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MP NEWS: जबलपुर की नानाजी देशमुख वेटरनरी यूनिवर्सिटी में भ्रष्टाचार और एक असिस्टेंट रजिस्ट्रार के दबदबे का एक उदाहरण सामने आया है। यूनिवर्सिटी ने उस व्यक्ति को नियुक्त करने के लिए नियमों को ताक पर रखकर उसके अंक बढ़ा दिए। जब हाईकोर्ट ने उस नियुक्ति को रद्द कर दिया, तब भी यूनिवर्सिटी कोर्ट के आदेश के बाद उस नियुक्ति को सही ठहरा रही है।
कोर्ट ने रद्द की नियुक्ति
जबलपुर स्थित Nanaji Deshmukh Veterinary University में सहायक रजिस्ट्रार की नियुक्ति पर विवाद उठ गया है। यह विवाद रामकिंकर मिश्रा की 2018 में हुई नियुक्ति से जुड़ा है। किरण अहिरवार नामक अभ्यर्थी ने इस मामले में हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट ने 22 अप्रैल 2025 को अपने आदेश में कहा कि मिश्रा की नियुक्ति प्रक्रिया में नियमों की अनदेखी की गई थी। कोर्ट ने उनकी नियुक्ति रद्द कर दी
कोर्ट के स्पष्ट आदेश के बावजूद विश्वविद्यालय ने पुराने स्कोर कार्ड और सलेक्शन लिस्ट को फिर से सही मानकर जारी कर दिया। इस पर किरण अहिरवार ने अवमानना और मनमानी के खिलाफ पुनः कोर्ट में याचिका दायर की है।
बढ़ाए गए रामकिंकर मिश्रा के अंक
साल 2017 में विश्वविद्यालय ने विभिन्न पदों के लिए भर्ती विज्ञापन जारी किया। किरण अहिरवार और रामकिंकर मिश्रा दोनों ने सहायक रजिस्ट्रार के पद के लिए आवेदन किया। लिखित परीक्षा में किरण के अंक रामकिंकर से अधिक थे। हालांकि, स्कोर कार्ड में रामकिंकर को विश्वविद्यालय कर्मचारी और अनुभव के आधार पर 11 अतिरिक्त अंक दिए गए, जिससे वे मेरिट में ऊपर आ गए। इसके अतिरिक्त, रामकिंकर मिश्रा को NCC/NSS/खेल पुरस्कारों के लिए भी दो अंक दिए गए। इस कारण उनका कुल स्कोर 68.40 हो गया, जबकि किरण अहिरवार का स्कोर 66.60 रहा।
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अंक बढ़ाने का प्रावधान नहीं था
याचिका में सवाल उठाया गया कि क्या विश्वविद्यालय के पास इस तरह अतिरिक्त अंक देने का कोई नियम या कानूनी प्रावधान था? जिस पर यूनिवर्सिटी की ओर से अधिवक्ता के पास कोई भी जवाब नहीं था। कोर्ट ने इस सवाल का जवाब न मिलने पर चयन को ही असंवैधानिक मानते हुए रद्द कर दिया।
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HC ने दिया था नई मेरिट लिस्ट बनाने का आदेश
जस्टिस संजय द्विवेदी ने 22 अप्रैल 2025 को दिए आदेश में साफ कहा था कि चयन प्रक्रिया में न तो विज्ञापन में और न ही किसी नियम में अतिरिक्त अंकों का प्रावधान था। उसके बाद भी रामकिंकर मिश्रा को नियमों के खिलाफ जाते हुए अधिक अंक दिए गए। इसलिए मिश्रा का चयन रद्द किया जाता है और विश्वविद्यालय को निर्देश दिया जाता है कि वह तीन महीने के भीतर नियमों के अनुसार नई मेरिट सूची बनाए।
रामकिंकर मिश्रा की रिव्यू पिटीशन खारिज
इस फैसले के खिलाफ रामकिंकर मिश्रा ने पुनरीक्षण याचिका दायर की, जिसे 1 मई 2025 को फिर से खारिज कर दिया गया। कोर्ट ने माना कि मिश्रा के चयन को कभी विधिसम्मत रूप से जांचा ही नहीं गया था, और अब जबकि जांच हो चुकी है और नियुक्ति गलत पाई गई है, तो उसमें सुधार करना ही सही है।
4 प्वाइंट्स में समझें पूरी स्टोरी👉 2018 में रामकिंकर मिश्रा की सहायक रजिस्ट्रार के पद पर नियुक्ति पर विवाद हुआ। किरण अहिरवार ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी। अदालत ने पाया कि नियुक्ति में नियमों की अनदेखी की गई थी और इसे रद्द कर दिया। 👉 रामकिंकर मिश्रा को परीक्षा में अतिरिक्त अंक दिए गए। इनमें विश्वविद्यालय कर्मचारी होने के आधार पर 11 अंक और NCC/NSS/खेल पुरस्कारों के लिए 2 अंक शामिल थे। 👉 याचिका में यह सवाल उठाया गया था कि क्या विश्वविद्यालय के पास अतिरिक्त अंक देने का कानूनी प्रावधान था। कोर्ट ने इस पर कोई उचित जवाब नहीं मिलने पर रामकिंकर मिश्रा की नियुक्ति को असंवैधानिक मानते हुए रद्द कर दिया। 👉 हाईकोर्ट के आदेश और पुनरीक्षण याचिका खारिज होने के बावजूद, विश्वविद्यालय ने पुरानी मेरिट लिस्ट को सही मानकर फिर से जारी कर दिया। इसके बाद किरण अहिरवार ने अदालत में अवमानना याचिका दायर की है। |
यूनिवर्सिटी ने जारी कर दी पुरानी मेरिट लिस्ट
कोर्ट के साफ आदेश और रिव्यू याचिका खारिज होने के बाद भी विश्वविद्यालय की आंतरिक समिति ने पुरानी मेरिट सूची को ही ‘सही’ बताते हुए दोबारा जारी कर दिया है। इससे किरण अहिरवार और भी ज्यादा आहत हैं। उनका आरोप है कि रामकिंकर मिश्रा को सहायक रजिस्ट्रार के पद पर बनाए रखते हुए उन्हें लीगल सेल का भी नियंत्रण दे दिया गया है, जिससे वे अब अपने पद का दुरुपयोग कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि अदालत की अवमानना कर यूनिवर्सिटी खुलेआम कोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ा रही है।
अब फिर कोर्ट की शरण ले रहीं किरण
किरण अहिरवार का कहना है कि यदि कोर्ट के निर्देशों के अनुसार मेरिट सूची दोबारा बनाई जाए और नियमों के अनुसार अंक दिए जाएं, तो सहायक रजिस्ट्रार की वैध दावेदार वही हैं। अब वह इस मामले को लेकर हाइकोर्ट में अवमानना याचिका दायर कर रही हैं।
यह मामला न केवल एक नियुक्ति की वैधता का सवाल खड़ा करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि किस तरह राजनीतिक या अन्य दबावों के चलते कुछ संस्थान हाइकोर्ट के निर्देशों के बावजूद मनमानी करने से नहीं चूकते। यह देखना दिलचस्प होगा कि हाईकोर्ट अब इस अवमानना पर क्या रुख अपनाता है।
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जबलपुर हाईकोर्ट