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मध्यप्रदेश में इन दिनों एक नई और घातक बीमारी फैल रही है, जो टीबी (Tuberculosis) के लक्षणों से मिलती-जुलती है। यह बीमारी मेलियोइडोसिस (Melioidosis) के नाम से जानी जाती है। पहले यह बीमारी मुख्य रूप से कर्नाटक, तमिलनाडु और ओडिशा जैसे तटीय क्षेत्रों में पाई जाती थी, लेकिन अब यह तेजी से मध्यप्रदेश में फैल रही है।
भोपाल एम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, मेलियोइडोसिस इतना घातक है कि यदि इसका समय पर इलाज न हो, तो 40 प्रतिशत मरीजों की मौत हो सकती है। बीमारी का पता लगने से पहले ही यह शरीर में इतनी फैल जाती है कि इलाज के बावजूद हालत बिगड़ने का खतरा होता है।
MP में बढ़ रही मेलियोइडोसिस की समस्या
एम्स भोपाल (AIIMS Bhopal) के जरिए हाल ही में एक अध्ययन किया गया। इसमें बताया गया है कि पिछले छह सालों में मध्यप्रदेश के 20 जिलों से करीब 130 मरीज इस बीमारी के कारण अस्पताल में भर्ती हुए। विशेषज्ञों का कहना है कि धान के खेतों का बढ़ता रकबा और पानी के स्रोतों में वृद्धि के कारण मेलियोइडोसिस का संक्रमण तेजी से फैल रहा है।
जानें कौन लोग हैं सबसे ज्यादा प्रभावित?
डॉक्टरों का कहना है कि मेलियोइडोसिस उन लोगों के लिए अधिक खतरा पैदा करता है जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। खासकर डायबिटीज (Diabetes) के मरीज, शराब पीने वाले (Alcoholics) और किसान जो खेतों में काम करते हैं। इनसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं।
एम्स भोपाल के विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि इस बीमारी से पीड़ित 70 प्रतिशत मरीजों में डायबिटीज की समस्या थी। इसलिए, मेलियोइडोसिस का खतरा उन लोगों के लिए विशेष रूप से बढ़ जाता है, जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है।
एमपी में मेलियोइडोसिस की खबर पर एक नजर
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मरीज टीबी सोच कर रहा था इलाज
राजधानी भोपाल के एक गांव में 45 वर्षीय किसान को महीनों तक बुखार, खांसी और सीने में दर्द जैसी समस्याएं हो रही थीं। पहले उसे टीबी का इलाज दिया गया, लेकिन हालत में सुधार नहीं हुआ। बाद में, जब एम्स भोपाल में जांच हुई तो पता चला कि यह बीमारी टीबी नहीं बल्कि मेलियोइडोसिस थी। यह मरीज कभी प्रदेश से बाहर नहीं गया था, इसीलिए इस बात को गंभीरता से लिया गया।
डॉ. आयुष गुप्ता, एसो. प्रो. माइक्रोबायोलॉजी, एम्स ने बताया कि यदि किसी मरीज को 2-3 हफ्ते से ज्यादा बुखार हो और एंटी-टीबी दवा से फायदा न हो, तो उसे मेलियोइडोसिस की जांच तुरंत करानी चाहिए। जल्दी पहचान और इलाज से मरीज की जान बचाई जा सकती है।
विशेषज्ञों के जरिए दी गई ट्रेनिंग
एम्स भोपाल ने प्रदेश के 25 संस्थानों के 50 से ज्यादा डॉक्टरों और माइक्रोबायोलॉजिस्ट को मेलियोइडोसिस के जांच और इलाज की ट्रेनिंग दी है। इसके बाद से भोपाल, इंदौर, सागर और अन्य शहरों के अस्पतालों में इस बीमारी के नए मामले सामने आ रहे हैं। साल 2022 में प्रदेश में 50 मामलों की रिपोर्ट थी, जो अब बढ़कर 130 हो गई है।
क्या होता है मेलियोइडोसिस
मेलियोइडोसिस एक संक्रामक रोग है, जो बर्कहोल्डरिया स्यूडोमल्ली नामक बैक्टीरिया के कारण होता है। यह बैक्टीरिया आमतौर पर मिट्टी और पानी में पाया जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह रोग अब प्रदेश में स्थानिक (एंडेमिक) बन चुका है। यानी यह रोग अब यहां के पर्यावरण में स्थायी रूप से मौजूद है।
मेलियोइडोसिस बीमारी के लक्षण
मेलियोइडोसिस के लक्षणों में त्वचा संक्रमण, बुखार, खांसी, सीने में दर्द, सिरदर्द, पेट व मांसपेशियों में दर्द, सांस लेने में कठिनाई जैसी समस्याएं शामिल हैं। यदि समय पर इलाज न मिले तो यह सेप्सिस (Sepsis) का रूप ले सकता है। इससे पूरे शरीर में संक्रमण फैल सकता है।
मेलियोइडोसिस से बचने के उपाय
इससे बचाव के लिए, विशेषज्ञों का कहना है कि दूषित पानी और मिट्टी के संपर्क से बचना चाहिए। साथ ही घाव या खरोंच होने पर खेतों या कीचड़ में काम करने से बचना चाहिए। हमेशा साफ पानी पीना और आसपास स्वच्छता बनाए रखना इस बीमारी से बचाव के लिए बेहद जरूरी है।