हे ईश्वर! 10 में से 5 डॉक्टर लिखते हैं अधूरा पर्चा, भोपाल एम्स भी भगवान भरोसे

टास्क फोर्स ने भोपाल एम्स में काम की पड़ताल की। इसी तरह दिल्ली एम्स, दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल, बड़ौदा मेडिकल कॉलेज, मुंबई जीएसएमसी, ग्रेटर नोएडा के सरकारी मेडिकल कॉलेज, सीएमसी वेल्लोर, पीजीआई चंडीगढ़ और इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज पटना में सर्वे किया। 

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Pratibha ranaa
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रविकांत दीक्षित, BHOPAL. डॉक्टरों ( doctor ) को भगवान का दर्जा दिया जाता है, सही भी है...क्योंकि ये मरीज को बचाने में जी-जान लगा देते हैं।  इस बीच चौंकाने वाले तथ्य भी सामने आए हैं। जमीन के कुछ 'भगवान' मानो अपना काम पूरी ईमानदारी से नहीं कर रहे हैं। औसत रूप देखें तो 10 में से 4 से 5 फीसदी डॉक्टर आधा-अधूरा पर्चा ( doctor prescription ) लिख रहे हैं। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद् (आईसीएमआर) की रिपोर्ट से इस तथ्य का खुलासा हुआ है। 

ICMR के एक सर्वे के अनुसार, ओपीडी में मरीजों को शुरुआती परामर्श देने वाले डॉक्टर जल्दबाजी में लापरवाही कर रहे हैं। देश के 13 प्रमुख सरकारी अस्पतालों के सर्वे के बाद तैयार ICMR की इस रिपोर्ट के बाद अब केंद्र सरकार इस लापरवाही को रोकने के लिए सख्त कदम उठा सकती है, लेकिन यह कब तक होगा, किसी को पता नहीं है। 

तफसील से समझिए पूरा मामला 

अब हम मामले को तफसील से समझाते हैं। क्या है कि वर्ष 2019 में आईसीएमआर ने एक टास्क फोर्स गठित की थी। इस टास्क फोर्स ने अगस्त 2019 से अगस्त 2020 के बीच यानी एक साल काम किया। विशेषज्ञों ने देश के 13 अस्पतालों की ओपीडी में काम-काज देखा और समझा।  

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टास्क फोर्स ने यहां की पड़ताल 

टास्क फोर्स ने भोपाल एम्स में काम की पड़ताल की। इसी तरह दिल्ली एम्स, दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल, बड़ौदा मेडिकल कॉलेज, मुंबई जीएसएमसी, ग्रेटर नोएडा के सरकारी मेडिकल कॉलेज, सीएमसी वेल्लोर, पीजीआई चंडीगढ़ और इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज पटना में सर्वे किया। 

2171 प्रिस्क्रिप्शन की जांच 

डॉक्टरों की ओर से मरीजों को लिखे गए प्रिस्क्रिप्शन सर्वे में शामिल किए गए। इनमें से भी 4 हजार 838 प्रिस्क्रिप्शन की जांच की गई। इनमें 2 हजार 171 प्रिस्क्रिप्शन में कमियां पाई गईं। हद तो यह थी कि 475 पर्चों यानी करीब 9.8% प्रिस्क्रिप्शन पूरी तरह गलत थे। 

डब्ल्यूएचओ का सर्वे क्या कहता है

अब आपको विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ का सर्वे बताते हैं। तो डब्ल्यूएचओ का सर्वे कहता है कि दुनिया में 50 फीसदी दवाएं अनुचित तरीके से लिखी जा रहीं हैं। डब्ल्यूएचओ ने 1985 में तर्कसंगत पर्चों को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर के दिशा-निर्देशों को लागू किया था। इसके बावजूद भी दुनिया में 50 प्रतिशत तक दवाएं गलत तरीके से मरीजों को देने का अनुमान है। 

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हमीदिया की हकीकत भी जान लीजिए 

भोपाल के सबसे बड़े हमीदिया अस्पताल में भी समय-समय पर लापरवाही देखने को मिलती है। जब मीडियाकर्मियों ने यहां के तीन विभाग के पर्चे देखे तो पता चला कि तीन में मरीज को साफ और कैपिटल लेटर में पर्चा लिखा गया। हमीदिया अस्पताल प्रबंधन ने डॉक्टरों को कैपिटल लैटर में पर्चा लिखने के आदेश दिए थे, लेकिन इसका भी पालन नहीं हो रहा है।

देखिए हमीदिया में 'द सूत्र' की पड़ताल में क्या मिला

1. सर्जरी विभाग: एक पर्चे में छह जगह कट्टा-पिट्टी की गई। इसी विभाग के चार पर्चों में से सिर्फ एक में सब ठीक लिखा था। 
2. स्किन विभाग: पर्चे में डॉक्टर ने नियमों पालन किया। कैपिटल लैटर में पर्चा लिखा। जहां जानकारी नहीं, वहां प्रश्न वाचक चिन्ह लगाए। वहीं अन्य दो पर्चों में खराब लिखावट के चलते दवाएं पढ़ने में नहीं आ रहीं थी।
3. गेस्ट्रो यूनिट: मरीज को स्मॉल लैटर में लिखा प्रिस्क्रिप्शन दिया गया। पढ़ने में समस्या हो रही। साथ ही कटिंग भी थी।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ 

  • एनएचएम के पूर्व संचालक डॉ.पंकज शुक्ला ने 'द सूत्र' को सही तरीका बताया। 
  • डॉक्टर साहब का फोटो है, जरूरी लगे तो आडियो में ले सकते हैं। उन्होंने कहा कि सरकारी अस्पतालों की बात तो समझ में आती है कि यहां मरीज ज्यादा होते हैं, लेकिन फिर भी डॉक्टरों को प्रिस्क्रिप्शन तो सही लिखना ही चाहिए।
  • सही तरीका यह है कि पहले मरीज की हिस्ट्री लिखी जाए। साथ ही उसे क्या बीमारी है, यह भी साफ तौर पर प्रिस्क्रिप्शन में मेंशन हो।  
  • यदि कोई ऐसा नहीं करता हैं तो मैं मानता हूं कि यह सीधे तौर पर मरीज से खिलवाड़ है। प्रोविजनल डायग्नोसिस भी लिखना चाहिए। यह दुर्भाग्य है कि डॉक्टर प्रैक्टिस के दौरान इसका पालन नहीं करते हैं। 
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