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मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (MPPSC) ने 3 अगस्त 2023 को भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया गया था। यह भर्ती कुटीर एवं ग्रामोद्योग विभाग में सहायक संचालक (Assistant Director) के पदों पर निकाली गई थी। विज्ञापन के अनुसार इन पदों के लिए आर्ट्स, साइंस या कॉमर्स विषयों में स्नातक डिग्रीधारी अभ्यर्थी ही पात्र थे। इसके साथ ही उम्मीदवारों को सहकारी संस्थाओं या सहकारिता से जुड़े किसी क्षेत्र में कम से कम दो वर्षों का कार्यानुभव होना अनिवार्य था। इस तरह की पात्रता निर्धारित करने का कारण इन पदों के लिए व्यावहारिक और गैर-तकनीकी पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को प्राथमिकता देना था।
टेक्निकल डिग्रीधारियों के चयन पर विवाद
4 जून 2025 को आयोग ने इस पद की सिलेक्शन लिस्ट जारी की। इसमें दो ऐसे अभ्यर्थियों के नाम शामिल थे, जिनके पास B.E. और B.Tech. जैसी टेक्निकल डिग्रियां थीं। यही नहीं, प्रतीक्षा सूची (वेटिंग लिस्ट) में भी टेक्निकल बैकग्राउंड वाले अभ्यर्थियों को स्थान दिया गया। इस बात ने उन अभ्यर्थियों को चौंका दिया जिन्होंने विज्ञापन में स्पष्ट रूप से दी गई अहर्ता के अनुसार आवेदन किया था। इनके पास आवश्यक योग्यता और अनुभव मौजूद थे, लेकिन वे चयन सूची से बाहर रह गए।
आयोग की मनमानी से योग्य अभ्यर्थियों का नुकसान
इस मामले को लेकर जब एक अभ्यर्थी रवि मौर्य ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की शरण ली। उनकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर ने याचिका (क्रमांक 21190/2025) में बेहद ठोस आधारों पर दावा किया। इसमें दावा किया गया कि लोक सेवा आयोग ने भर्ती के नियमों की खुली अनदेखी की है। याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि उसने नियमों के अनुसार स्नातक डिग्री और अनुभव के साथ आवेदन किया था। लेकिन उसकी पात्रता को दरकिनार कर तकनीकी डिग्रीधारियों को प्राथमिकता दी गई। यह स्पष्ट रूप से असंवैधानिक और भेदभावपूर्ण है। यह आयोग की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करता है। साथ ही, जो उम्मीदवार वर्षों से ऐसी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, उनके साथ भी अन्याय है
उम्मीदवारों के लिए अलग से जारी हो चुका है विज्ञापन
रवि मौर्य के वकील रामेश्वर सिंह ठाकुर और हितेंद्र कुमार गोहलानी ने कोर्ट में दलील दी। दलील में यह कहा कि मध्यप्रदेश हातकरघा एवं हस्तशिल्प संचालनालय (राजपत्रित) सेवा भर्ती नियम, 2014 के अनुसार सहायक संचालक (गैर-तकनीकी) पद के लिए तकनीकी डिग्रीधारियों की पात्रता नहीं है। इस नियम के अंतर्गत अनुसूची-3 में स्पष्ट रूप से लिखा है कि इस पद के लिए केवल कला, विज्ञान या वाणिज्य में स्नातक डिग्री ही मान्य है। उन्होंने यह भी बताया कि यदि तकनीकी डिग्रीधारियों के लिए कोई अवसर होता, तो वह 'असिस्टेंट डायरेक्टर (टेक्निकल)' पद के अंतर्गत आता है। इसके लिए आयोग पहले ही अलग से विज्ञापन जारी कर चुका था। इस विज्ञापन में केवल B.E./B.Tech. डिग्रीधारियों से आवेदन मांगे गए थे।
HC ने MPPSC और सरकार को जारी किए नोटिस
मामले की प्रारंभिक सुनवाई जस्टिस एम.एस. भट्टी की एकलपीठ में हुई। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पहली नजर में पाया कि आयोग की ओर से नियमों की अनदेखी की गई है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की अनियमितताएं सरकारी संस्थाओं की विश्वसनीयता को ठेस पहुंचाती हैं। साथ ही हजारों योग्य उम्मीदवारों के भविष्य के साथ खिलवाड़ भी करती हैं। इस आधार पर कोर्ट ने मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग, राज्य शासन और चयनित अभ्यर्थियों को नोटिस जारी किया। साथ ही, चार सप्ताह के भीतर जवाब प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। वहीं कोर्ट ने संपूर्ण सिलेक्शन लिस्ट को याचिका के निर्णयाधीन घोषित कर दिया है।
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चयनित उम्मीदवार हुए परेशान
हाईकोर्ट के इस निर्णय के बाद चयन प्रक्रिया पर अस्थायी विराम लग गया है। साथ ही, उन अभ्यर्थियों के बीच भी गहरी बेचैनी फैल गई है, जिनका नाम चयन सूची में आया था। उन्हें अब डर सता रहा है कि कहीं कोर्ट का अंतिम फैसला चयन सूची को पूरी तरह निरस्त न कर दे। वहीं, प्रतीक्षा सूची में शामिल उम्मीदवारों की उम्मीदें भी अब कोर्ट के निर्णय पर निर्भर हो गई हैं। इस बीच, याचिकाकर्ता और उनके जैसे अन्य वंचित अभ्यर्थी इस कानूनी लड़ाई को न्याय की दिशा में एक सही कदम मान रहे हैं।
21 जुलाई को होगी अगली सुनवाई
मामले की अगली सुनवाई 21 जुलाई 2025 को तय की गई है। इसमें कोर्ट के समक्ष आयोग और शासन से दाखिल किए गए जवाबों की समीक्षा की जाएगी। यदि कोर्ट यह पाता है कि आयोग ने नियमों का उल्लंघन करते हुए तकनीकी डिग्रीधारियों को चयनित किया है। तो इस चयन को रद्द किया जा सकता है। साथ ही आयोग को पुनः पारदर्शी प्रक्रिया अपनाकर चयन करना होगा।
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