News Strike : क्या कांग्रेस को जूनियर पर भरोसा नहीं, उपचुनाव से पहले प्रदेश कांग्रेस में बढ़े बवाल!

मध्यप्रदेश में लग रहा था कि कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस में इतनी कसावट ला दी है कि कांग्रेस की जीत तय है, लेकिन नतीजे इस कदर चौंकाने वाले आए कि खुद बहुत से कांग्रेसी हैरान रह गए। पढ़िए कांग्रेस के अंदरखाने की पड़ताल करती ये रिपोर्ट... 

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Jitendra Shrivastava
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News Strike : पहले विधानसभा, फिर लोकसभा और अब विधानसभा उपचुनाव ये प्रदेश की राजनीति के सिर्फ सियासी पड़ाव नहीं हैं। बल्कि, ये कांग्रेस के इम्तिहान की एक और घड़ी है। वैसे तो उपचुनाव को लेकर ही कांग्रेस के सामने बहुत से पेंच फंसे हुए हैं। वो उन्हें सुलझा पाएगी अगर नहीं तो फिर क्या कदम उठाएगी। पेंच खुलने के बाद अगर उपचुनाव हुए तो कांग्रेस क्या अपनी सीटें वापस हासिल कर पाएगी। ये सारे सवाल कांग्रेस के लिए बहुत अहम है, लेकिन मजबूरी ये है कि खुद कांग्रेस के पास इन सवालों को हल करने का समय नहीं है। क्योंकि कांग्रेस में उलझनों का फैलारा अभी खुद में ही बहुत ज्यादा है। जिसकी शुरूआत खुद जीतू पटवारी से ही होती है।

जीतू अपना चुनाव हारे फिर भी अध्यक्ष की कमान सौंपी

मध्यप्रदेश कांग्रेस का फैलारा आखिर सिमटता क्यों नहीं। जो थोड़े बहुत भी कांग्रेस के हितैषी वो हैं इस सवाल का जवाब जरूर जानना चाहते हैं। नवंबर में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत तय नजर आ रही थी। लग रहा था कि कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस में इतनी कसावट ला दी है कि कांग्रेस की जीत तय है, लेकिन नतीजे इस कदर चौंकाने वाले आए कि खुद बहुत से कांग्रेसी हैरान रह गए। इसके बाद कांग्रेस ने लीडरशिप में बड़ा बदलाव किया और ऐसा फैसला लिया जिसकी मध्यप्रदेश में तो खासतौर से कोई उम्मीद नहीं थी। ये फैसला था जीतू पटवारी को अध्यक्ष पद की कमान सौंपना। वो जीतू पटवारी जो खुद अपना विधानसभा चुनाव नहीं निकाल सके थे उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष बना दिया गया। इसके बाद लोकसभा चुनाव हुए और प्रदेश से कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ हो गया। 

उपचुनाव की जिम्मेदारी पांसे और जायसवाल पर

हार का पूरा ठीकरा कांग्रेस के दूसरे नेताओं ने जीतू पटवारी पर फोड़ दिया है। जिन्हें चुनाव से पहले बमुश्किल सिर्फ तीन महीने का ही वक्त मिला। अब प्रदेश में कभी भी उपचुनाव हो सकते हैं। नियमों के मुताबिक जो सीट खाली हुई हैं उस पर छह माह के भीतर उपचुनाव हो जाएंगे। इसमें से एक सीट अमरवाड़ा की है, जिस पर चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है। यहां 10 जुलाई को मतदान होगा और 13 जुलाई को नतीजे आ जाएंगे। इस सीट की जिम्मेदारी कांग्रेस ने सुखदेव पांसे और सुनील जायसवाल को सौंपी है। वैसे बता दूं कि ये अमरवाड़ा सीट, छिंदवाड़ा जिले में आती है। जहां से विधानसभा चुनाव में कमलनाथ के खासमखास कमलेश शाह ने जीत दर्ज की थी। लोकसभा चुनाव से ऐन पहले कमलेश शाह ने दल बदल किया और बीजेपी में चले गए। इसके अलावा दो और सीट विजयपुर और बीना में भी उपचुनाव होना चाहिए, लेकिन जरा पेंच अटका हुआ है। पहले पेंच ये है कि दोनों सीटों पर कांग्रेस विधायक काबिज हैं जो लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हो गए, लेकिन कांग्रेस से इस्तीफा नहीं दिया। अब दलबदल विरोधी कानून के मुताबिक जब तक इस्तीफा नहीं देंगे तब तक सीट खाली नहीं होगी और चुनाव नहीं हो पाएंगे। अगर पार्टी खुद उन्हें निकालती है तो दलबदल विरोधी कानून उन पर नहीं लगेगा और बिना विधानसभा चुनाव लड़े ही दोनों बीजेपी के विधायक हो जाएंगे। ये दो नेता हैं राम निवास रावत और निर्मला सप्रे।

लगातार नाकामियां पार्टी के अंदर के बवाल को और बढ़ाएगी

अब कांग्रेस के सामने पहले तो ये चुनौती है कि वो विजयपुर और बीना सीट का मसला हल करे। फिलहाल जीतू पटवारी के लिए उससे बड़ा इम्तिहान है अमरवाड़ा सीट। जो कांग्रेस की झोली में थी। हालांकि, इतनी जल्दी सिर पर आए उपचुनाव से निपटने के लिए भी उनके पास बहुत वक्त नहीं है, लेकिन लगातार नाकामियां पार्टी के अंदर के बवाल को और बढ़ाती जाएगी। लोकसभा में हुई करारी हार के बाद से दिग्विजय सिंह और कमलनाथ तो फिलहाल खामोश हैं, लेकिन दूसरे नेताओं ने जीतू पटवारी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। जिसमें दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह भी शामिल हैं। हालांकि, उनके निशाने पर सिर्फ जीतू पटवारी ही नहीं राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी नजर आए लक्ष्मण सिंह ने कहा उनके बारे में कुछ कहूंगा तो पार्टी से भगा दिया जा सकता हूं। इसके अलावा उन्होंने प्रदेश के संगठन को मजबूत करने और घर बैठे कार्यकर्ताओं को एक्टिव करने की जरूरत भी जाहिर की। कांग्रेस की समस्या ये है कि यहां नेता काफी सीनियर हैं, उनके मुकाबले प्रदेशाध्यक्ष पद का जिम्मा संभाल रहे जीतू पटवारी जूनियर नेता हैं। बहुत से कांग्रेसियों को आलाकमान का ये फैसला इसलिए भी अमल नहीं हो रहा है। लक्ष्मण सिंह ने बिना नाम लिए ही प्रदेश में संगठन की मजबूती की सलाह दी है। पार्टी के एक पूर्व प्रक्ता अमिताभ अग्निहोत्री ने तो इस संबंध में मल्लिकार्जुन खड़ेगे, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के नाम पत्र लिख दिया है। 

जीतू ने जवाब दिया कि घोटाले को मुद्दा बनाने से वोट नहीं मिलते

लक्ष्मण सिंह ने पत्र में लिखा कि मध्य प्रदेश में निष्ठावान, कर्मठ, जनता से जुड़ाव रखने वाले नेताओं की उपेक्षा की जाती है और प्रदेश कांग्रेस में पुत्रवाद, परिवारवाद, पट्टावाद, पूंजीवाद और चापलूसवाद को तवज्जो दी जाती है। उन्होंने लिखा कि प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को लगभग 40 प्रतिशत मत मिले थे, जो वर्तमान लोकसभा चुनाव में घटकर लगभग 32 प्रतिशत रह गए। यह 8 प्रतिशत वोट की गिरावट कांग्रेस के वोट प्रतिशत में कैसे आ गई? यह चिंता का विषय है। वर्तमान में बहुत ही चिंता का विषय यह है कि लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस को मध्य प्रदेश की पूरी 29 सीटों में भारी पराजय का सामना करना पड़ा। कांग्रेस के लगभग 11 लोकसभा प्रत्याशी 4 लाख के भारी मतों से पराजित हुए। कांग्रेस के 66 विधायकों के विधानसभा क्षेत्र में से कांग्रेस को लगभग 50 विधायकों के क्षेत्र में हार का सामना करना पड़ा है। मैंने प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष जीतू पटवारी से निवेदन किया था कि कांग्रेस को नर्सिंग घोटाला, आयुष्मान अस्पताल घोटाला, कोरोना काल घोटाला, रेमडेसिवीर इंजेक्शन घोटाला को मध्य प्रदेश के प्रत्येक शहर एवं जिले में युवक कांग्रेस एनएसयूआई के माध्यम से उठाना चाहिए, जिससे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को लाभ मिलेगा। जिस पर जीतू पटवारी ने जवाब दिया कि घोटाले को मुद्दा बनाने से वोट नहीं मिलते। 

पटवारी की कार्यशैली से कई प्रभावशाली नेता कांग्रेस छोड़ गए

पुरानी पत्तियां झड़ गईं, अब नई पत्तियों को मौका दिया जाएगा। इन बयानों से वर्षों पुराने कांग्रेस कार्यकर्ता नाराज होकर निष्क्रिय हो गए और वर्तमान प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व, युवा नौजवान कार्यकर्ताओं को कांग्रेस से जोड़ नहीं पाया। मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष जीतू पटवारी का स्वयं के गृह क्षेत्र इंदौर शहर में ही प्रभाव नहीं है। जिन अक्षय कांति बम को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने इंदौर लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी बनवाया, वह लोकसभा चुनाव के पहले ही भाजपा के खेमे में चले गए। इसके परिणाम स्वरूप इंदौर लोकसभा क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी को लगभग 11 लाख मतों से विजय मिली। पटवारी की अभिमानपूर्वक कार्यशैली के कारण कई प्रभावशाली नेता कांग्रेस छोड़कर चले गए। कांग्रेस के नेताओं को पलायन से रोकने के लिए डेमैज कंट्रोल कमेटी नहीं बनाई गई और कांग्रेस नेताओं के पलायन को रोकने के लिए कोई गंभीर प्रयास भी नहीं किए गए।

कांग्रेस को आज के हालात संभालना हो रहा मुश्किल 

अग्निहोत्री की चिंता इतने पर ही खत्म नहीं हुई है। उन्होंने ये दावा भी किया है कि संगठन की यही व्यवस्था रही तो साल 2028 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 20 सीटे मिलना मुश्किल हो जाएगा। खैर अग्निहोत्री ने तो बहुत दूर कि चिंता कर ली। कांग्रेस को तो फिलहाल आज के हालात ही संभालना मुश्किल हो रहा है। अजय सिंह कांग्रेस के सीनियर लीडर हैं जो पटवारी के छोटे से कार्यकाल की ही जांच की मांग कर चुके हैं। अजय सिंह ने खुलकर कहा है कि पटवारी के अध्यक्ष बनने के बाद से ही बड़ी संख्या में नेता और कार्यकर्ताओं ने दल बदलना शुरू किया है। इसकी क्या वजह है। लोकसभा चुनाव के दौरान कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के अपने अपने क्षेत्र से बाहर न निकलने पर भी उन्होंने सवाल उठाए हैं और इस बात का जायजा लेने की सलाह दी है कि किसने कितना चुनाव प्रचार किया। अजय सिंह की ये डिमांड भी है कि दल बदलुओं को किसी कीमत में दोबारा पार्टी में शामिल न किया जाए। फिर भले ही वो सुरेश पचौरी हों या फिर राम निवास रावत ही क्यों न हों।

नेतृत्व परिवर्तन पर कांग्रेस में नेता हुए मुखरः सलूजा

कांग्रेस के ये जो हालात हैं वो उपचुनाव में उसका क्या हाल करेंगे या कैसे संभाले जाएंगे। ये एक बड़ा गंभीर सवाल है। क्योंकि बीजेपी सरकार के 20 साल के शासन में कांग्रेस की स्थिति बद से बदतर होती चली गई है। जिस पर बीजेपी को भी चुटकी लेने का मौका मिल गया है। कांग्रेस से बीजेपी में गए प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा ने इस बारे में ट्वीट किया है। जिसमें लिखा कि नेतृत्व परिवर्तन पर कांग्रेस में नेता मुखर हो रहे हैं। अजय सिंह के बाद विवेक तन्खा भी इस बारे में बोल चुके हैं। सलूजा का दावा है कि अरूण यादव तो खुद अपने लिए मौका तलाश रहे हैं। सलूजा के ट्वीट में ये भी लिखा गया है कि अंदरखानों की खबरों के मुताबिक जो भी नेता खिलाफत करता है उसे बयान से पलटने, चुप रहने की रिक्वेस्ट की जाती है।

नए और युवा चेहरों की एक्सेप्टेंस नजर नहीं आ रही

फिलहाल कांग्रेस के जो हालात हैं उसमें बीजेपी के किसी भी तंज पर दोष नहीं दिया जा सकता है। साल 2018 में विधानसभा चुनाव के समय कांग्रेस में गुटबाजी काफी हद तक कम दिखाई दी थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया के दल बदल के बाद हालात बेकाबू से नजर आते हैं नए और युवा चेहरों को आलाकमान ने मौका तो दे दिया है, लेकिन उनकी एक्सेप्टेंस फिलहाल नजर नहीं आ रही। अब ये हालात खुद जीतू पटवारी टेकल कर सकेंगे या आलाकमान कोई फेरबदल करते हैं। करते हैं तो कब तक करते हैं, ये सवाल भी बड़ा है। क्योंकि लंबा इंतजार कांग्रेस के हालात और खराब करते जाएगा। फिलहाल इसका सबसे पहला शिकार अमरवाड़ा का उपचुनाव हो सकता है।

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