MP News: मध्य प्रदेश के कई जिलों में किसान मूंग की खेती में अत्यधिक कीटनाशकों और खरपतवार नाशकों का उपयोग कर रहे हैं। ताकि फसल जल्दी पक जाए और बाजार में जल्द पहुंचाई जा सके। एक्सपर्ट का मानना है कि पैराक्वेट और ग्लाइफोसेट जैसे रसायनों का उपयोग मूंग की फसलों में हो रहा है। इससे न केवल उपज की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है बल्कि इसका सीधा असर उपभोक्ताओं की सेहत और पर्यावरण पर भी पड़ रहा है।
मिट्टी की उर्वरता घट रही है, भूजल स्तर नीचे जा रहा है, और हवा व जल में विषाक्तता बढ़ रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल कृषि पद्धतियों को अपनाना आवश्यक है ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए कृषि और प्रकृति दोनों सुरक्षित रहें। सरकार भी अब किसानों को जागरूक करने की दिशा में सक्रिय है।
ये खबर भी पढ़िए... Ladli Behna Yojana: लाड़ली बहनों के खाते में जानें कब आएंगे 24वीं किस्त के पैसे
मिट्टी की उर्वरता घट रही
इन रसायनों के अत्यधिक प्रयोग से खेतों की मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीवों की संख्या तेजी से घट रही है। इससे न केवल उर्वरता प्रभावित हो रही है, बल्कि भूमि की प्राकृतिक पुनरुत्पादन क्षमता भी खत्म होती जा रही है।
ये खबर भी पढ़िए... सीएम मोहन ने कर्नल सोफिया की तारीफ, पाक को सुनाई खरी-खोटी, बोले-अभी हमारे अधिकारी मर्यादा में
बिजली की खपत में तेजी से वृद्धि
गर्मी में मूंग की खेती करने वाले किसान बार-बार सिंचाई कर रहे हैं, जिससे न केवल भूजल स्तर गिर रहा है, बल्कि बिजली की खपत भी बढ़ रही है। यह स्थिति आने वाले समय में बड़े जल संकट को जन्म दे सकती है।
ये खबर भी पढ़िए... अग्निवीर भर्ती में बड़ा बदलाव: दौड़ का समय 30 सेकंड बढ़ा, ज्यादा युवाओं को मिलेगा मौका!
उपभोक्ताओं का मूंग से भरोसा उठा
रसायनों के अवशेषों के कारण उपभोक्ताओं में मूंग को लेकर भय बढ़ गया है। कई ग्राहक अब दुकानदारों से मूंग की उत्पत्ति पूछकर ही खरीदारी कर रहे हैं, जिससे बाज़ार में मूंग की मांग घट रही है।
ये खबर भी पढ़िए... नागरिक सुविधाओं से जुड़े सभी विभागों के कर्मचारियों का अवकाश तत्काल प्रभाव से रद्द
किसानों को समझाइश
राज्य सरकार ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए अब विशेषज्ञों के माध्यम से किसानों को प्रशिक्षित करने का निर्णय लिया है। खासकर उन जिलों में जहां मूंग में रसायनों का अत्यधिक उपयोग हो रहा है।
कृषि पद्धतियां ही भविष्य का रास्ता
विशेषज्ञों का कहना है कि प्राकृतिक विधियों से की गई मूंग की खेती न केवल पर्यावरण के लिए बेहतर है, बल्कि इससे उत्पाद की गुणवत्ता और बाजार में उसकी मांग भी बनी रहती है। टिकाऊ खेती ही भविष्य है।