ये भ्रष्टाचारी, रोक सको तो रोक लो...MP में 1 साल में 400 घूसखोर पकड़ाए

मध्य प्रदेश में आम आदमी रिश्वतखोरी से तंग आ चुका है। अधिकारी बिना रिश्वत दिए काम नहीं कर रहे हैं। भ्रष्टाचार ने अपनी जड़ें गहरी कर ली हैं और आम नागरिकों को अपना काम करवाने के लिए रिश्वत देनी पड़ रही है।

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Ravi Kant Dixit
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400 bribe takers in MP in one year
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BHOPAL : हमारे देश और प्रदेश में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि रिश्वत अब व्यवस्था का हिस्सा बन गई है। आम आदमी से लेकर व्यवसायी तक हर किसी को, किसी न किसी काम के लिए, कोई न कोई स्तर पर रिश्वत देकर अपने काम करवाने पड़ रहे हैं। छोटे-मोटे प्रमाण पत्र से लेकर जमीन के दस्तावेज तक हर काम के लिए नजराना देना पड़ता है।

आईए आज 'एंटी करप्शन डे' पर मध्यप्रदेश के हाल बयां करते हैं।

पढ़िए ये खास रिपोर्ट...

मध्यप्रदेश में घूसखोरी के खिलाफ लड़ाई में जांच एजेंसियों की कार्रवाई बढ़ रही है। दूसरी तरफ पीड़ितों की परेशानियां और गहराती जा रही हैं। प्रदेश में वर्ष 2024 में चार सैकड़ों भ्रष्ट अफसर-कर्मियों को लोकायुक्त ने रंगेहाथ पकड़ा है, लेकिन पीड़ितों के 75 लाख रुपए अब भी फंसे हुए हैं। सरकार के तमाम दावों के बावजूद आम आदमी रिश्वत के दुष्चक्र से निकल नहीं पा रहा है। रिश्वत देकर भ्रष्टाचारी पकड़ा भी जाता है, तो पीड़ितों को न अपने पैसे वापस मिलते हैं, न काम।

केस नंबर 1

जबलपुर के अर्जुन साहू ने सीमांकन के लिए पटवारी को रिश्वत के रूप में 20 हजार रुपए दिए थे। ​अर्जुन की शिकायत पर लोकायुक्त पुलिस ने पटवारी को पकड़ तो लिया, लेकिन अब अर्जुन अपने 20 हजार रुपए के लिए चक्कर काट रहे हैं।

केस नंबर 2

ग्वालियर के अनूप कुशवाह ने 50 हजार रुपए की रिश्वत देकर नगर निगम के अधिकारी को पकड़वाया था। चार साल से केस चल रहा है, लेकिन अनूप को न तो अब तक पैसे वापस मिले हैं और न ही इंसाफ मिल सका है। वे भटक रहे हैं।

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दूसरे राज्यों से सबक

हैरानी की बात तो यह है कि हमारे ही पड़ोसी राजस्थान, उत्तराखंड और हरियाणा जैसे राज्यों ने पहले ही बड़े रिवॉल्विंग फंड बनाकर भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम उठाए हैं।

जानें कैसे...

राजस्थान: 1 करोड़ का फंड, 2021 से लागू।
उत्तराखंड: 2 करोड़ का फंड, 2022 से प्रभावी।
हरियाणा: 1 करोड़ का फंड, 2022 में स्वीकृत।

यानी की राजस्थान, उत्तराखंड और हरियाणा में यदि कोई पीड़ित रिश्वत के रूप में अपनी राशि अधिकारियों को देता है, तो रिवॉल्विंग फंड के तहत उसे अपना पैसा मिल जाएगा। हालांकि अब मध्यप्रदेश में रिवॉल्विंग फंड को लेकर बात उठी है, लेकिन इसका प्रस्तावित बजट महज 50 लाख रुपए है। 

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मध्यप्रदेश में बड़ा संकट

1. पैसे वापस दिलाने में देरी: क्यों पीड़ितों को अपने ही पैसे वापस पाने में वर्षों इंतजार करना पड़ता है?
2. प्रभावी तंत्र का अभाव: आखिर क्यों प्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त व शीघ्र न्यायिक व्यवस्था नहीं है?
3. छोटे फंड की नीति: 50 लाख का फंड मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्य के लिए किसी मजाक से कम नहीं।

लोकायुक्त में 400 केस, 130 लोकसेवक रंगे हाथ पकड़े गए

जानकारी के अनुसार, वर्ष 2024 में मध्यप्रदेश में अकेले लोकायुक्त पुलिस में करीब 400 केस दर्ज हुए हैं। अक्टूबर और नवम्बर में ही रिश्वत के 60 से ज्यादा केस सामने आए हैं। जांच एजेंसी ने 130 आरोपियों को रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार किया है। इन सबके बीच पीड़ितों के 75 लाख रुपए अटके हैं। यही वजह है कि आम आदमी इस तरह की शिकवा शिकायतें करने से बचता है, क्योंकि अव्वल तो उसके रुपए फंस जाते हैं, दूसरा उसका काम भी नहीं होता है।

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हाल ही के ​रिश्वत के ये दो बड़े मामले

केस नंबर 1

12 नवम्बर 2024

जबलपुर लोकायुक्त पुलिस ने सिवनी जिले के सहायक आबकारी अधिकारी (एडीईओ) पवन कुमार झारिया को साढ़े 3 लाख की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ पकड़ा। झारिया ने विभाग के सहायक आयुक्त (डीईओ) शैलेश कुमार जैन के कहने पर रिश्वत ली थी। लोकायुक्त पुलिस के मुताबिक, शैलेश कुमार ठेकेदार से पांच लाख रुपए बतौर महीने की बंदी मांग रहे थे। साढ़े तीन लाख की रकम उन्होंने सिवनी के एडीओ पवन झारिया को देने को कहा था। इसी की शिकायत ठेकेदार राकेश कुमार साहू ने कर दी, जिसके बाद ये कार्रवाई की गई।

केस नंबर 2

23 अक्टूबर 2024

खरगोन के कसरावद में मध्यप्रदेश ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकरण का सब इंजीनियर राहुल मंडलोई 5 लाख रुपए की रिश्वत लेते पकड़ा गया। इंदौर लोकायुक्त पुलिस ने उसे ​पकड़ा था। सब इंजीनियर राहुल मंडलोई ने भाजपा नेता और मध्यप्रदेश कांट्रैक्टर एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष प्रकाश पाटीदार से रिश्वत की पहली किस्त के रूप में 5 लाख रुपए मांगे थे। उन्होंने प्रकाश पाटीदार का काम देखने वाले ओमप्रकाश से डील की थी। इंजीनियर ने बिल निकालने के एवज में कांट्रैक्टर से ​​​​​​15 लाख 50 हजार रुपए की रिश्वत मांगी थी।

केस नंबर 3

23 अगस्त 2024 

लोकायुक्त पुलिस ने भोपाल डेवलपमेंट अथॉरिटी (BDA) के बाबू को 40 हजार रुपए की रिश्वत लेते ट्रैप किया था। आरोपी सहायक ग्रेड-1 तारकचंद दास ने यह रकम रत्नागिरी प्रोजेक्ट में रहने वाले एक व्यक्ति से लीज रिन्यू करने के नाम पर मांगी थी। वह 3 लाख 35 हजार रुपए मांग रहा था। काफी मनाने के बाद पहली किस्त के 40 हजार रुपए में सौदा पटा था। तारकचंद ने दफ्तर के सामने ही पत्नी मंदिरा दास के नाम से दुकान ले रखी थी। रजिस्ट्री के सर्विस प्रोवाइडर का लाइसेंस भी है। BDA से प्रॉपर्टी खरीदने वालों पर दास का दबाव रहता है कि रजिस्ट्री यहीं से कराएं। जांच में बाबू करोड़ों रुपए का आसामी निकला है।

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आखिर भ्रष्टाचारियों को सबक कैसे मिलेगा?

भ्रष्टाचारियों पर लगाम लगाने के लिए सूबे में लोकायुक्त और ईओडब्लू (आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ) जैसी इकाइयां हैं। ये वसूलीबाज अफसरों की धरपकड़ तो करती हैं, पर सरकार के संरक्षण के चलते वे कार्रवाई से बच निकलते हैं। अभियोजन स्वीकृति नहीं मिलने से इनके मामले कोर्ट तक पहुंच ही नहीं पाते। भ्रष्टाचार के दागियों की लिस्ट लंबी है, जो सालों से सरकार के संरक्षण के सहारे कार्रवाई से बचे हुए हैं।

हर साल करीब 400 शिकायतें

प्रदेश में हर साल लोकायुक्त पुलिस के पास करीब 400 शिकायत पहुंचती हैं। 200 से ज्यादा रिश्वतखोरी अधिकारी-कर्मचारी रंगेहाथ पकड़े जाते हैं। वहीं ईओडब्लू भी हर साल सवा सौ वसूलीबाजों के खिलाफ केस दर्ज करती है तो 100 से ज्यादा शिकायतों पर जांच भी होती है। कार्रवाई के इस आंकड़े के उलट रिश्वतखोरी के आरोपियों के केस कोर्ट में चलाने की अनुमति आधे मामलों में ही मिलती है। कुछ अफसर-कर्मचारी तो राजनीतिक संरक्षण के सहारे पांच या दस साल तक अभियोजन अनुमित रोकने में कामयाब हो जाते हैं। वहीं कुछ की सेवानिवृत्ति के बाद भी विभाग अभियोजन स्वीकृति नहीं देता।

सरकार के संरक्षण में 250 से ज्यादा दागी

लोकायुक्त पुलिस और ईओडब्लू की इकाइयों में भ्रष्टाचार के आरोपी 250 से ज्यादा दागियों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति का मामला अटका हुआ है। सरकार के विभाग रिश्वत वसूली और आय से ज्यादा संपत्ति जोड़ने वाले इन लोकसेवकों के प्रकरण कोर्ट में चलाने स्वीकृति ही नहीं दे रहे हैं। इस वजह से सालों से लोकायुक्त पुलिस और ईओडब्लू की यूनिट जांच के बाद इन केसों को फाइलों में समेटे हुए हैं। 20 से ज्यादा केस तो ऐसे हैं, जिनमें 11 साल बाद भी अभियोजन स्वीकृति नहीं मिली है, जबकि अभियोजन स्वीकृति के लिए चार महीने का समय तय है।

भ्रष्टाचारियों का कवच बनी थी धारा-17 A

सरकार ने साल 2020 को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं में बदलाव किया था। एक्ट की धारा 17 में 17A जोड‍़ा गया था। इस वजह से लोकसेवकों के खिलाफ जांच और कार्रवाई से पहले संबंधित विभाग की अनुमति जरूरी हो गई थी। एक्ट में इस बदलाव पर तत्कालीन लोकायुक्त ने भी आपत्ति ली थी और जीएडी को नोटिस भी भेजा था। हालांकि जवाब पेश करने से पहले ही इसमें फिर बदलाव कर दिया गया, लेकिन इसके बाद भी विभाग अभियोजन स्वीकृति में अड़गा डालना नहीं छोड़ रहे हैं।

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ये हैं दागियों को बचाने के कुछ मामले

1. कैसे ठंडी पड़ी स्मार्टसिटी जमीन घोटाले की जांच

साल 2020—21 में भोपाल स्मार्ट सिटी ने टीटीनगर क्षेत्र में सरकारी जमीनों की नीलामी की थी। करीब 1500 करोड़ कीमत की इन जमीनों की नीलामी के दौरान अफसरों ने नियम बदलकर खास लोगों को मुनाफा पहुंचाया था। ईओडब्ल्यू ने जांच भी शुरू की, लेकिन कुछ महीने बाद नगरीय प्रशासन विभाग के आदेश पर इस पर रोक लगा दी गई। सरकारी जमीन की नीलामी में क्या गड़बड़ी हुई और किन खास लोगों को लाभ पहुंचाने कौन से अफसरों ने नियमों को बदला, यह सब फाइलों में ही दबा रह गया।

2. रेंग रही पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन की इंजीनियर की जांच

मई 2023 में लोकायुक्त पुलिस ने आय से अधिक संपत्ति जुटाने के मामले में पुलिस हाउसिंग कॉर्पोरेशन की इंजीनियर हेमा मीणा के घर और फार्म हाउस पर छापा मारा था। छापे में यह संविदा इंजीनियर बेहिसाब संपत्ति की मालकिन पाई गई थीं। इस कार्रवाई के बाद हेमा को बर्खास्त कर दिया गया है। इस मामले में भी अब तक जांच ही चल रही है। हेमा की संविदा नियुक्ति बार—बार बढ़ाने वाले प्रोजेक्ट इंजीनियर भी निलंबन पर हैं।

संपत्ति क्यों नहीं की जा रही राजसात?

वर्ष 2011 में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा बनाए राजसात कानून के तहत भ्रष्ट अफसरों की संपत्ति राजसात क्यों नहीं हो पा रही है, यह भी एक बड़ा सवाल है। इस पूरे मामले को लेकर फरवरी में पीसीसी चीफ जीतू पटवारी ने सवाल भी उठाए थे। उन्होंने फरवरी 2024 तक के मामलों का जिक्र करते हुए सरकार को घेरा था।

सरकार से सवाल

कठोर कार्रवाई क्यों नहीं: इतने सारे मामलों के बावजूद कितने भ्रष्ट अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की गई है, अधिकतर मामलों में आरोपी निलंबित होकर फिर बहाल हो जाते हैं।
पैसे की वापसी प्रक्रिया क्यों नहीं है?: नागरिकों की रिश्वत की राशि वापस दिलाने के लिए कोई तंत्र क्यों नहीं है?
जवाबदेही कहां?: भ्रष्ट अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई न होने से सरकार की मंशा पर सवाल उठते हैं।

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