मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का अहम फैसला: पत्नी के व्हाट्सएप चैट को सबूत के रूप में पेश करने की मंजूरी

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक पति को पत्नी के व्हाट्सएप चैट को साबित करने के लिए फैमिली कोर्ट में पेश करने की अनुमति दी। कोर्ट ने निजता के अधिकार और फैमिली कोर्ट के उद्देश्य को संतुलित करते हुए यह फैसला दिया।

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Sandeep Kumar
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MP News: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में पति को अपनी पत्नी के व्हाट्सएप चैट पेश करने की अनुमति दी। इस मामले में पति ने पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाया और इसके समर्थन में व्हाट्सएप चैट को सबूत के तौर पर पेश किया। फैमिली कोर्ट ने पहले इस चैट को पेश करने पर रोक लगा दी थी। इसके बाद पति ने हाईकोर्ट में अपील की थी।

क्या था मामला?

पति ने 2016 में अपनी पत्नी से शादी की थी और 2017 में उनकी एक बच्ची हुई थी। बाद में पति ने अपनी पत्नी पर क्रूरता और व्यभिचार का आरोप लगाते हुए तलाक की याचिका दायर की।

पति का दावा था कि उसकी पत्नी का किसी तीसरे व्यक्ति के साथ विवाहेतर संबंध है। यह प्रमाण उसने पत्नी के फोन में इंस्टॉल किए गए एप्लिकेशन के जरिए प्राप्त व्हाट्सएप चैट से पाया। जब पति ने इन चैट्स को अदालत में पेश करने की कोशिश की, तो पत्नी ने आपत्ति जताई। 

पत्नी का कहना था कि पति ने बिना उसकी सहमति के फोन में एप्लिकेशन इंस्टॉल किया था, जो निजता का उल्लंघन है। पत्नी के वकील ने तर्क दिया कि ये चैट्स अवैध तरीके से प्राप्त किए गए हैं, इसलिए उन्हें सबूत के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।

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हाईकोर्ट का निर्णय

हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को पलटते हुए पति को पत्नी के व्हाट्सएप चैट को सबूत के तौर पर पेश करने की अनुमति दी। कोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट के सामने पेश किए जाने वाले किसी भी सबूत की प्रासंगिकता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। यदि यह सबूत मामले के तथ्यों से जुड़ा है, तो इसे स्वीकार करना फैमिली कोर्ट के उद्देश्य के अनुरूप होगा।

कोर्ट ने माना कि भले ही यह सबूत अवैध तरीके से एकत्रित किया गया हो। फैमिली कोर्ट के मामलों में सबूत की स्वीकार्यता का अलग परीक्षण होता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि निजता का अधिकार मौलिक है, लेकिन यह निरपेक्ष नहीं है। यह अधिकार अपवादों और सीमाओं के अधीन है।

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सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का हवाला

हाई कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अनुचित साधनों से प्राप्त सामग्री को सबूत के रूप में स्वीकार किया है। यह मामला प्रासंगिक था, जहां सबूत के सख्त नियम लागू थे और फैमिली कोर्ट अधिनियम की धारा 14 का कोई प्रावधान नहीं था।

कोर्ट ने नवजोत संधू मामले (2005)11 एससीसी 600 का हवाला दिया। इसके अलावा, शारदा, पुट्टस्वामी और सहारा इंडिया मामलों का भी संदर्भ दिया। कोर्ट ने कहा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है, लेकिन यह अपवादों और सीमाओं के अधीन है। हाई कोर्ट ने माना कि फैमिली कोर्ट में सबूत की स्वीकार्यता का परीक्षण मामले की प्रासंगिकता से किया जाएगा।

 

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