों को सजा मिलने की बात तो दूर की कौड़ी है।

मामला दर्ज होना ही चुनौती

सागर निवासी सुधाकर सिंह राजपूत ने साल 2020 में भोज मुक्त विश्वविद्यालय में 72 कर्मचारियों की नियम विरुद्ध हुई नियुक्तियों की​ शिकायत ब्यूरो में की। पांच साल की जांच के बाद करीब दो माह पहले ब्यूरो की भोपाल इकाई ने
आप​राधिक प्रकरण दर्ज किया। इसमें विश्वविद्यालय के तत्कालीन निदेशक प्रवीण जैन व अन्य 66 को आरोपी बनाया गया,लेकिन आगे की विवेचना अभी सिर्फ पत्राचार तक सीमित है। 

जांच का हाल:आरोपी ही चल बसा

ब्यूरो ने हाउसिंग बोर्ड ग्वालियर के एक कर्मचारी योगेंद्र श्रीवास्तव के खिलाफ साल 2014 में भ्रष्टाचार को लेकर आपराधिक मामला दर्ज किया। यह जांच इतनी लंबी खिची कि उम्र दराज हो चुके आरोपी का ही निधन हो गया। इसके बाद बीते साल ब्यूरो ने प्रकरण में खात्मा लगा दिया। ऐसी बानगियां और भी हैं।

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विधानसभा में पेश की आधी-अधूरी जानकारी

कांग्रेस विधायक हेमंत कटारे न बीते साल के पावस सत्र में EOW में वर्ष 2014 से 2024 के बीच दर्ज आपराधिक मामलों का ब्योरा मांगा। ब्यूरो ने पिछले मानसून सत्र में पूरक जानकारी के तौर पर जवाब पेश किया लेकिन वह भी अधूरा। इसमें भोपाल के बहुचर्चित साइंस हाउस केस का हवाला ही नहीं दिया।

दरअसल,अनूपपुर स्वास्थ्य विभाग में हुए एक घोटाले के बाद ब्यूरो की रीवा इकाई ने साल 2021 में यह प्रकरण दर्ज किया था। इसमें गौतमनगर भोपाल स्थित साइंस हाउस व इसकी सहयोगी संस्था के डायरेक्टर जितेंद्र तिवारी,सुनैना तिवारी,महेश बाबू शर्मा,शैलेंद्र तिवारी व अन्य के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया था। उस वक्त जितेंद्र समेत अन्य आरोपियों की धरपकड़ भी हुई थी। 

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तर्क भी मासूम, जवाब भी अधूरे

बीते साल यह केस रीवा से भोपाल ट्रांसफर हुआ। इसमें बीते साल मार्च में एक बार फिर एफआईआर हुई और अब केस विवेचना में है। बीते माह साइंस हाउस उस वक्त फिर चर्चा में आया ,जब इसके प्रमुख पदाधिकारियों के ठिकानों पर आयकर विभाग ने छापे डाले।

आरंभिक जानकारी में छापे के दौरान आयकर विभाग को करोड़ों की गड़बड़ियों से जुड़े दस्तावेज हाथ लगे। लेकिन विधानसभा संस्थान व स्वास्थ्य विभाग में हुए घोटाले का सच नहीं जान सकी। 

इसे लेकर ब्यूरो के जिम्मेदार अधिकारियों ने बेहद मासूम तर्क दिया। उन्होंने कहा-केस रीवा से भोपाल ट्रांसफर हुआ। शायद इस वजह से ही यह सदन में पेश मामलों की सूची में दर्ज होने से रह गया।

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ये आंकड़े काफी हैं,नाकामी बताने के लिए

सदन में पेश जानकारी के मुताबिक,साल 2014 से दिसंबर 2024 तक ब्यूरो में 442 आपराधिक मामले दर्ज किए गए। इनमें से चालान यानी अ​भियोजन सिर्फ 32 में ही पेश हो सका।

वहीं,20 प्रकरणों में ब्यूरो को प्रकरण से जुड़े पर्याप्त साक्ष्य नहीं मिलने के कारण खात्मा लगाना पड़ा । ब्यूरो से 18 मामले राज्य सरकार को अभियोजन स्वीकृति के लिए भेजे गए। इनमें से 9 में स्वीकृति नहीं मिली,शेष विचाराधीन हैं। बाकी 88 फीसदी मामलों में विवेचना जारी है। 

विवेचक यानी जांचकर्ताओं की बात करें तो ब्यूरो की भोपाल इकाई में ही 4 डीएसपी,6 इंस्पेक्टर व 4 सब इंस्पेक्टर इस काम में जुटे हैं। ब्यूरो की अन्य सात इकाई जबलपुर,रीवा,उज्जैन,इंदौर,सागर,ग्वालियर व अन्य में भी पर्याप्त संख्या में विवेचना अधिकारी तैनात हैं।  

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कनविक्शन रेट पर चुप्पी

आपराधिक मामलों में दोष सिद्धि दर (कनविक्शन रेट) किसी भी जांच एजेंसी के परफारर्मेंस का पैमाना मानी जाती है। ईओडब्ल्यू का कनविक्शन रेट क्या है? इसे लेकर ब्यूरो के अधिकारी ही अंजान हैं।

इस संबंध में ब्यूरो की सहायक पुलिस महानिरीक्षक पल्लवी त्रिवेदी कहती हैं-मौखिक व फौरी तौर पर यह बता पाना मुश्किल है। वहीं,डीआईजी मो.युसुफ कुरैशी,कई बार के प्रयास के बाद भी बात करने को राजी नहीं हुए। 

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