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Photograph: (the sootr)
BALAGHAT. मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत वर्ष 2018 में एक महत्वपूर्ण सड़क निर्माण परियोजना का अनुबंध एक निजी ठेकेदार कंपनी को सौंपा गया था। यह टेंडर रायपुर निवासी संजय अग्रवाल की फॉर्म को मिला था।
इस योजना के तहत ठेकेदार को न केवल सड़क बनानी थी, बल्कि पांच वर्षों तक उसका नियमित रखरखाव भी करना था। यह सड़क नक्सल प्रभावित इलाके में पड़ती है।
यहां पर राज्य सरकार का प्रशासनिक नियंत्रण तो है, लेकिन नक्सली घटनाओं के कारण आम जनजीवन में हमेशा डर का माहौल बना रहता है। कंपनी ने प्रारंभिक तौर पर निर्माण का कार्य शुरू कर दिया था, लेकिन जैसे ही कार्य ने गति पकड़ी, तभी नक्सलियों ने हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया।
नक्सली हमलों से दहशत में आए कर्मचारी, वाहनों को कर दिया था आग के हवाले
13 जनवरी 2021 को निर्माण स्थल पर एक बड़ा हमला हुआ, जिसमें नक्सलियों ने पूरी योजना को ठप कर देने की नीयत से कंपनी के ट्रक और ट्रैक्टर में आग लगा दी। इसके अलावा उन्होंने मौके पर मौजूद कर्मचारियों को खुलेआम जान से मारने की धमकी दी और चेतावनी दी कि वे दोबारा क्षेत्र में दिखे तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।
यह हमला न केवल आर्थिक नुकसान पहुंचाने के लिए था, बल्कि इसके जरिए इलाके में भय और नियंत्रण बनाए रखने का संदेश भी दिया गया। इस हमले के बाद से कंपनी के कर्मचारी बुरी तरह डर गए और निर्माण कार्य पूरी तरह बंद हो गया।
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दूसरे हमले में मशीनें जलाई गईं, कंपनी को हुआ करोड़ों का नुकसान
नक्सलियों द्वारा दहशत फैलाने का सिलसिला यहीं नहीं थमा। दिसंबर 2021 में दोबारा निर्माण स्थल पर हमला किया गया। इस बार नक्सलियों ने कंपनी की महंगी मशीनों को भी जला दिया, जिनमें कंप्रेसर, मिक्सर, जनरेटर जैसे उपकरण शामिल थे।
कंपनी का कहना है कि इन हमलों से उसे न सिर्फ करोड़ों रुपये का सीधा नुकसान हुआ, बल्कि मनोवैज्ञानिक रूप से भी उसकी टीम पूरी तरह हतोत्साहित हो गई। कंपनी ने स्थानीय प्रशासन और पुलिस से बार-बार सुरक्षा की मांग की, लेकिन व्यावहारिक रूप से कोई ठोस सुरक्षा इंतज़ाम नहीं हो पाए।
सड़क निर्माण का अनुबंध खत्म करने शुरू हुई थी प्रक्रिया
काफी लंबे समय तक निर्माण कार्य रुका रहने के कारण, ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकरण के बालाघाट स्थित महाप्रबंधक ने नवंबर 2022 में ठेकेदार कंपनी के अनुबंध को समाप्त करने की सिफारिश कर दी। इस सिफारिश को आगे बढ़ाते हुए जबलपुर स्थित मुख्य कार्यालय में भेजा गया, जहां इस पर विचार करते हुए अप्रैल 2023 में कंपनी को एक कारण बताओ नोटिस जारी किया गया।
इस नोटिस में पूछा गया कि कंपनी ने अनुबंध के निर्धारित समय में कार्य पूरा क्यों नहीं किया, और क्यों न अनुबंध की शर्तों के अनुसार उसके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाए।
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पहली रिट याचिका में मिली थी राहत, लेकिन बाद में अनुबंध खत्म कर दिया गया
कंपनी ने इस नोटिस को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट की शरण ली। 10 मई 2023 को हाईकोर्ट ने कंपनी को अस्थायी राहत देते हुए नोटिस पर रोक लगा दी और मामले की सुनवाई शुरू की। इसके बाद 13 फरवरी 2025 को हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि कंपनी को उचित जवाब देने का मौका मिलना चाहिए, ताकि न्याय की प्रक्रिया पूरी हो सके।
लेकिन, इसके बावजूद 3 मार्च को कंपनी के एक्सटेंशन के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया गया और अगले ही दिन 4 मार्च को कंपनी का अनुबंध समाप्त करने का आदेश जारी कर दिया गया। इतना ही नहीं, कंपनी को दो वर्षों के लिए ब्लैकलिस्ट में डाल दिया गया और सरकार को हुए कथित नुकसान की भरपाई के लिए दंडात्मक आदेश भी पारित किया गया।
पुरानी दर पर काम पूरा करने को तैयार है कंपनी
ठेकेदार फर्म के पार्टनर रायपुर निवासी संजय अग्रवाल ने दोबारा हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए यह तर्क दिया कि वह अब भी निर्माण कार्य को वर्ष 2018 में तय की गई दरों पर ही पूरा करने को तैयार है। उसने यह भी कहा कि यदि यह कार्य किसी नए ठेकेदार को सौंपा गया तो वर्ष 2025 की वर्तमान दरों के अनुसार लागत कई गुना अधिक हो जाएगी, जिससे सरकार के खजाने पर अतिरिक्त भार पड़ेगा।
कंपनी ने यह भी बताया कि उसने अब तक सड़क निर्माण कार्य के लिए मशीनरी, जनशक्ति और अन्य संसाधनों पर करोड़ों रुपये खर्च कर दिए हैं और वह अभी भी कार्य प्रारंभ करने को इच्छुक है, बशर्ते सुरक्षा और अवसर मिले।
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सरकार ने कहा, पहले दिया है छह बार मौका
सरकार की ओर से हाईकोर्ट में जवाब दाखिल कर कहा गया कि ठेकेदार कंपनी को पहले ही छह बार समय विस्तार दिया जा चुका है। इसके बावजूद कंपनी ने कोई ठोस प्रगति नहीं दिखाई। इसके अलावा वर्ष 2020 में कंपनी ने खुद ही एक पत्र देकर बताया था कि वह नक्सली हमलों के डर से कार्य नहीं कर पाएगी।
सरकार ने यह भी कहा कि सुरक्षा देने का प्रस्ताव पहले ही दिया जा चुका था, लेकिन कंपनी ने कोई ठोस योजना या प्रयास नहीं दिखाए। ऐसे में अब कंपनी की कार्यक्षमता और मंशा पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
हाईकोर्ट ने दी 31 दिसंबर 2025 की डेडलाइन
हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विशाल मिश्रा की डिविजनल बेंच ने दोनों पक्षों की दलीलों को ध्यान से सुनने के बाद एक संतुलित फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता कंपनी को अब अंतिम अवसर दिया जा रहा है, ताकि सार्वजनिक हित में लंबित विकास कार्य पूरा हो सके।
कोर्ट ने यह भी माना कि पुरानी दरों पर कार्य पूरा होने से सरकार को आर्थिक रूप से राहत मिलेगी, और बालाघाट जैसे दुर्गम और संवेदनशील क्षेत्र में आधारभूत ढांचे का निर्माण हो सकेगा। इसलिए कोर्ट ने सरकार द्वारा जारी अनुबंध समाप्ति, काली सूची में डालने और हर्जाना वसूलने के सभी आदेश निरस्त कर दिए।
कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि कंपनी को अब 31 दिसंबर 2025 तक हर हाल में निर्माण कार्य पूरा करना होगा। यह समयसीमा अंतिम है और इसके बाद कोई और विस्तार नहीं दिया जाएगा। यदि याचिकाकर्ता इस समयसीमा का पालन नहीं करता है तो उसके विरुद्ध अनुबंध की शर्तों के अनुसार कार्रवाई की जाएगी और अदालत की अवमानना की कार्यवाही भी की जा सकती है।
कोर्ट ने यह भी निर्देशित किया कि यदि ठेकेदार कंपनी निर्माण कार्य के दौरान पुलिस सुरक्षा की मांग करता है, तो संबंधित जिला प्रशासन को उस अनुरोध पर तत्परता से कार्यवाही करनी होगी।
नक्सल प्रभावित क्षेत्र में सुरक्षा सुनिश्चित करना राज्य का उत्तरदायित्व है, और यदि वह सुनिश्चित नहीं की जाती तो विकास कार्य कभी आगे नहीं बढ़ पाएंगे। इसलिए हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी अब प्रशासन की होगी।