एमपी में अर्थव्यवस्था पर उदासीन रहे अफसर, शासन स्तर से भी निगरानी के ठोस प्रबंध नहीं

मध्य प्रदेश में सरकारी मशीनरी की कार्यप्रणाली को अकसर कटघरे में खड‍़ा किया जाता है। उपक्रम स्वछंद हो चले हैं और इनकी कमान संभालने वाले अधिकारी सरकार के निर्देशों की अनदेखी कर रहे हैं।

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Sanjay Sharma
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Officials remained indifferent
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BHOPAL. दूसरे के हिस्से का काम समेटने का खामियाजा मप्र स्टेट एग्रो इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन को उठाना पड़ा है। कॉर्पोरेशन कृषि आधारित व्यवसाय, कृषि उत्पाद, गुणवत्तापूर्ण बीज, आधुनिक कृषि यंत्र और तकनीकों पर काम करना भूलकर लघु उद्योग के हिस्से का काम करता रहा। दायित्वों की अनदेखी के कारण कॉर्पोरेशन द्वारा न तो खाद्य उत्पादों की बाजार में बिक्री की संभावनाओं को तलाशा न स्टोरेज के प्रकल्पों पर ध्यान दिया। इसके विपरीत कॉर्पोरेशन, मप्र लघु उद्योग निगम से होड़ में उलझे रहे। इसके लिए भंडार क्रय और सेवा उपार्जन नियमों की भी अनदेखी की गई। मनमानी की वजह से कॉर्पोरेशन को बीते 5 साल में 65.26 करोड़ रुपए का घाटा उठाना पड़ा है। जबकि अपने दायित्व पूरा करके एमपी एग्रो आमदगी बढ़ाने में सरकार की मदद कर सकता था। नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक यानी कैग ने भी इस पर बिंदुवार रिपोर्ट पेश की है। 

सरकार के निर्देशों की अनदेखी 

मध्य प्रदेश में सरकारी मशीनरी की कार्यप्रणाली को अकसर कटघरे में खड‍़ा किया जाता है। उपक्रम स्वछंद हो चले हैं और इनकी कमान संभालने वाले अधिकारी सरकार के निर्देशों की अनदेखी कर रहे हैं। गाइडलाइन के उल्लंघन के बाद भी जिम्मेदार कार्रवाई से बच निकलते हैं। सरकार के स्तर पर ऐसे लोगों की कसावट का भी पुख्ता इंतजाम नहीं है। इस वजह से अधिकारी बेखौफ शासन के नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। कैग की रिपोर्ट ने कॉर्पोरेशन के काम-काज के तरीकों पर आपत्तियां दर्ज कराने के साथ ही सुधार की अनुशंसा भी की है। 

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उपक्रम की सुस्ति से हुआ नुकसान 

एमपी एग्रो यानी मध्यप्रदेश स्टेट एग्रो इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन ने साल 2017 से 2022 के बीच अपने दायित्वों की अनदेखी की। इसके विपरीत अधिकारी बस शेल्टर, जिम उपकरण, प्रवेश द्वार बनाने के ठेके लेने में जुटे रहे। इस वजह से मूल काम यानी कृषि उपकरण ड्रिप-स्प्रिंकलर की आपूर्ति भी नहीं कर पाए। जिससे पूर्व के वर्षों में इससे मिलने वाला कमीशन भी हाथ से चला गया। अपने हिस्से के काम पर ध्यान न देने से एमपी एग्रो का कारोबार भी लगातार घटता गया जिससे 17 करोड़ से ज्यादा राशि का घाटा उठाना पड़ा। 

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वित्तीय प्रबंधन में कमजोर एमपी एग्रो 

मध्यप्रदेश सरकार के बजट पर संचालित एमपी एग्रो वित्तीय प्रबंधन के मामले में भी इन वर्षों में कमजोर रहा। व्यावसायिक गिरावट की वजह से कॉर्पोरेशन को गलत निर्णयों के चलते 1.59 करोड़, निवेश संबंधी गतिविधियों में 1.17 करोड़ का नुकसान हुआ। इसके अलावा राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से एग्रीमेंट करने में हुई चूक के कारण 32 करोड़ और रेडी-टू-ईट उत्पादों की सप्लाई की वसूली न होने से 2.14 करोड़ रुपए का घाटा उठाना पड़ा। 

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संसाधनों के उपयोग में लापरवाही 

एमपी एग्रों का मूल काम कृषि उत्पाद, यंत्रीकरण को बढ़ावा देना था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कॉर्पोरेशन अपने पास उपलब्ध कृषि फार्म  बाबई की भूमि का भी समुचित उपयोग नहीं कर सका। यहां बागों की नीलामी में भी नियमों की अनदेखी की गई। सरकार की ओर से भी एमपी एग्रो की कार्यप्रणाली की निगरानी को मजबूत नहीं बनाया। इसके लिए शासन स्तर से निदेशक मंडल, कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी कमेटी में स्वतंत्र निदेशक की नियुक्ति नहीं की। इस कमेटी की नियमित समीक्षा बैठकें भी नहीं हुईं।

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