नियुक्ति प्रक्रिया की धीमी चाल से बेदम विश्वविद्यालय विनियामक आयोग

मध्यप्रदेश में प्राइवेट यूनिवर्सिटी रेगुलेटरी कमीशन के अध्यक्ष और सचिव की नियुक्ति में देरी के कारण आयोग का कामकाज सुस्त पड़ा है। इससे निजी विश्वविद्यालयों की निगरानी और फी डेटर्मिनेशन पर प्रभाव पड़ा है।

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Sanjay Sharma
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BHOPAL. मध्यप्रदेश में प्राइवेट यूनिवर्सिटीज की निगरानी करने वाली संस्था बीते चार माह से सुस्ती का शिकार है। मध्य प्रदेश निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग नाम की इस संस्था में पहले अध्यक्ष और फिर सचिव की अपॉइंटमेंट में महीनों बीत चुके हैं।

अब भी दो सदस्यों की अपॉइंटमेंट पेंडिंग है। इस वजह से आयोग के काम-काज की रफ्तार कछुआ चाल बनी हुई है। अध्यक्ष की नियुक्ति पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। इन तमाम वजहों से आयोग की स्थापना जिस उद्देश्य से की गई है उस पर अमल ही नहीं हो पा रहा है। 

उच्च शिक्षा विभाग की ढील बनी वजह

प्राइवेट यूनिवर्सिटी और कॉलेजों की मनमानी पर कसावट रखी जा सके। ऐसे में छात्रों से फीस की जबरिया वसूली न हो और एजुकेशनल लेवल भी क्वालिटी बना रहे।

इसकी निगरानी के लिए मध्यप्रदेश सरकार द्वारा प्राइवेट यूनिवर्सिटी रेगुलेटरी कमीशन की स्थापना की गई थी। आयोग का कार्यक्षेत्र पूरा मध्यप्रदेश है। यह उच्च शिक्षा विभाग के दायरे में काम करता है।

रेगुलेटरी कमीशन के पूर्व अध्यक्ष प्रो.भारत शरण सिंह का कार्यकाल पूरा होने के बाद उच्च शिक्षा विभाग नए ऑफिसर्स की अपॉइंटमेंट में पिछड़ता चला गया। नतीजा आयोग को चार माह तक नए ऑफिसर्स ही नहीं मिल पाए थे। 

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आवेदनों की स्क्रूटनी में ही बीत गए छह माह

रेगुलेटरी कमीशन में अध्यक्ष, सचिव और नए सदस्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया भी बेहद धीमी गति से आगे बढ़ी। आवेदनों की जांच और हिंदी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलगुरु प्रो. खेमसिंह डेहरिया की अध्यक्ष पद पर नियुक्ति के बाद काम में तेजी आई थी। 

हालांकि, उच्च शिक्षा विभाग अब तक केवल पार्ट-टाइम मेंबर की अपॉइंटमेंट ही कर पाया है। अभी भी विभाग को इस प्रक्रिया में सचिव की नियुक्ति करना बाकी है।

आयोग की प्रशासनिक बॉडी को अब भी दो सदस्यों की नियुक्ति का इंतजार है। इस वजह से आयोग में काम काज अब भी रफ्तार नहीं पकड़ सका है।  

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न हो पा रही निगरानी, न शुल्क निर्धारण पर लगाम

आयोग में नियुक्तियां (Private University Regulatory Commission) अधूरी होने के कारण प्रशासनिक काम प्रभावित हो रहे हैं। निजी विश्वविद्यालयों की निगरानी हो या इस सत्र के लिए शुल्क निर्धारण की प्रक्रिया भी भगवान भरोसे ही पूरी हो पाई है।

आयोग में सदस्यों के खाली पदों पर नियुक्ति आवेदनों की संख्या ज्यादा होने के कारण अटकने का हवाला दिया जा रहा है। अकादमिक सदस्य जैसे अहम किरदार की नियुक्ति न होने का असर सबसे ज्यादा नजर आ रहा है।

केवल कोरम के भरोसे आयोग काम कर रहा है इस वजह से निजी विश्वविद्यालयों के निरीक्षण और गतिविधियों पर भी केवल खानापूर्ति का खेल चल रहा है।

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