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Photograph: (THESOOTR)
मध्य प्रदेश में डिप्लोमा धारक उप-अभियंताओं का समयमान वेतनमान ग्रेजुएशन डिग्री के अभाव में रोक दिया गया है। राज्य सरकार के 14 अगस्त 2023 के सर्कुलर में की गई इस व्यवस्था को इंजीनियरों ने हाईकोर्ट में असंवैधानिक बताया है।
हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव जल संसाधन सहित अधिकारियों से जवाब मांगते हुए नोटिस जारी किया है। हाई कोर्ट में इस मामले की सुनवाई का असर शासकीय कर्मियों के एक बड़े वर्ग पर पढ़ सकता है। क्योंकि इसके बाद ही यह तय होगा कि समयमान वेतनमान, सिर्फ लंबी सेवा का बेनिफिट है या इसे प्रमोशन से जोड़ा जा सकता है।
ग्रेजुएशन शर्त के चलते रुका चौथा समयमान वेतनमान
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जस्टिस मनिंदर सिंह भट्टी की बेंच में दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि डिप्लोमा धारक उप-अभियंताओं को केवल इसलिए चौथे समयमान वेतनमान से वंचित किया गया क्योंकि उन्होंने ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल नहीं की।
याचिकाकर्ता प्रवीण शर्मा सहित अन्य इंजीनियरों ने बताया कि वे जल संसाधन विभाग में उप अभियंता के पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं और 35 वर्ष से अधिक की सेवा पूरी कर चुके हैं। तीसरा समयमान वेतनमान मिलने के बावजूद चौथा वेतनमान 14 अगस्त 2023 के सरकारी सर्कुलर का हवाला देकर रोक दिया गया।
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शैक्षणिक योग्यता जोड़ना अवैधानिक
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता प्रशांत अवस्थी और असीम त्रिवेदी ने दलील दी कि सरकार ने पदोन्नति नियमों में निर्धारित शैक्षणिक योग्यता (ग्रेजुएशन) को गलत तरीके से समयमान वेतनमान से जोड़ दिया है। उनका कहना है कि समयमान वेतनमान पदोन्नति नहीं, बल्कि लंबी सेवा के बाद मिलने वाला फाइनेंशियल अपग्रेडेशन है।
ग्रेजुएशन की अनिवार्यता इस वेतनमान पर लागू करना संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 समानता और समान रोजगार अवसर के अधिकार का उल्लंघन है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि यह प्रावधान डिप्लोमा इंजीनियरों के साथ सीधा भेदभाव है।
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हाईकोर्ट ने मांगा जवाब, सर्कुलर की वैधता पर विचार
कोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेते हुए राज्य सरकार के प्रमुख सचिव जल संसाधन, मुख्य अभियंता और अन्य अधिकारियों को नोटिस जारी कर विस्तृत जवाब-तलब किया है। कोर्ट ने पूछा है कि ग्रेजुएशन डिग्री जैसी प्रमोशन योग्यता को समयमान वेतनमान जैसे सर्विस बेनिफिट का आधार कैसे बनाया गया।
हाईकोर्ट में 19 जनवरी को इस मामले की अगली सुनवाई में यह स्पष्ट होगा कि 14 अगस्त 2023 का सर्कुलर संवैधानिक है या नहीं, और क्या इससे इंजीनियरों के अधिकारों का हनन होता है। इस मामले में आने वाले फैसले का लाभ उन सभी सरकारी कर्मचारियों को मिलेगा जिनके विभागों ने समयमान और वेतनमान को पदोन्नति से जोड़ दिया है।
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