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राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) और मध्य प्रदेश डेयरी महासंघ के बीच एक समझौता हुआ था। इस एमओयू में अड़चन देखने को मिल रहा है। इसके तहत दूध संग्रहण (दूध को इकट्ठा करना) बढ़ाने का लक्ष्य था। दूध संग्रहण में वृद्धि के बाद एनडीडीबी ने पैसे की मांग बढ़ा दी है। सूत्रों के अनुसार, एनडीडीबी ने 3,900 करोड़ रुपए की मांग की है।
राज्य सरकार 3,900 करोड़ रुपए की मांग बड़ी चुनौती साबित हो सकती है। ऐसे में सरकार और एनडीडीबी के बीच समझौते में समस्याएं आ सकती हैं।
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13 अप्रैल को हुआ था समझौता
एनडीडीबी और मध्य प्रदेश डेयरी महासंघ के बीच 13 अप्रैल को समझौता हुआ था। इस समझौते के तहत सरकार ने किसानों से दूध संग्रहण का लक्ष्य 12 लाख लीटर से बढ़ाकर 24 लाख लीटर कर दिया था। इसके लिए सरकार को अगले पांच साल में 1,500 करोड़ रुपए का निवेश करना था।
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केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने एमपी सरकार को दूध संग्रहण बढ़ाने की सलाह दी। उनके कहने पर दूध संग्रहण का लक्ष्य 50 लाख लीटर कर दिया गया।
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एनडीडीबी ने की कीमतों में बदलाव की मांग
इस नए लक्ष्य को पूरा करने के लिए एनडीडीबी ने दूध की कीमतों में बदलाव की मांग की। इससे इसकी कुल राशि 5,400 करोड़ रुपए हो गई। फेडरेशन और एनडीडीबी के बीच बातचीत के बाद यह राशि घटाकर 4,500 करोड़ रुपए कर दी गई।
अब, एनडीडीबी सरकार से 4,500 करोड़ रुपए में से 3,900 करोड़ रुपए की मांग कर रही है। पहले तय हुआ था कि यह निवेश ऋण के माध्यम से होगा, लेकिन अब एनडीडीबी इसे अनुदान (मुफ्त सहायता) के रूप में मांग रही है सरकार से कहा गया है कि अगर वह 3,900 करोड़ रुपए का निवेश नहीं कर पाती, तो सभी दुग्ध संघों को फायदा नहीं होगा। अधिकांश दुग्ध संघ अभी मुनाफा कमा रहे हैं।
एनडीडीबी और सरकार के बीच तनाव
सूत्रों के अनुसार, एनडीडीबी और सरकार के बीच तनाव की वजह यह है कि एनडीडीबी यह नहीं बता रहा है कि सरकार द्वारा पैसा निवेश करने के बाद, हर दुग्ध संघ को कितना लाभ होगा। एनडीडीबी हर साल होने वाले लाभ के बारे में कोई जानकारी नहीं दे रहा है, और इसी वजह से दूध संग्रहण बढ़ाने के बाद धनराशि बढ़ाने की मांग से संबंधित फाइल आगे नहीं बढ़ पा रही है।
सूत्रों के अनुसार, केंद्र सरकार के निर्देश पर एनडीडीबी को राज्य में दुग्ध संघों के विपणन, योजना और प्रबंधन की जिम्मेदारी दी गई थी। एनडीडीबी द्वारा इतनी बड़ी राशि की मांग अब सरकार के लिए बड़ी परेशानी बन गई है, क्योंकि सरकार के लिए इतनी बड़ी राशि देना आसान नहीं है।