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पूरी खबर को 5 शॉर्ट पॉइंट में समझें-
- अस्पताल के कागजों में बच्चों को स्वस्थ दिखाया जा रहा है। वहीं, किन हकीकत में वे अभी भी कुपोषित और बीमार हैं।
- समी केंद्र में 12 दिनों तक भर्ती रहने के बाद भी बच्चों के वजन और सेहत में कोई सुधार नहीं पाया गया।
- कुसमी केंद्र में 12 दिनों तक भर्ती रहने के बाद भी बच्चों के वजन और सेहत में कोई सुधार नहीं पाया गया।
- जांच के दौरान सफाई बेहद खराब मिली और भविष्य की तारीखों का रिकॉर्ड पहले से ही भरा हुआ पाया गया।
- मध्य प्रदेश के 45 जिले कुपोषण के खतरे (रेड जोन) में हैं और 10 लाख से ज्यादा बच्चे इसकी चपेट में हैं।
सरकार हर दिन बच्चों के पोषण पर लाखों रुपए खर्च करने का दावा करती है। आंगनवाड़ियों में सामान्य बच्चों के लिए रोज सिर्फ 8 रुपए और गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों के लिए 12 रुपए का खर्च दिखाया जाता है।
कुपोषण के खिलाफ इस कथित जंग का नतीजा यह है कि मध्य प्रदेश के 45 जिले आज कुपोषण के रेड जोन में हैं। प्रदेश में 10 लाख से अधिक बच्चे कुपोषण की चपेट में हैं। इसमें 1.36 लाख बच्चे गंभीर कुपोषण की श्रेणी में आते हैं।
कागजों में स्वस्थ, हकीकत में कुपोषित बच्चे
प्रदेश में कुपोषण के खिलाफ लड़ाई की पोल सीधे जमीन पर खुल गई। मामला जिले के कुसमी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र स्थित न्यूट्रिशन रिहैबिलिटेशन सेंटर का है। एसडीएम विकास कुमार आनंद के औचक निरीक्षण में सामने आया कि डॉक्यूमेंट्स में बच्चों को स्वस्थ बताया जा रहा था। असलियत में वे अब भी कुपोषण से जूझ रहे थे।
12 दिन भर्ती, फिर भी वजन नहीं बढ़ा
निरीक्षण के समय एनआरसी में 6 कुपोषित बच्चे भर्ती मिले। केंद्र में साफ-सफाई की स्थिति बेहद खराब पाई गई। 12 दिन तक भर्ती रहने के बावजूद बच्चों के वजन और पोषण स्तर में कोई सुधार नहीं हुआ। यह स्थिति सीधे तौर पर पोषण आहार, दवाइयों और देखरेख में गंभीर लापरवाही की ओर इशारा करती है।
फर्जी फॉलोअप और रिकॉर्ड में हेराफेरी
बच्चों की केस डायरी और फॉलोअप रजिस्टर की जांच में गंभीर अनियमितताएं सामने आईं। रिकॉर्ड में जहां तारीख 26 दिसंबर दर्ज थी, वहीं 29 दिसंबर तक का फॉलोअप पहले से भरा हुआ मिला। इस फर्जीवाड़े ने सरकारी पोषण व्यवस्था की कार्यप्रणाली पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं।
जिम्मेदारों पर कार्रवाई के निर्देश
मामला गंभीर देख एसडीएम ने एएनएम और मेडिकल ऑफिसर को नोटिस जारी किया। इसके साथ ही ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर डॉ. सुधीर गुप्ता से पूरे मामले में विस्तृत स्पष्टीकरण मांगा गया है।
सरकारी आंकड़े खुद कह रहे हैं त्रासदी की कहानी
यह घटना मध्य प्रदेश में कुपोषण के खिलाफ चल रहे अभियानों की भयानक हकीकत उजागर करती है। जहां बच्चे 8 और 12 रुपए के सरकारी खर्च के बीच जीवन और मौत की जंग लड़ रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, प्रदेश के 45 जिले कुपोषण के रेड जोन में हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि MP में कुपोषण की स्थिति भयावह है।
महिला एवं बाल विकास मंत्री निर्मला भूरिया का कहना है कि कुपोषण एक वैश्विक समस्या है। इसे खत्म करने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है। साथ ही जागरूकता पर भी जोर दिया जा रहा है।
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पोषण ट्रैकर ऐप क्या बताता है?
भारत सरकार के पोषण ट्रैकर ऐप के आंकड़े बताते हैं कि पिछले एक साल में स्थिति में आंशिक सुधार हुआ है। कम वजन और दुबलेपन जैसी खतरनाक श्रेणियों में मध्य प्रदेश अब भी देश में दूसरे स्थान पर है।
अप्रैल 2023 में 30% बच्चे कम वजन के थे। जुलाई 2024 तक यह दर घटकर 27% रह गई। पोषण ट्रैकर के अनुसार एमपी में कुपोषण दर 7.79% है।
भोपाल में 27%, ग्वालियर-चंबल में 35%, इंदौर में 45% और उज्जैन में 46% बच्चे कुपोषित हैं। शिवपुरी जिले की स्थिति पूरे प्रदेश में सबसे खराब बताई जा रही है।
20 साल से जारी कुपोषण के खिलाफ जंग
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि मध्य प्रदेश में कुपोषण के खिलाफ पिछले 20 वर्षों से प्रयास जारी हैं।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक 2005-06 में 60% बच्चे कम वजन के थे। 2019-21 में यह घटकर 33% रह गए। दुबलेपन और गंभीर कुपोषण में गिरावट, फिर भी चिंता बरकरार है। दुबलेपन की दर: 35% से घटकर 18.9% हो गई है।
गंभीर दुबलेपन की दर
सुधार: दर 12.6% से गिरकर 6.5% हुई है।
चिंता: कम वजन और दुबलेपन में मध्य प्रदेश अब भी देश में दूसरे नंबर पर है।
सवाल: आंकड़ों में सुधार के बावजूद कुसमी एनआरसी जैसी घटनाएं सवाल खड़ी करती हैं।
निष्कर्ष: क्या सरकारी योजनाएं जमीन के बजाय सिर्फ फाइलों तक ही सीमित हैं?
जवाबदेही और जमीनी निगरानी बढ़ना बेहद जरूरी है। इसके बिना कुपोषण की जंग सिर्फ कागजों तक सीमित रहेगी।
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