सात साल से एमपी में स्थायी परमिट बंद, बारात–टूरिस्ट परमिट पर दौड़ रही बसें

कोर्ट के आदेश के बावजूद परिवहन विभाग में लापरवाही चरम पर है। हालात यह हैं कि स्थायी परमिट जारी करने के लिए जिम्मेदार अधिकारी संभाग स्तर पर अब तक तैनात ही नहीं किए गए। जानें क्या हा पूरा मामला इस लेख में....

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कोर्ट के आदेश के बावजूद परिवहन विभाग में लापरवाही चरम पर है। हालात यह हैं कि स्थायी परमिट जारी करने के लिए जिम्मेदार अधिकारी संभाग स्तर पर अब तक तैनात ही नहीं किए गए। विभाग के उच्च अधिकारी समाधान के बजाय चुप्पी साधे हुए हैं, जिससे बस संचालकों की मौज है, लेकिन दो लाख से ज्यादा यात्रियों को रोजाना गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

इधर स्थायी परमिट देने की जिम्मेदारी तय करने वाली फाइल 10 दिन से मंत्रालय में धक्के खा रही है। ग्रामीण यात्रियों को लेकर शासन और प्रशासन की चिंता का ये आलम है कि विगत सात साल से स्थायी परमिट बिना ही प्रदेश में बसें सवारियों को ढो रही हैं। thesootr इस परेशानी को एक मुहिम के रूप में लेने जा रहा है, क्योंकि ये मामला आम लोगों से जुड़ा होने के बाद भी जिम्मेदार आंख मूंदे हुए हैं। सरकार की ये लापरवाही कभी भी बड़े हादसे का कारण बन सकती है। तो आइए समझते हैं पूरे मामले को विस्तार से…

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पहले इस समस्या को समझते हैं

मध्य प्रदेश में 1 जनवरी से 4 हजार से ज्यादा बसें बंद हो गई हैं। यात्री बस स्टैंड और सड़कों पर इंतजार कर रहे हैं। हाईकोर्ट के आदेश के बाद इन बसों के अस्थायी परमिट की व्यवस्था खत्म हो गई है। कोर्ट ने कहा था कि अस्थायी परमिट भ्रष्टाचार बढ़ा रहे हैं। कोर्ट के आदेश के बाद हालात ये हैं कि स्थायी परमिट जारी करने वाले अधिकारी संभाग स्तर पर पदस्थ ही नहीं हुए हैं। परिवहन विभाग के अफसर भी समाधान पर चुप्पी साधे हुए हैं।

बस संचालकों की मुश्किल ये है कि बिना परमिट बस चलाने पर चार गुना पेनाल्टी का प्रावधान है। बिना परमिट की गाड़ियों का एक्सीडेंट होने पर यात्रियों को भी बीमा का लाभ नहीं मिल पाएगा। हालांकि इससे बड़ी समस्या यह है कि प्रदेश में 2018-19 से ही स्थायी परमिट देने का काम ठप पड़ा हुआ है।

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हाईकोर्ट ने कहा था– अस्थायी परमिट में भ्रष्टाचार की बू

सितंबर 2024 में ग्वालियर हाईकोर्ट ने बस परमिट से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान स्टेट ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी की मनमानी पर गंभीर टिप्पणी की थी। कोर्ट ने कहा था- अस्थायी परमिट देना नियम बन गया है। इससे पूरे सिस्टम में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद की बू आ रही है। ये परिवहन विभाग के प्रमुख सचिव और मुख्य सचिव की जिम्मेदारी है कि वे सिस्टम में फैली मनमानी और विसंगतियों को देखें और भ्रष्टाचार करने वालों पर कार्रवाई करें।

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सात साल से RTA ही नहीं…

बसों को स्थायी परमिट देने वाले अथॉरिटी RTA यानी रोडवेज ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी का नोटिफिकेशन आखिरी बार 2015 में हुआ था। 2019 आते आते जिम्मेदार अफसर रिटायर हो गए और फिर कभी RTA (Roadways Transport Authority) का नोटिफिकेशन ही जारी नहीं हुआ। बता दें कि अब तक RTA की जिम्मेदारी परिवहन विभाग के ही  डिप्टी ट्रांसपोर्ट कमिश्नर को सौंपी जाती थी, लेकिन अब सीनियर लेवल पर परिवहन विभाग में अफसर ही नहीं बचे हैं। इसलिए यह अधिकार राजस्व कमिश्नरों को दिए जाने की चर्चा भी है।

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2 दिसंबर को अपर मुख्य सचिव ने जारी किया था आदेश

अस्थायी परमिट के संबंध में परिवहन विभाग के अपर मुख्य सचिव एसएन मिश्रा ने 2 दिसंबर 2024 को एक लेटर सभी जिला परिवहन अधिकारी सहित अन्य अफसरों को भेजा था। इसमें लिखा था कि मोटरयान अधिनियम की धारा 87(1)(सी) के प्रावधानों के तहत केवल विशिष्ट आवश्यकता के लिए ही अस्थायी परमिट जारी किए जा सकते हैं, लेकिन परिवहन विभाग द्वारा बिना परीक्षण किए अनावश्यक रूप से अस्थायी परमिट जारी किए जा रहे हैं।

एक भी डिप्टी ट्रांसपोर्ट कमिश्नर नहीं, जिन्हें परमिट का अधिकार

कोर्ट और अपर मुख्य सचिव की तरफ से डायरेक्शन मिलने के बाद जिला परिवहन अधिकारियों ने अस्थायी परमिट जारी करने से हाथ खड़े कर दिए हैं। अब नियम के तहत डिप्टी ट्रांसपोर्ट कमिश्नर ही परमिट जारी कर सकते हैं। वे ही सक्षम अधिकारी हैं, लेकिन स्थिति ये है कि प्रदेश के 10 संभागों में से एक में भी डिप्टी ट्रांसपोर्ट कमिश्नर पदस्थ नहीं है। ऐसे में पूरा मामला अटक गया है। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि जिला परिवहन अधिकारियों के प्रमोशन ही नहीं हुए। समय पर प्रमोशन होते तो वे डिप्टी ट्रांसपोर्ट कमिश्नर बन पाते। संभागीय कमिश्नर को ये पावर दे दिए गए थे, लेकिन बाद में ये व्यवस्था भी खत्म हो गई।

अब बारात–टूरिस्ट के ही परमिट, लेकिन यात्रियों से ज्यादा वसूली

एक महीने के लिए मिलने वाले अस्थायी परमिट पर रोक के बीच अब बस ऑपरेटर बारात परमिट ले रहे हैं। ये ऑनलाइन मिल जाता है। ऑनलाइन ही फीस जमा करनी होती है। घर बैठे परमिट आ जाता है लेकिन इसके लिए फीस अधिक चुकानी पड़ रही है, जिसका खामियाजा यात्रियों को भुगतना पड़ रहा है। उनसे ज्यादा किराया वसूला जा रहा है। बता दें कि बारात, टूरिस्ट और तीर्थ यात्रा के लिए अस्थायी परमिट दिया जाता है। लेकिन इसमें यात्रियों की संख्या तय रहती है। उनके नाम की जानकारी परिवहन विभाग को दी जाती है लेकिन बारात परमिट के नाम पर रोजाना यात्रियों को बैठाकर सफर करवाया जाता है। दूसरी तरफ अगर बिना परमिट बस का संचालन होता है तो चार गुना पेनाल्टी लगती है।

धारा 87 का धड़ल्ले से दुरुपयोग

बता दें कि जिन मार्गों पर पर्याप्त वाहन नहीं हैं, वहां धारा 87 के तहत विशेष परिस्थितियों में अस्थायी परमिट जारी करने के प्रावधान हैं, लेकिन विभाग द्वारा इसका पालन नहीं किया जा रहा है। परिवहन विभाग द्वारा जो अस्थायी परमिट जारी किए जा रहे हैं, वो धारा 87 के अनुरूप जारी नहीं हो रहे हैं। ऊपर से परिवहन के काम में सालों से जुटे खिलाड़ी मनमाना किराया वसूलने का अलग ही खेल खेल रहे हैं। दरअसल इन्हें पता होता है कि किस समय पर किस रूट पर सबसे ज्यादा यात्री होते हैं। उदाहरण के लिए किसी रूट पर सुबह आठ बजे सबसे ज्यादा यात्री होते हैं तो ये लोग 15- 15 मिनट के अंतर पर उस रूट के चार परमिट ले लेते हैं। ऐसे में इस प्राइम टाइम पर दूसरी बस नहीं चल सकती और ये खुद सिर्फ एक बस चलाकर यात्रियों की ओवर लोडिंग के साथ ही महंगा किराया भी वसूलते हैं। ऐसे में बस ऑपरेटर को दोहरा फायदा होता है। पहला- सिर्फ एक बस का डीजल लगता है और यात्रियों से भी मनमाना किराया वसूला जाता है।

चार हजार बसें बंद

प्राइम रूट बस ऑनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष गोविंद शर्मा ने बताया कि अस्थायी परमिट पर रोक से मध्यप्रदेश में करीब 4 हजार यात्री बसें प्रभावित हुई हैं। बिना परमिट बस चलाने पर पेनाल्टी लगेगी। ऐसे में मोटर मालिकों ने बस खड़ी कर दी हैं। यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इस संबंध में फिलहाल कोई हल नहीं निकला है।

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