मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक तलाक के मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि पत्नी को उसकी मर्जी के खिलाफ नौकरी छोड़ने और पति की इच्छाओं के अनुसार जीवन जीने के लिए मजबूर करना मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है। यह टिप्पणी तब की गई जब 33 वर्षीय एक महिला ने तलाक के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया। महिला ने आरोप लगाया कि उसका पति उसे नौकरी छोड़ने और उसके साथ भोपाल में रहने के लिए मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रहा है।
फैमिली कोर्ट के फैसले को HC ने पलटा
महिला ने पहले फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी दी थी, जिसे खारिज कर दिया गया था। इसके बाद उसने हाई कोर्ट में अपील की। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी की पीठ ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए तलाक मंजूर कर लिया।
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पति की मर्जी थोपना मानसिक क्रूरता
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पति या पत्नी को यह अधिकार नहीं है कि वे दूसरे पक्ष को अपनी मर्जी से नौकरी छोड़ने या अपनी पसंद का जीवन जीने के लिए मजबूर करें। कोर्ट ने इसे मानसिक प्रताड़ना की श्रेणी में माना।
महिला का आरोप
महिला ने बताया कि शादी के बाद पति ने उसे अपनी सरकारी नौकरी छोड़ने और भोपाल में उसके साथ रहने को मजबूर किया। इसके अलावा, जब तक पति को रोजगार नहीं मिला, उसने महिला को भी नौकरी करने से मना कर दिया। इस मानसिक प्रताड़ना के चलते महिला ने तलाक का निर्णय लिया।
अहंकार बना मतभेद की वजह
महिला के वकील ने बताया कि 2017 में महिला को सरकारी नौकरी मिलने के बाद पति को रोजगार न मिलने से उसके अहंकार को ठेस पहुंची। इससे दंपत्ति में लगातार मतभेद बढ़ते गए, और महिला ने तलाक की अर्जी दायर कर दी।
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कोर्ट का सख्त रुख
कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा कि किसी भी जीवनसाथी को दूसरे को अपनी मर्जी के मुताबिक नौकरी छोड़ने या जीवन जीने के लिए मजबूर करना मानसिक क्रूरता के अंतर्गत आता है। इस मामले में पति का व्यवहार कोर्ट द्वारा अनुचित और क्रूर माना गया।
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