एमपी के इस गांव में 17 साल बाद हुई दुल्हन की विदाई, क्या है पूरा मामला...जानिए

सागर जिले के ललोई गांव में एक समय ‘परग’ नामक क्रूर कुप्रथा का पालन होता था, जिसमें दुल्हन की विदाई नहीं की जाती थी। लेकिन अब, 17 साल बाद इस कुप्रथा को समाप्त करते हुए गांववालों ने एक बेटी की शादी धूमधाम से आयोजित की, जो समाज में बदलाव की एक नई शुरुआत है।

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Reena Sharma Vijayvargiya
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MP News : एक समय था जब मध्य प्रदेश के सागर जिले के ललोई गांव में एक अजीब और क्रूर कुप्रथा ‘परग’ का पालन किया जाता था, जिससे गांव के लोगों की जिंदगी पर गहरा असर पड़ता था। अब 17 साल बाद, इस कुप्रथा को तोड़ते हुए गांव वालों ने एक बेटी की शादी धूमधाम से कराई, जिससे यह साबित हो गया कि समाज में बदलाव संभव है। 

परग कुप्रथा क्या थी?

'परग' एक ऐसी प्रथा थी, जिसमें गांव का कोई व्यक्ति अगर अपराध करता था, तो पूरे गांव को उसके कृत्य की सजा भुगतनी पड़ती थी। इस कुप्रथा के तहत, लंबे समय से ललोई गांव में बेटियों की शादी नहीं हो पा रही थी। गांव वालों का मानना था कि यदि किसी लड़की की शादी हो गई तो गांव पर अपशगुन हो सकता है।

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कुप्रथा को तोड़ने की शुरुआत

सागर जिले के ललोई गांव में एक आदिवासी परिवार की बेटी मानसी गौड़ की शादी के रूप में इस कुप्रथा का अंत किया गया। गांव के लोगों ने एकजुट होकर यह फैसला लिया कि 17 साल बाद इस कुप्रथा को समाप्त किया जाएगा और किसी भी लड़की को शादी के अवसर से वंचित नहीं किया जाएगा। इसके लिए गांव के लोगों ने 3 लाख रुपये की चंदा राशि इकठ्ठा की और मानसी की शादी धूमधाम से करवाई।

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शादी का आयोजन और सामूहिक सहयोग

ललोई गांव में हुई इस शादी के आयोजन में सभी ग्रामवासी सक्रिय रूप से शामिल हुए। यह शादी दमोह जिले के नरसिंहगढ़ से आई बारात के साथ सम्पन्न हुई। गांव के सभी लोगों ने खुशी-खुशी इस आयोजन का हिस्सा लिया और पूर्व गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह को भी आमंत्रित किया। भूपेंद्र सिंह ने इस मौके पर कहा, "हम कन्याओं को देवी स्वरूप मानते हैं, लेकिन जब समाज ऐसी कुरीतियों को सहन करता है, तो यह हमारे मूल्यों के खिलाफ है। हमें अपनी सोच और परंपराओं में बदलाव लाने की आवश्यकता है।"

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इस कुप्रथा का असर और उसका समाधान

'परग' कुप्रथा के चलते सिर्फ बेटियों की शादी पर रोक लगाई गई थी, जबकि बेटों की शादी पर कोई रोक नहीं थी। इस असमानता ने विशेष रूप से गरीब और आदिवासी परिवारों को मुश्किलों में डाला, क्योंकि उन्हें अपनी बेटियों की शादी के लिए गांव से बाहर जाना पड़ता था, जिससे खर्च भी बढ़ जाता था। अब इस कुप्रथा को खत्म करने के बाद, समाज में समानता और समृद्धि की दिशा में एक कदम और बढ़ाया गया है।

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समाज में बदलाव की आवश्यकता

भूपेंद्र सिंह ने इस अवसर पर कहा कि समाज में बदलाव जरूरी है और यह बदलाव तभी संभव है जब हम अपनी परंपराओं और कुरीतियों को छोडऩे के लिए तैयार हों। उन्होंने यह भी कहा कि यह घटना एक प्रेरणा बन सकती है, जिससे अन्य गांवों में भी कुप्रथाओं को खत्म किया जा सके और बेटियों को वह सम्मान मिले, जो उन्हें हमेशा से मिलना चाहिए था।

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