शहडोलः एक घंटे में अधिकारियों ने कैसे खाया 14 किलो ड्रायफ्रूट्स? दुकानदारों ने बताई हकीकत

मध्यप्रदेश के शहडोल जिले में जल गंगा कार्यक्रम के नाम पर फर्जी बिल का घोटाला सामने आया है। ग्राम पंचायत भदवाही में 27 मई को जल संरक्षण कार्यक्रम हुआ था।

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Sanjeet kumar dhurwey
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Photograph: (the sootr)

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MP News. मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में जल गंगा कार्यक्रम के नाम पर फर्जी बिल घोटाला सामने आया है। ग्राम पंचायत भदवाही में 27 मई को जल संरक्षण कार्यक्रम हुआ था। कार्यक्रम में अफसरों ने एक घंटे में 14 किलो काजू-बादाम, 2 किलो घी और सैकड़ों समोसे खा गए। इसका फर्जी बिल सामने आया है। 

एक घंटे के इस कार्यक्रम में 19,010 रुपए का बिल पास किया गया। जब इस बारे में दुकानदारों से बात की गई तो उन्होंने बताया कि इस सामग्री को कभी खरीदा ही नहीं गया। इसके बजाय सचिव ललन बैगा ने दुकानदारों से खाली बिल लेकर उसमें मनमानी से सामग्री जोड़कर राशि ले ली। 

फर्जी बिल में कैसे किया घोटाला? 

विभागीय जांच में यह बात सामने आई है कि सचिव ने दुकानदारों से ब्लैंक बिल लिया था। उस बिल में सामग्री जोड़कर राशि निकाल ली। ग्राम पंचायत के दुकानदार गोविंद गुप्ता और लल्लू केवट ने यह खुलासा किया कि उन्होंने  कभी भी 5 किलो काजू, 5 किलो बादाम या 2 किलो घी नहीं दिया था। सचिव ने इन दुकानदारों से केवल बिल लिए थे। 

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घोटाले में शामिल कौन-कौन जिम्मेदार? 

Shahdol Dry Fruits News: जानकार बताते हैं कि ग्राम पंचायत में किसी भी भुगतान से पहले एक प्रस्ताव बनाना होता है। कोटेशन मंगाए जाते हैं। इसके बाद संबंधित अधिकारियों से सहमति प्राप्त की जाती है। जबकि इस घोटाले में सचिव ने अकेले ही काम नहीं किया। 

इसके पीछे सरपंच, जनपद पंचायत के अधिकारी और भुगतान निरीक्षण करने वाले कर्मचारी भी शामिल हैं। इस मामले को उजागर होने के बाद अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। इससे यह सवाल उठता है कि प्रशासन इस घोटाले को लेकर चुप क्यों हैं।

5 पॉइंट में समझें पूरी खबर 

जल गंगा कार्यक्रम में बिल घोटाला: शहडोल जिले के ग्राम पंचायत भदवाही में जल गंगा कार्यक्रम के दौरान अफसरों ने 14 किलो काजू-बादाम, 2 किलो घी और सैकड़ों समोसे खाए। इसके लिए फर्जी बिल पास किए गए, जिसमें 19,010 रुपये का भुगतान किया गया।

फर्जी बिल का खुलासा: दुकानदारों ने बताया कि उन्होंने यह सामग्री कभी बेची ही नहीं थी। सचिव ललन बैगा ने दुकानदारों से खाली बिल लिए और उसमें मनमानी से सामग्री जोड़कर राशि आहरित की। गोविंद गुप्ता और लल्लू केवट ने इस घोटाले का खुलासा किया।

कैसे हुआ घोटाला?: सचिव ने दुकानदारों से ब्लैंक बिल लेकर उसमें सामग्री जोड़ दी। किसी भी सरकारी भुगतान से पहले प्रस्ताव बनाना, कोटेशन लेना और अधिकारियों से सहमति प्राप्त करना होता है, लेकिन इस घोटाले में सभी प्रक्रिया को दरकिनार कर दिया गया।

घोटाले में जिम्मेदार कौन?: सचिव के अलावा, सरपंच, जनपद पंचायत के अधिकारी और भुगतान निरीक्षण करने वाले कर्मचारी भी इस घोटाले में शामिल हैं। हालांकि, इस मामले को उजागर होने के बावजूद अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

भ्रष्टाचार का खुलासा: यह मामला सिर्फ 14 किलो ड्रायफ्रूट या समोसे का नहीं है, बल्कि सरकारी कार्यक्रमों में हो रहे भ्रष्टाचार को उजागर करता है। जल संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम का नाम लेकर अधिकारियों ने निजी लाभ लिया, और प्रशासन अभी तक इस पर चुप है।

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सरकारी सिस्टम का भ्रष्टाचार तंत्र

यह मामला 14 किलो ड्रायफ्रूट या समोसे का नहीं, बल्कि यह सरकारी कार्यक्रमों में भ्रष्टाचार की तस्वीर को उजागर करता है। कैसे कार्यक्रमों के नाम पर जनता का पैसा लूटा जा रहा है। जल संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम का इस्तेमाल निजी लाभ के लिए किया जा रहा है। इस मामले में सचिव, सरपंच और अन्य जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होगी या नहीं यह आने वाले समय में पता चलेगा। अब मध्यप्रदेश घोटाला के लिए जाना जाने लगा है।

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