पराली जलाने में सबसे आगे मध्य प्रदेश

मध्यप्रदेश को पराली के प्रदूषण ने बड़ा झटका दिया है। प्रदेश में धान की पैदावार के साथ ही पराली जलाने से प्रदूषण भी बढ़ा है। पराली जलाने से हो रहे प्रदूषण ने मध्यप्रदेश को देश में नंबर एक की बदनामी से जोड़ दिया है।

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Sanjay Sharma
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MP leads in burning stubble

Photograph: (the sootr)

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BHOPAL. मध्य प्रदेश को पराली के प्रदूषण ने बड़ा झटका दिया है। प्रदेश में धान की पैदावार के साथ ही पराली जलाने से प्रदूषण भी बढ़ा है। पराली जलाने से हो रहे प्रदूषण ने मध्यप्रदेश को देश में नंबर एक की बदनामी से जोड़ दिया है। पराली जलाने के लिए कुख्यात हो रहे पंजाब, हरियाणा और दिल्ली और उत्तर प्रदेश भी एमपी से पीछे रह गए हैं।

यह जानकारी कंसोर्टियम फॉर रिसर्च ऑन एग्रो ईकोसिस्टम मॉनिटरिंग एंड मॉडलिंग फॉम स्पेस लैबोरेटरी ने इन चारों राज्यों में पराली से उत्सर्जित कार्बन और प्रदूषण के डेटा के परीक्षण में सामने आई है। यह लैबोरेटरी भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की अहम शाखा है। 

कृषि अनुसंधान लैब की रिपोर्ट से खुलासा

पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को लेकर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सहित पंजाब और हरियाणा में खूब हायतौबा मचती रही है। इन तीनों प्रदेशों में पराली का प्रदूषण बड़ी समस्या बन चुका है, लेकिन अब मध्यप्रदेश पर पराली की कालिख का दाग लगा है।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली के तहत काम करने वाली संस्था कंसोर्टियम फॉर रिसर्च ऑन एग्रो इकोसिस्टम मॉनिटरिंग एंड मॉडलिंग फॉम स्पेस लैब द्वारा खरीफ सीजन में धान की कटाई के बाद पराली जलाने की घटनाओं का डेटा एकत्रित किया गया है। इस डेटा के परीक्षण के बाद जो रिपोर्ट तैयार हुई है उसके आंकड़े न केवल चौंकाने वाले हैं बल्कि प्रदूषण पर नियंत्रण के प्रयास और प्रदेश की ईको फ्रेंडली छबि पर प्रतिकूल असर उजागर कर रहे हैं। 

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सैटैलाइट रिमोट सेंसिंग से जुटाया डेटा

नई दिल्ली स्थित लैबोरेटरी ने 1 अप्रेल से 31 मई के बीच पराली जलाने के मामलों का डेटा एकत्रित किया है। लैबोरेटरी सैटेलाइट रिमोट सेंसिंग के आधार पर डेटा जुटाकर उनका परीक्षण करती है। इस अवधि में उत्तरप्रदेश में 14,398 और पंजाब में 10,207 पराली जलाने के केस सामने आए हैं। वहीं इस साल हरियाणा और दिल्ली में प्रशासनिक कसावट के चलते खेतों में पराली जलाने के मामलों में आश्चर्यजनक कमी आई है।

हरियाणा में जहां इन दो महीनों में केवल 1,832 वहीं दिल्ली में केवल 40 घटनाएं ही हुई हैं। इसके उल्ट पराली जलाने में पीछे रहने वाले मध्यप्रदेश में 34,429 मामले दर्ज किए गए हैं। एमपी में दर्ज पराली जलाने के ये मामले बाकी चार राज्यों से 33 फीसदी ज्यादा हैं। जबकि बीते साल प्रदेश में  पराली जलाने के केवल 13, 500 मामले ही रिकॉर्ड किए गए थे। 

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पराली का प्रदूषण बिगाड़ रहा छबि

मध्यप्रदेश की छबि अब तक पर्यावरण संरक्षण के लिए बेहतर प्रयास करने वाले राज्य की रही है। यही वजह है के प्रदेश में लगातार टाइगर रिजर्वों के साथ ही वाइल्डलाइफ सेंचुरी की संख्या भी बढ़ी है। सरकार भी राज्य की ईको फ्रेंडली छवि को चमकाने के लिए कोशिश कर रही है।

इसी के परिणामस्वरूप मध्य प्रदेश में बाघ, तेंदुआ और गिद्धों की संख्या में इजाफा हुआ है। प्रदेश को टाइगर स्टेट और तेंदुआ स्टेट का दर्जा भी मिला है। पर्यावरण को सुरक्षित रखने के प्रयासों के चलते साल दर साल प्रदेश में ईको टूरिज्म भी बढ़ रहा है। अब पराली का प्रदूषण इन प्रयासों को नुकसान पहुंचा सकता है। 

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