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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रदेश में नर्सिंग कॉलेजों से जुड़े घोटाले के मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि जिन कॉलेजों को सीबीआई की जांच के दौरान फर्जी पाया गया है, वे अब अपने छात्रों को नामांकित नहीं कर सकेंगे। अदालत ने इस मुद्दे पर एक विशेष आदेश जारी करते हुए कहा कि जिन कॉलेजों ने जांच के दौरान यह स्वीकार किया कि उनके पास कोई भी छात्र नहीं था। वे कॉलेज अब छात्रों की सूची प्रस्तुत कर लाभ नहीं ले सकते। यह फैसला छात्रों के भविष्य और शिक्षा व्यवस्था की पारदर्शिता को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
फर्जी नर्सिंग कॉलेजों पर अदालत का सख्त आदेश
नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता घोटाले से जुड़े मामलों में 26 मार्च को आदेश जारी हुआ था। इस आदेश का इस्तेमाल और व्याख्या गलत ढंग से किये जाने की शंका के चलते लॉ स्टूडेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष विशाल बघेल ने अदालत से इस आदेश को संशोधित करने की मांग की है। याचिका संख्या 1080/2022 पर सुनवाई करते हुए, जस्टिस संजय द्विवेदी और जस्टिस अचल कुमार पालीवाल की डिविजनल बेंच ने स्पष्ट किया। बेंच ने कहा कि 26 मार्च 2025 को जारी किए गए पिछले आदेश में कुछ अस्पष्टताएं थीं, गलत व्याख्या की जा सकती थी।
पहले के आदेश में क्या था
पहले के आदेश में यह कहा गया था कि सभी छात्रों को नामांकन और परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जाएगी। हालांकि यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि यह छूट उन कॉलेजों को भी दी जाएगी या नहीं, जिनका अस्तित्व ही संदेह के घेरे में है। अब अदालत ने संशोधित आदेश जारी करते हुए कहा कि केवल उन्हीं कॉलेजों के छात्रों को नामांकन की अनुमति मिलेगी, जिन्होंने सत्र 2022-23 में वैध रूप से प्रवेश दिया था। कोर्ट ने यह भी कहा कि छात्रों को नामांकन देने के बाद यदि परीक्षा की निर्धारित तिथि से पहले प्रक्रियाओं को पूरा करने में अधिक समय लगता है। ऐसी स्थित में अधिकारी परीक्षा की तिथि को अधिकतम 15 दिनों तक बढ़ाने के लिए स्वतंत्र होंगे। हालांकि, छात्रों के परीक्षा परिणाम न्यायालय की अनुमति के बिना घोषित नहीं किए जाएंगे।
सीबीआई की जांच के आधार पर नामांकन पर सख्ती
अदालत ने अपने आदेश में यह भी स्पष्ट किया कि सीबीआई ने कुछ कॉलेजों को अस्तित्वहीन पाया है। ऐसे कॉलेजों के नामांकन पर भी रोक लगा दी गई है। अदालत का कहना है कि जब सीबीआई की जांच के दौरान किसी कॉलेज ने खुद ही यह स्वीकार कर लिया कि उनके पास कोई छात्र नहीं था, तो वे अब छात्रों की सूची प्रस्तुत कर फर्जी नामांकन नहीं करा सकते।
MPMSU को निर्देश दिया कार्रवाई के निर्देश
इसके अलावा, हाईकोर्ट ने एमपी मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी (MPMSU) को यह निर्देश दिया कि वह सीबीआई की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए आवश्यक कार्रवाई करें। सीबीआई के अधिवक्ता को यूनिवर्सिटी को यह रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया, ताकि विश्वविद्यालय इस रिपोर्ट के आधार पर उचित निर्णय ले सके और फर्जी कॉलेजों को बचाने का कोई अवसर न मिले।
फर्जी कॉलेज के छात्रों को एडजस्ट करने के निर्देश
एक अन्य याचिका आई.ए.नं. 4510/2025 में, याचिकाकर्ता ने अदालत से मांग की कि जिन कॉलेजों को अनुपयुक्त पाया गया है, उनके छात्रों को अन्य वैध कॉलेजों में समायोजित किया जाए। याचिकाकर्ता का कहना था कि इन छात्रों के भविष्य को लेकर अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। इस पर हाईकोर्ट ने आदेश देते हुए कहा कि एक महीने के भीतर इस प्रक्रिया को पूरा किया जाए, ताकि छात्रों को शिक्षा से वंचित न होना पड़े। हालांकि, यह प्रक्रिया सिर्फ उन्हीं छात्रों के लिए होगी, जो किसी न किसी कॉलेज में वास्तव में पढ़ रहे थे, न कि उन छात्रों के लिए, जिनका नामांकन संदिग्ध कॉलेजों में कभी हुआ ही नहीं था।
राजगढ़ जिले में दर्ज एफआईआर पर लगी अस्थायी रोक
इस मामले से जुड़ी एक अन्य याचिका डब्लू.पी.नं. 14935/2022 में, हाईकोर्ट के समक्ष यह मुद्दा लाया गया। याचिका में बताया कि नर्सिंग पाठ्यक्रमों में अवैध प्रवेश को लेकर पुलिस थाना ब्यावरा देहात, जिला राजगढ़ में एफआईआर संख्या 152/2023 दर्ज की गई है। याचिकाकर्ता ने मांग रखी कि इस एफआईआर के आधार पर आगे की कार्यवाही पर रोक लगाई जाए। हाईकोर्ट ने इस मामले पर विचार करते हुए यह निर्देश दिया कि अगली सुनवाई तक पुलिस कोई भी दंडात्मक कार्रवाई नहीं करेगी। अदालत का कहना था कि जब इस पूरे मामले की सुनवाई न्यायालय में चल रही है और विश्वविद्यालय की ओर से भी जांच की जा रही है, तो पुलिस को तत्काल किसी भी कार्रवाई से बचना चाहिए।
सीबीआई जांच के निष्कर्षों की तुलना करने का निर्देश
इसके अलावा, हाईकोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि सीबीआई द्वारा प्रस्तुत रिकॉर्ड की तुलना प्रतिवादी अधिकारियों द्वारा कॉलेजों के निरीक्षण के बाद प्रस्तुत किए रिकॉर्ड से की जाए। कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील विशाल बघेल को निर्देश दिया कि वे महाधिवक्ता (AG) के कार्यालय में जाकर सभी रिकॉर्ड्स का अध्ययन करें। इसके बाद एक तुलनात्मक सूची तैयार करें। इस सूची में यह स्पष्ट किया जाएगा कि किन कॉलेजों को अनुचित रूप से वैध कॉलेज घोषित किया गया है और निरीक्षण टीम ने किस प्रकार की गड़बड़ियां की हैं।
अगली सुनवाई 4 अप्रैल को निर्धारित
हाईकोर्ट ने इस पूरे मामले की अगली सुनवाई के लिए 4 अप्रैल 2025 की तारीख तय की है। इस तारीख पर अदालत उन तथ्यों पर गौर करेगी, जो सीबीआई रिपोर्ट और विश्वविद्यालय प्रशासन के रिकॉर्ड की तुलना से सामने आएंगे।
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