BHOPAL. मध्य प्रदेश के सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों के लिए राहत की सौगात तैयार है। राज्य सरकार सीएम केयर कैशलेस योजना की अंतिम रूपरेखा तैयार करने की दिशा में निर्णायक मोड़ पर पहुंच गई है।
13 जून, शुक्रवार को मुख्यमंत्री वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक कर इस योजना पर मुहर लगाएंगे। हालांकि इस बीच एक बड़ा सवाल यह है कि क्या पेंशनर्स को भी इस सुविधा का लाभ मिलेगा? अब पेंशनर वर्ग की नजरें इस बैठक पर टिकी हैं, जहां तय होगा कि उन्हें कैशलेस इलाज की सुविधा दी जाएगी या नहीं।
क्या है सीएम केयर योजना
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने हाल ही में इस योजना का ऐलान किया था। इसके तहत प्रदेश के 10 लाख से अधिक अधिकारी और कर्मचारी देशभर में किसी भी अस्पताल में कैशलेस इलाज करा सकेंगे। पहले सामने आया था कि इलाज की अधिकतम सीमा 20 लाख रुपए रखी जाएगी, लेकिन अब योजना को और भी व्यापक बनाते हुए इलाज की लिमिट को अनलिमिटेड किया जाएगा।
अब किस बीमारी के लिए कितनी राशि मिलेगी, इसका निर्धारण आयुष्मान कार्ड के हिसाब से किया जाएगा। उदाहरण के तौर पर मान लीजिए आयुष्यान योजना में एक बीमारी के लिए 50 हजार तय हैं तो प्रदेश सरकार की कैशलेस बीमा योजना में भी संबंधित कर्मचारी को उसी हिसाब से उस बीमारी के लिए 50 हजार रुपए दिए जाएंगे।
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हर महीने 250 रुपए से 1200 रुपए तक प्रीमियम
सरकार यह व्यवस्था कर्मचारियों से अंशदान यानी प्रीमियम लेकर संचालित करेगी। यह प्रीमियम पदनाम और वेतन के आधार पर तय होगा। न्यूनतम 250 रुपए से लेकर अधिकतम 1200 रुपए तक प्रीमियम के रूप में लिए जाएंगे। अभी तक की रूपरेखा में पेंशनर्स को लेकर स्थिति साफ नहीं है।
यदि उन्हें योजना में शामिल किया जाता है तो कई सवाल उठेंगे... जैसे क्या उनके लिए अंशदान की अलग व्यवस्था होगी? क्या इलाज की सीमा अलग रखी जाएगी? क्या उनका इलाज भी पूरे देश में कैशलेस होगा? सीएम की 13 जून की बैठक में इन सभी बिंदुओं पर अंतिम फैसला होगा।
वित्त विभाग और चिकित्सा शिक्षा विभाग योजना का प्रारूप पहले ही तैयार कर चुके हैं। फायनेंस विभाग पेंशनर्स को कैशलेस बीमा योजना का लाभ देने पर पहले आपत्ति जता चुका है। अब पेंशनर्स को लेकर सीएम की बैठक में पूरी स्थिति साफ होगी।
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कैशलेस सुविधा क्यों है जरूरी
वर्तमान में मध्यप्रदेश सिविल सेवा (चिकित्सा परिचर्या) नियम 2022 के तहत कर्मचारी इलाज कराते हैं और फिर रिम्बर्समेंट के लिए लंबी और जटिल प्रक्रिया से गुजरते हैं।
इनडोर (अस्पताल में भर्ती होने पर)
5 लाख रुपए तक का क्लेम संभागीय सरकारी अस्पताल की कमेटी तय करती है। 5 से 20 लाख रुपए तक के मामलों पर स्वास्थ्य सेवाओं के संचालक की अध्यक्षता में बनी कमेटी फैसला करती है।
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आउटडोर (बिना भर्ती इलाज)
सालाना 20 हजार रुपए तक की सीमा है, जिसमें हर तीन माह में 8 हजार से ज्यादा नहीं हो सकता। इसके लिए जिला मेडिकल बोर्ड की स्वीकृति जरूरी होती है।
रिम्बर्समेंट की खामियां और कर्मचारियों की पीड़ा
दरअसल, रिम्बर्समेंट के लिए मिलने वाला बजट शहरी कर्मचारियों पर पहले ही खर्च हो जाता है। ग्रामीण और फील्ड में काम कर रहे कर्मचारियों को अगले वित्तीय वर्ष तक इंतजार करना पड़ता है। दूसरा, अप्रूवल, मेडिकल बोर्ड, दस्तावेज और स्वीकृति की लंबी प्रक्रिया ने कर्मचारियों को इलाज से ज्यादा कागजों की दौड़ में उलझा दिया है।
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मध्य प्रदेश | अफसर | मुख्यमंत्री मोहन यादव