भोपाल के गोविंदपुरा तहसीलदार को एडीएम और कोर्ट के आदेश के बाद भी अतिक्रमणकारियों का साथ देना भारी पड़ गया है। हाईकोर्ट ने तहसीलदार दिलीप कुमार चौरसिया से सख्त लहजे में कहा कि तुम्हें हम उदाहरण बनाएंगे। हाईकोर्ट ने गोविंदपुरा तहसीलदार की संपत्ति की जांच के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने ऐसा आदेश जारी किया जिसका असर अब पूरे मध्यप्रदेश के तहसीलदारों पर पड़ेगा।
लोकायुक्त करेगा तहसीलदार की संपत्ति की जांच
26 जून 2025 को तहसीलदार दिलीप कुमार चौरसिया कोर्ट में पेश हुए। उन्होंने आते ही माफी मांगी और 26 जून को जारी किए गए नोटिस का हवाला दिया, लेकिन कोर्ट ने यह दलील खारिज कर दी। कोर्ट ने पूछा कि ADM के आदेश में 11 महीने की देरी क्यों की गई। साथ ही कोर्ट के आदेश की अनदेखी पर भी सवाल किया गया। इस सवाल का तहसीलदार कोई जवाब नहीं दे सके।
हाईकोर्ट ने साफ कहा कि इस कार्रवाई को टालना यह दिखाता है कि वह अतिक्रमणकारियों से मिले हुए हैं। उन्होंने रिश्वत लेकर भ्रष्टाचार किया है। कोर्ट ने लोकायुक्त को तहसीलदार की संपत्ति की जांच के आदेश दिए। साथ ही यह पता लगाने को कहा कि उनके पास आय से अधिक संपत्ति है या नहीं। भोपाल कलेक्टर को भी निर्देश दिया गया कि उन्हें तहसीलदार के खिलाफ विभागीय जांच कर तीन महीने में रिपोर्ट कोर्ट में पेश करनी होगी।
ADM के बाद HC के आदेश को टालना पड़ा भारी
14 मई 2025 को बैंक ने हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की। हाईकोर्ट की डिविजन बेंच में जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस दिनेश कुमार पालीवाल ने सुनवाई की। कोर्ट ने इस मामले में तहसीलदार की भूमिका पर संदेह जताया। कोर्ट ने आशंका जताई कि तहसीलदार अतिक्रमणकारियों से मिले हुए हैं।
कोर्ट ने आदेश दिया कि 23 जून 2025 तक मॉर्टगेज संपत्ति पर कब्जा दिलाया जाए। तहसीलदार ने इस आदेश को भी नजरअंदाज कर दिया। 23 जून को अगली सुनवाई हुई। इसमें तहसीलदार को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का आदेश था। तब भी उन्होंने केवल खानापूर्ति करते हुए एक नोटिस जारी कर दिया।
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तहसीलदारों ने अटकाया मामला
भोपाल के पारस नगर फेज-1 में मोहम्मद अनीस और उनकी पत्नी नसीम रहते हैं। दोनों ने इक्विटल स्मॉल फाइनेंस बैंक से मकान गिरवी रखकर लोन लिया था। लोन लेने के बाद उन्होंने इसे चुकाने से साफ इनकार कर दिया। बैंक ने यह मामला एडिशनल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट साउथ भोपाल के पास पहुंचाया। सुनवाई के बाद अधिकारी ने फैसला बैंक के पक्ष में सुनाया।
23 जुलाई 2024 को गोविंदपुरा तहसीलदार दिलीप कुमार चौरसिया को आदेश जारी हुआ। आदेश में कहा गया कि कब्जा दिलाकर संपत्ति बैंक को सौंप दी जाए। इसके लिए पुलिस सहायता लेने के निर्देश भी दिए गए थे। तहसीलदार ने यह आदेश लगभग आठ महीने तक लंबित रखा। बैंक ने कई बार तहसील कार्यालय में आवेदन जमा किए। 5 मार्च 2025 को तहसीलदार ने सिर्फ एक नोटिस जारी किया। कोई कार्रवाई नहीं की गई जिससे बैंक को हाईकोर्ट जाना पड़ा।
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पूरे प्रदेश के तहसीलदारों के लिए जारी हुआ आदेश
इस सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने बड़ा आदेश पारित करते हुए कहा कि सरफेसी एक्ट की धारा 14 के तहत CJM और ADM द्वारा जारी आदेशों पर तहसीलदारों को हर हाल में 30 दिनों के भीतर कार्रवाई करनी होगी। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, तो उनके विरुद्ध सेवा में लापरवाही के चलते विभागीय जांच की जाएगी।
कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि इस निर्देश की प्रति राज्य के मुख्य सचिव को भेजी जाए, जो इसे सभी कलेक्टरों को भेजेंगे, और प्रत्येक जिला कलेक्टर इसे अपने जिले के सभी तहसीलदारों को प्रेषित करेंगे। इस तरह, गोविंदपुरा तहसीलदार दिलीप कुमार चौरसिया की एक गलती ने पूरे प्रदेश के तहसीलदारों की कार्यप्रणाली को हाईकोर्ट की निगरानी में ला खड़ा किया है।
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