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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में लव जिहाद शब्द को लेकर एक अहम फैसला लिया गया है। इस फैसले में कहा कि मीडिया में लव जिहाद शब्द के इस्तेमाल पर रोक नहीं लगाई जा सकती। यह निर्णय भोपाल निवासी मारूफ अहमद खान के जरिए दायर की गई याचिका के संबंध में आया था। याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि मीडिया में लव जिहाद शब्द का इस्तेमाल मुस्लिम समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत कर रहा है। इससे समाज में सांप्रदायिक तनाव बढ़ रहा है।
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जानें याचिकाकर्ता का क्या था दावा...
मारूफ अहमद खान ने अपनी याचिका में मीडिया पर लव जिहाद शब्द के उपयोग को लेकर आरोप लगाए थे। याचिकाकर्ता ने यह आरोप लगाए कि कुछ मीडिया संस्थानों के जरिए लव जिहाद शब्द का प्रयोग जानबूझकर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ किया जा रहा है। याचिकाकर्ता का तर्क था कि इस शब्द के इस्तेमाल से हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच द्वेष की भावना को बढ़ावा मिलता है। इससे सांप्रदायिक सौहार्द्र को नुकसान पहुंचता है।
खान ने यह भी दलील दी कि कुछ मीडिया संस्थानों के जरिए इस शब्द का उपयोग एक प्रकार से भ्रामक और दुर्भावनापूर्ण तरीके से किया जा रहा है। इससे समाज में गलतफहमियां और तनाव पैदा हो रहा है। इसके साथ ही, याचिकाकर्ता ने सरकार से आग्रह किया था कि इस विषय पर सख्त दिशा-निर्देश जारी किए जाएं। साथ ही संबंधित मीडिया संस्थानों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए जाएं।
हाईकोर्ट में याचिका खारिज
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने इस याचिका पर सुनवाई की। साथ ही इसे खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता के पास वैकल्पिक कानूनी रास्ते मौजूद हैं। इनके जरिए वह अपनी शिकायतें संबंधित अधिकारियों तक पहुंचा सकते हैं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले को जनहित याचिका के रूप में नहीं लिया जा सकता है। साथ ही इस पर कोई परमादेश भी जारी नहीं किया जा सकता है।
इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी माना कि इस प्रकार के मामलों में न्यायिक दखल तभी संभव है, जब सभी वैकल्पिक उपाय पहले इस्तेमाल किए गए हों।
राज्य सरकार ने जताई आपत्ति
राज्य सरकार ने भी इस याचिका पर आपत्ति जताई थी। सरकार का कहना था कि याचिकाकर्ता के पास इस मुद्दे पर सीधे कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है। इस मामले में कोई भी कानूनी उल्लंघन प्रमाणित नहीं हुआ है। राज्य सरकार के अनुसार, याचिकाकर्ता ने पुलिस अधिकारियों को शिकायत दी थी, लेकिन पुलिस के जरिए कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। इसके बाद यह याचिका दायर की गई।
अन्य कानूनी विकल्पों का प्रयोग जरूरी
कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि क्या उन्होंने पहले अन्य कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल किया था। जैसे कि उच्च अधिकारियों से संपर्क करना या मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज कराना। चूंकि याचिकाकर्ता ने इन विकल्पों का उपयोग नहीं किया, इसलिए अदालत ने इसे सुनवाई योग्य नहीं माना और याचिका खारिज कर दी।
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