मध्य प्रदेश वन विभाग: बांस में उलझा सिस्टम, हाईकोर्ट ने थमाया 1.20 करोड़ का बिल, सकते में अफसर

मध्य प्रदेश वन विभाग का मामला एक बार फिर उलझ गया है। कोलकाता हाईकोर्ट ने बांस कारोबार से जुड़े केस में 1.20 करोड़ रुपए लौटाने का आदेश दिया। फर्म ने बांस की गुणवत्ता पर सवाल उठाकर अपनी जमा राशि की वापसी मांगी थी।

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Ravi Awasthi
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BHOPAL. उलटे बांस बरेली कहावत अव्यवस्था और उलझे फैसलों पर कही जाती है। यह कहावत मध्य प्रदेश वन विभाग के एक मामले में सच साबित हुई है। बांस कारोबार से जुड़े एक केस में कोलकाता हाईकोर्ट ने निजी फर्म को 1.20 करोड़ रुपए का भुगतान लौटाने का आदेश दिया। खास बात यह कि कोर्ट ने नोटिस प्रदेश के मुख्य सचिव और वित्त विभाग को तामील कराने की हिदायत दी।

निजी फर्म का पैसा हड़पना पड़ा महंगा 

मामला वन विभाग के दक्षिण वन मंडल व पश्चिम बंगाल की एक निजी फर्म कल्पतरू एग्रो फॉरेस्ट प्रा.लि. से जुड़ा है। इस फर्म ने वर्ष 1997 में 66 लॉट बांस खरीदी का ठेका लिया था। बांस की गुणवत्ता तय मानक की नहीं थी। इसके चलते फर्म ने बांसों का उठाव नहीं किया। फर्म ने अपनी जमा रकम वापस मांगी तो विभाग ने इससे इंकार कर दिया। 

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20 साल लड़ी लड़ाई, नतीजा सिफर

वन विभाग की हठधर्मिता को फर्म ने कोलकाता हाईकोर्ट में चुनौती दी। वन​ विभाग ने भी जवाबी लड़ाई लड़ी। इसके नाम पर पिछले करीब 20 सालों में वकीलों की फीस व अन्य मामलों में करोड़ों रुपए खर्च किए गए। लेकिन फैसला गए साल जून में फर्म के पक्ष में ही आया। कोर्ट ने मप्र वन विभाग को 1.20 करोड़ रुपए अदा करने का आदेश दिया। यह राशि कल्पतरू एग्रो फॉरेस्ट को ब्याज और लाभ सहित दी जाएगी।

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आदेश की अनदेखी से बढ़ी सख्ती

न्यायालयीन डिक्री के बावजूद भुगतान नहीं होने पर अदालत ने कड़ा रुख अपनाया। 11 जुलाई को न्यायालय की टीम ने अधिकारियों और कर्मचारियों को बाहर निकालकर कार्यालयों पर ताले जड़ दिए। साथ ही नोटिस चस्पा किया।

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ढिलमुल रहा विभागीय अफसरों का रवैया

जवाबी कार्रवाई में विभाग का रवैया ढिलमुल रहा। विभाग ने समय रहते डिक्री को चुनौती नहीं दी।बाद में एक अपील दायर की गई, जो खारिज हो गई। फिर एक समीक्षा याचिका दायर की गई, लेकिन वह भी वापस ले ली गई।  इस पर अदालत ने अपने नए आदेश में कहा कि डिक्री अब फायनल हो चुकी है। उसके पालन में कोई कानूनी बाधा नहीं है।

तो सीएस, पीएस वित्त होंगे कोर्ट में तलब

कोलकाता हाईकोर्ट के न्यायाधीश अनिरुद्ध राय ने सख्त रुख अपनाया। उन्होंने कहा कि यह केवल वन विभाग का विवाद नहीं है। यह सरकार के शीर्ष स्तर की जवाबदेही का मामला है। वन विभाग या राज्य सरकार भुगतान से बच नहीं सकती। कोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव और वित्त सचिव को नोटिस भेजने का आदेश दिया। अदालत ने चेतावनी दी कि भुगतान और परिसंपत्तियों का खुलासा समय पर नहीं हुआ, तो अधिकारियों को अदालत में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना पड़ सकता है। न्यायालय ने शपथ पत्र पेश करने का निर्देश भी दिया।

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अफसरों की गैरहाजिरी पर जताई नाराजगी

न्यायालय ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि प्रकरण में सुनवाई के दौरान वन विभाग के संबंधित अधिकारी पेश ही नहीं हुए। न ही कोई समायोजन या राहत का अनुरोध किया गया। अपील व पुनरीक्षण याचिका भी करीब 552 दिन बाद दायर की गई। इस देरी की भी विभागीय अफसर कोई ठोस वजह नहीं बता सके। इसके बाद अदालत ने इसे गंभीरता से लेते हुए सख्त चेतावनी जारी की।

11 जुलाई से दफ्तर सील, अफसर दर-बदर

यह मध्य प्रदेश वन विभाग का संभवत: पहला मामला है, जब न्यायालय के आदेश पर बालाघाट में सीसीएफ और डीएफओ कार्यालयों को सील किया गया। 11 जुलाई से दोनों कार्यालय बंद हैं। अधिकारी रेंजर कॉलेज परिसर से अस्थायी रूप से काम कर रहे हैं। सीसीएफ और डीएफओ कार्यालयों की सीलिंग ने वन विभाग की साख को बड़ा झटका दिया है।

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जिम्मेदार अफसरों ने साधी चुप्पी

कोलकाता हाईकोर्ट के ताजा फैसले के बाद जिम्मेदार अफसरों ने इस मामले में चुप्पी साध ली है। कोर्ट के निर्णय पर विभाग के अगले कदम व जवाबदेही तय करने को लेकर विभाग में संशय की स्थिति बनी हुई है। इस बारे में वन बल प्रमुख वीएन अंबाडे से पूछे जाने पर उन्होंने भी कोई जवाब नहीं दिया।

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